भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में पुलिस ने शिशुओं को बेचने वाले एक गिरोह का पर्दाफाश किया है. मुंबई की झुग्गियों में चलने वाले इस गिरोह में नर्स और एजेंट शामिल हैं.
पुलिस ने बच्चों की खरीद फरोख्त के बारे में मिली जानकारी के आधार पर की कार्रवाई (फाइल फोटो)तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
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पुलिस ने इस गिरोह के नौ सदस्यों पर शिशुओं की तस्करी के आरोप तय किए हैं. इनमें एक मैटरनिटी अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स और एजेंट भी शामिल हैं. बीते पांच साल में यह शहर में इस तरह का दूसरा मामला है. पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए नौ आरोपियों ने बीते छह साल में कम से कम सात बच्चों की खरीद-फरोख्त की है.
तीन शिशुओं की मांएं और बच्चे को खरीदने वाले एक व्यक्ति को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है. बीते दिनों पुलिस को इस गिरोह के बारे में कहीं से जानकारी मिली थी. उसके आधार पर की गई कार्रवाई में नौ आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. पुलिस इंस्पेक्टर योगेश चव्हाण कहते हैं, "हम जांच कर रहे हैं कि कितने बच्चों को इन्होंने बेचा है. हम यह पड़ताल भी कर रहे हैं कि इस इलाके में कितने और एजेंट काम कर रहे हैं?"
पुलिस ने तस्करी विरोधी और जुवेनाइल जस्टिस कानूनों के तहत नौ लोगों पर बच्चों की खरीद-फरोख्त के आरोप तय किए हैं. चव्हाण बताते हैं, "अपने बच्चों को बेचने वाली मांएं बहुत ही गरीब हैं जबकि उन्हें खरीदने वाले लोग बच्चे के लिए बहुत बेताब थे."
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दुनिया के बच्चों को क्या क्या हक है
दुनिया में हर बच्चे के कुछ अधिकार हैं. संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार संधि (1989) ने बच्चों के लिए राजनीतिक, आर्थिक, सेहत से जुड़े, सामाजिक और सांस्कृतिक 54 अधिकार तय किए हैं. यहां देखिए इनमें से कुछ प्रमुख अधिकारों को.
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नाम का हक
हर बच्चे का हक है कि उसके जन्म होते ही उसको रजिस्टर किया जाए, नाम और राष्ट्रीयता दी जाए, और अपने माता-पिता को जानने और उनकी परवरिश में रहने का मौका दिया जाए.
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मां बाप का साथ
सरकार की यह जिम्मेदारी है कि कोई भी बच्चा अपने माता-पिता से उसकी मर्जी के खिलाफ अलग ना किया जाए. बच्चे को उसके मां बाप से तभी अलग किया जाए जब उस बच्चे के लिए यह नुकसानदेह हो गया हो.
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अपने हितों पर राय देना
हर बच्चे को हक है कि वो उनसे जुड़ी बातों पर वो अपनी राय जता सकते हैं. इसका मतलब है कि अगर कोई निर्णय कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाए, तो उसमें बच्चे का पक्ष सुनना जरूरी है. उनकी राय को कितना महत्व दिया जाएगा यह उम्र और परिपक्वता पर निर्भर करता है.
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जनसंचार तक पहुंच
जनसंचार के माध्यम की भूमिका सभ्य समाज में अविवादित है. देशी और विदेशी संचार माध्यमों तक सभी बच्चों की पहुंच होनी चाहिए.
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हिंसा से बचाव
किसी भी प्रकार की मार पिटाई या उपेक्षा से बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी माता-पिता, उनके शिक्षकों या अभिभावकों की है. इसे रोकने के लिए सरकार को कानूनी, प्रशासनिक नियम बनाने चाहिए और लोगों को इस बारे में जागरूक करना चाहिए.
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मुख्यधारा में रहने का अधिकार
दिमाग या शरीर से विकलांग बच्चों की जिंदगी भरपूर और अच्छी होनी चाहिए जिससे कि वो समाज का सक्रिय हिस्सा बन सकें.
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अच्छा स्वास्थ्य और सेवा
सरकार का फर्ज है कि बच्चें सबसे बेहतरीन व्यवस्थाओं में बड़े हों और उनके लिए स्वास्थ सेवा की कमी ना हो.
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शिक्षा का अधिकार
हर बच्चे को पढ़ने लिखने का हक है. इसके लिए प्राथमिक विद्यालयों में कोई फीस नहीं होनी चाहिए. बच्चों की हाजिरी यहां अनिवार्य है.
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सामुदायिक पहचान का हक
अगर कोई बच्चा अल्पसंख्यक या आदिवासी समूह से आता है, तो उसके धर्म, भाषा और संस्कारों का पूरी तरह से सम्मान होना चाहिए.
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खेलकूद और आराम
बच्चों को यह हक है कि उनकी दिनचर्या में आराम, खेल और मौज के लिए पर्याप्त समय और सुविधा हो. जितना संभव है इसके लिए बच्चों को बढ़ावा देना चाहिए.
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उत्पीड़न से सुरक्षा
कोई बच्चा अपहरण, व्यापार और यौन उत्पीड़न का शिकार ना बने यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है. चाहे यह उत्पीड़न मानसिक हो या फिर शारीरिक और भले ही इसमें परिवार के लोग शामिल हों या नहीं.
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मौत की सजा नहीं
अगर बच्चों से बड़ी गलतियां या अपराध हो जाएं तो भी उन्हें मौत की सजा या उम्रकैद नहीं दी जा सकती है.
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गरीब लोग निशाने पर
अधिकारियों का कहना है कि शुरुआती जांच से पता चला है कि गिरोह के सदस्य बांद्रा कुरला कॉमप्लेक्स के पास झुग्गी बस्तियों में रहने वाली गरीब गर्भवती महिलाओं को निशाना बनाते थे. फिर अस्पताल में काम करने वासी नर्स बिना बच्चे वाले जोड़ों का संपर्क इन गर्भवती महिलाओं से कराती थी. आरोप है कि संपर्क कराने के लिए यह नर्स बच्चों के लिए तरसने वाले लोगों से एक लाख तक वसूलती थी.
पुलिस का कहना है कि लड़कियों को 70 हजार रुपये में बेचा गया जबकि लड़कों के लिए डेढ़ लाख तक वसूले गए. इससे पहले मुंबई पुलिस ने 2016 में पांच महिलाओं को गिरफ्तार किया था जिन पर इसी तरह अपने बच्चों को बेचने के आरोप थे.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में वर्ष 2019 में बच्चों की तस्करी से जुड़े 1,100 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. 2018 में ऐसे मामलों की संख्या 1,000 के आसपास थी. लेकिन तस्करी के खिलाफ काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि यह आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है.
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि बच्चों की तस्करी में हो रही वृद्धि के कारण उन बच्चों की संख्या घट रही है जिन्हें गोद लिया जा सके. बिना बच्चों वाले बहुत से माता-पिता को इंतजार करना पड़ रहा है.
बाल दिवस यानि 14 नवंबर 2012 को भारत में लागू हुए पॉक्सो (POCSO) कानून में बच्चों से यौन अपराधों के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान है. बच्चों को पहले से सिखाएं कुछ ऐसी बातें जिनसे वे खुद समझ पाएं कि उनके साथ कुछ गलत हुआ.
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सबसे ज्यादा शिकार बच्चे
भारत में हुए कई सर्वे में पाया गया कि देश के आधे से भी अधिक बच्चे कभी ना कभी यौन दुर्व्यवहार का शिकार हुए हैं. इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इनमें से केवल 3 फीसदी मामलों में ही शिकायत दर्ज की जाती है.
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बच्चों को समझाएं
बच्चों को समझाना चाहिए कि उनका शरीर केवल उनका है. कोई भी उन्हें या उनके किसी प्राइवेट हिस्से को बिना उनकी मर्जी के नहीं छू सकता. उन्हें बताएं कि अगर किसी पारिवारिक दोस्त या रिश्तेदार का चूमना या छूना उन्हें अजीब लगे तो वे फौरन ना बोलें.
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बच्चों से बात करें
बच्चों को नहलाते समय या कपड़े पहनाते समय अगर वे उत्सुकतावश बड़ों से शरीर के अंगों और जननांगों के बारे में सवाल करें तो उन्हें सीधे सीधे बताएं. अंगों के सही नाम बताएं और ये भी कि वे उनके प्राइवेट पार्ट हैं.
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क्या सही, क्या गलत
ना तो बच्चों को और लोगों के सामने नंगा करें और ना ही खुद उनके सामने निर्वस्त्र हों. बच्चों को नहलाते या शौच करवाते समय हल्की फुल्की बातचीत के दौरान ही ऐसी कई बातें सिखाई जा सकती हैं जो उन्हें जानना जरूरी है.
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बात करें
बच्चों के साथ बातचीत के रास्ते हमेशा खुले रखें. उन्हें भरोसा दिलाएं कि वे आपसे कुछ भी कह सकते हैं और उनकी कही बातों को आप गंभीरता से ही लेंगे. मां बाप से संकोच हो तो बच्चे अपनी उलझन किसी से नहीं कह पाएंगे.
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चुप्पी में छिपा है राज
बच्चों का काफी समय परिवार से दूर स्कूलों में बीतता है. बच्चों से स्कूल की सारी बातें सुनें. अगर बच्चा बेवजह गुमसुम रहने लगा हो, या पढ़ाई से अचानक मन उचट गया हो, तो एक बार इस संभावना की ओर भी ध्यान दें कि कहीं उसे ऐसी कोई बात अंदर ही अंदर सता तो नहीं रही है.
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सही गलत की सीख दें
बच्चों को बताएं कि ना तो उन्हें अपने प्राइवेट पार्ट्स किसी को दिखाने चाहिए और ना ही किसी और को उनके साथ ऐसा करने का हक है. अगर कोई बड़ा उनके सामने नग्नता या किसी और तरह की अश्लीलता करता है तो बच्चे माता पिता को बताएं.