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मुगाबे के भाग्य का फैसला

३१ जुलाई २०१३

जिम्बाब्वे में बुधवार को राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं. मैदान में तानाशाही का तमगा लगा चुके 89 साल के रॉबर्ट मुगाबे तो हैं ही, उनके राजनीतिक दुश्मन स्वांगिराई भी वोट मांग रहे हैं. क्या जनता मुगाबे को कड़ा संदेश देगी.

तस्वीर: Getty Images/APF/Allen Pizzey

2008 में राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे ने हिंसक रास्ते के सहारे जीत पक्की की थी. राष्ट्रपति पद के दूसरे उम्मीदवार मॉर्गन स्वांगिराई की पार्टी मूवमेंट फॉर डेमोक्रैटिक चेंज (एमडीसीटी) ने मुगाबे पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए. खुद स्वांगिराई हिंसा के डर से नीदरलैंड्स के दूतावास में छिप गए. 2009 में फिर अफ्रीकी संघ ने मुगाबे से एक राष्ट्रीय गठबंधन की सरकार का गठन करने को कहा. मुगाबे की जेडएएनयू पीएफ पार्टी फिर स्वांगिराई से जुड़ गई और स्वांगिराई को प्रधानमंत्री का पद सौंपा गया.

मुगाबे ने जिम्बाब्वे की आजादी की लड़ाई में एक भूमिका निभाई. लेकिन 1987 में राष्ट्रपति बनने के बाद उनका शासन तानाशाही में बदल गया. उन्होंने अपने देश में श्वेत किसानों से जमीन वापस लेने का फैसला किया. 2000 में जिम्बाब्वे की सर्वोच्च अदालत ने इसे संविधान के खिलाफ बताया लेकिन मुगाबे ने मामले पर फैसला ले रहे जजों को बदल दिया. इसके बाद कई श्वेत किसान जिम्बाब्वे से दूसरे देश चले गए.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

33 साल के शासन के बाद भी मुगाबे गद्दी पर टिके रहना चाहते हैं. उन्होंने हाल ही में संविधान में वह कानून बदल दिया जिसके मुताबिक केवल पांच बार लगातार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा जा सकता है. अब 89 साल के मुगाबे सैद्धांतिक तौर पर और दस साल तक अपने देश पर राज कर सकेंगे.

प्रधानमंत्री और मुगाबे को टक्कर देने वाले स्वांगिराई चाहते थे कि गठबंधन सरकार चुनावों से पहले सुधारों को लागू करे. लेकिन मुगाबे ने चुनाव की तारीख पहले ही तय कर दी और सुधार लटक गए. यह अफ्रीकी संघ के साथ समझौते का उल्लंघन है. विपक्ष के साथ दक्षिण अफ्रीकी विकास संगठन (एसएडीसी) भी पहले सुधार देखना चाहता है. लेकिन मुगाबे स्थानीय देशों के इस संगठन से भी झगड़ा कर रहे हैं. वह सिर्फ अपना मकसद हासिल करना चाहते हैं, कहते हैं, "हम अपनी मर्जी से एसएडीसी का हिस्सा बने हैं. अगर एसएडीसी कुछ बेवकूफी करने का फैसला करती है तो हम उससे बाहर भी निकल सकते हैं."

तस्वीर: imago stock&people

हो सकता है कि मुगाबे ऐसा करें भी. जिम्बाब्वे में अलग अलग गैर सरकारी संगठनों के संघ ऑर्गनाइजेशन क्राइसिस इन जिम्बाब्वे कोलिसन के निक्सन न्यिकादजिनो कहते हैं, "एक 89 साल के आदमी से आप और किस चीज की उम्मीद कर सकते हैं. आप एक ऐसे व्यक्ति की बात कर रहे जो जिम्बाब्वे के लोगों के बारे में नहीं बल्कि केवल अपने परिवार और अपने बारे में सोचता है. क्या आपको याद है कि वह कॉमनवेल्थ से बाहर निकल गये थे. उन्होंने धमकी दी है कि वह संयुक्त राष्ट्र से संपर्क नहीं करेंगे. और वह इसे चुटकी में कर सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे खुद, जेडएएनयू पीएफ, उनका परिवार, कुत्ते-बिल्लियां जिम्बाब्वे के लोगों से ज्यादा जरूरी हैं. हमें लगता है कि वह पागल हो गए हैं."

तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

स्वांगिराई का मानना है कि उनके यहां बिना सुधारों का चुनाव हो रहा है और वह एक ऐसे बाग में हैं, जो जस का तस है. लेकिन लोगों को भगवान पर विश्वास है और यकीन है कि बदलाव आएगा.

स्वांगिराई के अलावा वेल्शमैन न्कूबे भी उम्मीदवार हैं. वे एमडीसी के प्रमुख हैं जिसने स्वांगिराई की पार्टी से झगड़ा कर लिया. विश्लेषकों का मानना है कि न्कूबे देश में 10-15 फीसदी वोट हासिल कर सकते हैं, इससे चुनाव का रुख बदल सकता है. स्वांगिराई भी भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे हैं. अपनी प्रेमिकाओं और कई घोटालों की वजह से भी स्वांगिराई मतदाताओं के फैसले के प्रभावित करेंगे.

रिपोर्टः सारा श्टेफेन/एमजी

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