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मुझे जर्मन बनाओ

१० अगस्त २०१३

क्या आम जर्मन की तरह रहना ब्रिटिश नागरिक को ज्यादा आर्थिक कामयाबी दिला सकता है? एक ब्रिटिश परिवार ने टीवी पर "मेक मी ए जर्मन" प्रोग्राम में यही कोशिश की. क्या हुआ नतीजा?

तस्वीर: DW/C. Deicke

गहराते आर्थिक संकट के बीच एक देश ऐसा है जो डटकर खड़ा है, जर्मनी. वह नियमित रूप से पड़ोसियों से बेहतर आर्थिक प्रदर्शन कर रहा है और यूरोप में आदर्श के रूप में देखा जा रहा है. मामूली विकास दर में उलझा और मंदी से बाहर निकलने में नाकाम ब्रिटेन जर्मनी से तुलना करने में व्यस्त है. आखिरकार जर्मनी में मशीनरी उद्योग कामयाब क्यों है?

जर्मनों जैसा होने की जरूरत

ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस साल एक फैक्ट्री के दौरे पर कहा, "हम सबको काम करने के मामले में कुछ ज्यादा जर्मन जैसा होने की जरूरत है." इसी तरह के विश्वास की वजह से बीबीसी को वह टीवी कार्यक्रम बनाने की प्रेरणा मिली, जिसमें यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी पर ध्यान दिया गया है. इनमें से एक था "मेक मी ए जर्मन." इसके लिए एक ब्रिटिश परिवार को, जिसमें एक प्रेजेंटर, उनकी लेखिका पत्नी और दो बच्चों को औसत जर्मन की तरह रहने के लिए जर्मनी भेजा जाता है. जस्टीन रॉलेट और उनकी पत्नी बी कार्यक्रम के लिए प्रयोगात्मक जिंदगी का परीक्षण करते रहे हैं. कुछ साल पहले वे एक साल के प्रोजेक्ट "एथिकल मैन" के लिए अपने हैम्प्सटेड शहर के घर में नैतिकता से भरी जिंदगी बिताने की कोशिश की वजह से सुर्खियों में आए.

प्रोग्राम के दौरान दर्शकों को पता चलता है कि वे अपने दो बड़े बच्चों को ब्रिटेन में ही छोड़ आए हैं, क्योंकि औसत जर्मनों के दो से कम बच्चे होते हैं. वे अपने दो छोटे बच्चों के साथ ईस्टर से पहले जर्मन शहर न्यूरेमबर्ग के लिए रवाना होते हैं. शहर उस समय भी बर्फ में डूबा था और वहां कड़ाके की सर्दी थी. वे शहर के गोहो इलाके में 125 यूरो प्रति हफ्ते किराए पर एक अपार्टमेंट किराए पर लेते हैं, क्योंकि जस्टीन के अनुसार अधिकांश जर्मन किराए के मकानों में ही रहते हैं. ब्रिटिश लोगों की अपेक्षा बहुत ही कम, जिनकी सोच है कि मेरा घर मेरा महल है. नतीजतन ब्रिटिश लोगों का औसत कर्ज जर्मनों से ज्यादा है, 53,000 पाउंड ज्यादा.

तस्वीर: DW/N. Sipar

जर्मन बनने की सीख

ब्रिटिश दंपती को पता चलता है कि जर्मन लोग हर हफ्ते बहुत सारा मीट और आलू खाते हैं और बीयर पीते हैं. औसत जर्मन औरतें हर दिन 4.28 घंटे घर का काम करती हैं, जिसमें कपड़े धोना, खाना बनाना और साफ सफाई शामिल है. रॉलेट अलसाई आंखों के साथ हर सुबह 6.23 मिनट पर उठते हैं, जो औसत जर्मन मर्दों के उठने का समय माना जाता है. उनसे बच्चों के साथ अपने घर पर रहने और घर के काम के अलावा बच्चों की देखभाल का वह काम करने की उम्मीद की जाती है.

रॉलेट की पत्नी बी ने अपने अनुभवों के बारे में डॉयचे वेले को बताया, "मैं घर पर रहने वाली और काम नहीं करने वाली महिला बन गई, ये सचमुच मेरे वश की बात नहीं है. बहुत जल्दी यह बहुत स्पष्ट हो गया कि बहुत सारे दबाव हैं जो मांओं को काम न करने को प्रेरित करते है और मुझे उनके साथ संघर्ष करना पड़ा." लेकिन यदि उसका मतलब यह है कि परिवारों को साथ समय गुजारने के लिए ज्यादा वक्त मिलता है, तो क्या उसे सकारात्मक नहीं समझा जा सकता? बी साफ साफ नकारती हैं, "स्कैंडेनेवियाई मॉडल को मैं ज्यादा सकारात्मक समझती, जहां पुरुषों को ज्यादा समय घर पर गुजारने के लिए बढ़ावा दिया जाता है."

सलीकेपन का अहसास

इसके बावजूद बी स्वीकार करती हैं कि उन्होंने इस टीवी परीक्षण का लुत्फ उठाया और जर्मन समाज से बहुत कुछ सीखा. रॉलेट को इस बीत की खुशी थी उसने बीयर और वाइन के अपने हफ्ते का कोटे का बखूबी इस्तेमाल किया, "मैं पर्यावरण की चिंताओं से भरपूर आउटडोर लाइफस्टाइल का मजा लिया. मुझे वहां का खाना पीना बहुत अच्छा लगा. मुझे समुदाय की भावना और सलीकापन पसंद आया. मेरे विचार में ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जिन्हें हम सीख सकते हैं."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

बी खुद आधी जर्मन हैं, हालांकि वह ब्रिटेन में पली बढ़ी हैं. प्रोग्राम की शुरुआत में दंपती उसकी ट्यूटोनिक क्वालिटी के बारे में मजाक करता है. वह बताती हैं कि उसे बैठना और गप लगाना पसंद है. तो क्या दो हफ्ते के परीक्षण के बाद उसने खुद को ज्यादा जर्मन या ज्यादा ब्रिटिश पाया? "इससे मेरे ब्रिटिश व्यवहार की पुष्टि नहीं हुई. कुछ चीजें, जो जस्टीन को परेशान कर रही थीं, मुझे सचमुच लगा कि वे अच्छी हैं." बी को जर्मनों का खुलापन पसंद आया कि यदि उन्हें कुछ बुरा लगे तो वे बोल देते हैं कि यह ठीक नहीं है, आपको ऐसा करना चाहिए. "ब्रिटेन में लोग उसके बारे में खुद ही बड़बड़ाएंगे, लेकिन जर्मनी में आपको बता देंगे कि वे क्या सोचते हैं."

सफलता का राज

रॉलेट को एक फैक्ट्री में काम पर लगाया गया. उनकी औसत मासिक तनख्वाह 2500 यूरो तय की गई. उनके जर्मन साथी टीमो और डैनी को अपना काम अच्छा लगता था और वे कड़ी मेहनत करते हैं. उन्हें जर्मन मिटेलश्टांड यानी मंझौले आकार वाली कंपनियों में समुदाय की भावना का अहसास हुआ. बी के शब्दों में लोग इसमें रच बस गए हैं. ब्रिटिश जोड़े ने नियमित रूप से औसत जर्मनों को हर शाम अपने घर बुलाया ताकि वे जर्मनी के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल कर सकें.

सॉसेज और पोटैटो सलाद के खाने पर एक छात्र ने उन्हें बताया कि "उसे विश्वास ही नहीं होता कि ब्रिटिश लोग अपने सहकर्मियों को कितनी सारी निजी बातें बता देते हैं." हफ्ते की छुट्टी वाले दिनों की योजनाएं, एक रात पहले उन्होंने कितनी पी, इन सबका उसके लिए मतलब था कि ब्रिटेन के कामगार कम कुशल हैं. इसे समझने के लिए जस्टीन रॉलेट काम पर एक एसएमएस भेजता है और साथी कामगारों की निगाहों से समझ जाता है कि औसत जर्मन से आठ घंटे काम करने की उम्मीद की जाती है, पूरी एकाग्रता के साथ.

मेक मी ब्रिट

इस टीवी प्रोग्राम से एक मजेदार बात यह पता चली कि जर्मन कभी भी "मेक मी ए ब्रिट" शो नहीं बनाएंगे. शुरू में रॉलेट सोचते हैं कि जर्मन अंग्रेजों के बारे में क्या सोचते हैं. हफ्ते के बीच एक शाम खाने पर उसे उसके सवाल का जवाब मिल जाता है, बोरिंग और बरसात वाला देश. और पूछने पर एक और जर्मन मेहमान बताता है, "हम कभी कभी महारानी के बारे में सुनते हैं," और उसके बाद अंग्रेजों के काम करने की आदत का मजाक उड़ाना शुरू कर देता है.

थोड़े अवाक होकर रॉलेट कहते हैं, "बोलो, बोलो, जैसा है." ब्रिटेन के लिए जर्मन उदासीनता से ज्यादा परिचित बी बताती हैं कि उन्हें बहुत आश्चर्य नहीं हुआ, "यह एक कारण था कि मैं ये प्रोग्राम करना चाहती थी, क्योंकि मुझे जर्मनों के प्रति ब्रिटिश रवैये पर आश्चर्य होता है. हम अब भी जर्मनों के खिलाफ एकतरफा द्वेष रखते हैं, जबकि जर्मन परवाह ही नहीं करते कि ब्रिटिश क्या सोचते हैं." बी शिकायत करती हैं कि ज्यादातर ब्रिटिश अभी भी विश्व युद्ध की सोच में फंसे हैं.

बच्चों का स्वर्ग

कड़ी मेहमत वाले हफ्ते के बाद रॉलेट परिवार को पता चला कि रविवार आराम का दिन है. आप सुपरमार्केट नहीं जा सकते हैं क्योंकि रविवार को दुकानें बंद होती हैं और पड़ोसियों को अच्छा नहीं लगेगा कि बच्चे छह बजे सुबह से उठकर उधम मचाने लगें. हफ्ते के दिनों में रॉलेट दंपती की बेटी इलजा जर्मन जिंदगी का मजा लेने के वाल्डकिंडरगार्टन यानि फॉरेस्ट डेकेयर में जाती है. बी उत्साहित होकर बताती हैं, "इसे देखकर मुझे खुद फिर से बच्चा बन जाने का मन करता है. बच्चों को दौड़ते भागते और पेड़ों पर चढ़ते देखना, इतना दिलकश, इतना प्यारा था कि यह शायद मेरे परीक्षण का सबसे पसंदीदा हिस्सा था." वे कहती हैं, "बच्चे बस बच्चे रहते हैं, सब कुछ उनकी मर्जी से चलता है."

बी अपने परीक्षण में घिरी थीं, बंधी थीं. उन्हें जर्मन अनुभव से क्या मिला? "मुख्य बात मैंने यह सीखी कि हम सब काम पर कुछ ज्यादा एकाग्र हो सकते हैं. इसके बदले काम का दिन छोटा हो सकता है, लेकिन इसकी दलील देना मुश्किल है." वे इनमें से कुछ सीखों को ब्रिटेन के रोजमर्रे में शामिल करना चाहती हैं. उन्हें जर्मन कुशलता पसंद आई. बी कहती हैं कि वे जर्मन कुशलता अपने काम में शामिल करने की कोशिश करेंगी. वे किस हद तक यह कर पाएंगी, ये साफ नहीं होता.

रिपोर्ट: एम्मा वालिस/एमजे

संपादन: ए जमाल

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