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'मुझे भारतीय नहीं मानते'

१९ सितम्बर २०१३

जर्मन राज्य लोअर सैक्सनी के बारे में कहा जाता है कि वहां के लोग सबसे अच्छी जर्मन बोलते हैं. उतनी ही अच्छी जर्मन है सेबास्टियान एडाथी की, जिनकी जड़ें केरल से जुड़ी हैं. यहां के लोग एक दशक से इन्हें अपना नेता चुन रहे हैं.

तस्वीर: DW/M. Gopalakrishnan

चाहे चुनाव प्रचार हो, घर हो या दफ्तर, एडाथी का कुत्ता फेलिक्स हमेशा उनके साथ रहता है. एडाथी समाजवादी जर्मन सोशलिस्ट पार्टी एसपीडी के सदस्य हैं. जर्मन राज्य लोअर सैक्सनी में बुएकेबुर्ग शहर और आसपास के इलाके का एडाथी जर्मन संसद में प्रतिनिधित्व करते हैं.

एडाथी से सबसे पहला सवाल तो उनके कुत्ते के सिलसिले में ही है, "आपका कुत्ता यह सब कैसे झेल लेता है?"

"वह काफी कूल है, तनावरहित", एडाथी का सीधा जवाब. 22 सितंबर को होने वाले चुनावों के लिए एडाथी और उनकी टीम बुएकेबुर्ग पहुंची है. प्रचार में उनका साथ देने लोअर सैक्सनी के मुख्यमंत्री श्टेफान वाइल भी पहुंचे हैं.

प्रचार से संतुष्ट

तस्वीर: DW/M. Gopalakrishnan

जर्मनी में गर्मियों का मौसम खत्म हो चुका है. पतझड़ आने वाला है और मौसम बहुत अच्छा नहीं. एसपीडी ने अपने समर्थकों के लिए तंबू लगवाएं हैं. लेकिन इतने बुरे मौसम में तंबू और मुफ्त कॉफी के साथ एसपीडी का म्यूजिक बैंड भी लोगों को लुभा नहीं पा रहा. भाषण सुनने उम्मीद से कुछ कम लोग आते हैं.

लेकिन इसके बावजूद एडाथी इस रैली से संतुष्ट हैं, "मैं इस चुनाव क्षेत्र से पांचवीं बार खड़ा हो रहा हूं. ऐसे में आपके पास अनुभव होता है. हां, संसद के स्तर पर हम विपक्ष की पार्टी हैं, लेकिन जहां तक इस इलाके का सवाल है, हमारी स्थिति यहां अच्छी है."

अपने चुनाव क्षेत्र में एडाथी एक सरल रणनीति का इस्तेमाल करते हैं, "चुनाव से पहले महीनों में मैं यहां के लोगों से ठोस मुद्दों पर बात करता हूं. इसके लिए अलग अलग क्षेत्रों से विशेषज्ञों को बुलाया जाता है. कुछ हफ्ते पहले जर्मनी के पूर्व चांसलर गेर्हार्ड श्रोएडर हमारी बैठक में आए और आज लोअर सैक्सनी के मुख्यमंत्री ने हमारा साथ दिया. हम लोगों से पूछते हैं कि क्या आप शिक्षा के लिए अधिक पैसे चाहते हैं, या सामाजिक या स्वास्थ्य बीमा के लिए."

भारतीय होने का असर

तस्वीर: DW/M. Gopalakrishnan

किसानों, ट्रैक्टरों और मवेशियों का गढ़ माने जाने वाले ठेठ जर्मन इलाके में आधा भारतीय होने का एडाथी पर क्या असर होता है?, "मेरे हिसाब से तो कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरा चुनावी क्षेत्र किसानों वाला है. यहां के शहर छोटे हैं लेकिन एक बड़े इलाके में फैले हैं और पिछले चुनावों में तो लोगों ने मेरी पार्टी के मुकाबले मुझे ज्यादा वोट दिए."

विदेशी मूल का होना कुछ हद तक एडाथी को महंगा पड़ा है. पिछले साल एडाथी के दफ्तर के पोस्ट बॉक्स में नवनाजियों ने बम लगाया था. लेकिन इसकी वजह यह भी हो सकती है कि एडाथी नवनाजी संगठन एनएसयू की जांच कर रहे आयोग के प्रमुख हैं. एडाथी के पिता केरल से जर्मनी आए. वह यहां के एक चर्च में पादरी थे. उनका परिवार मध्यवर्गीय है और एडाथी खुद समझते हैं कि जर्मनी में प्रवासी मूल के होने से परेशानी तब बढ़ जाती है जब एक परिवार समाज में निचले वर्ग से हो.

सबका प्रतिनिधि

तो एडाथी अपने चुनाव क्षेत्र में संतुलन कैसे लाते हैं. उनके चुनाव क्षेत्र में प्रवासी भी हैं जो एडाथी से उम्मीद रखते हैं कि वह उनकी परेशानियों पर नजर डालेंगे. दूसरी तरफ जर्मन मूल के मतदाताओं को भी यह महसूस नहीं होना चाहिए कि उनकी परेशानियों की अनदेखी हो रही है, "मैं सबका प्रतिनिधि हूं. मैं इस इलाके में रह रहे विदेशियों के लिए भी जिम्मेदार हूं और उन्हें अपने परिवार से लेकर कोई काम होता है तो वह मेरे पास आते हैं. एक जर्मन नागरिक और सांसद होने के नाते मैं हर सांसद से उम्मीद करता हूं कि वह लोगों की बात सुने. हां, जहां तक शोषण की बात है, उन मुद्दों पर मैं बात करता हूं. मैं अपने साथ काम कर रहे हर सांसद से यह उम्मीद करता हूं. लेकिन मैं अपने को केवल इस बात तक नहीं सीमित रखना चाहता कि मेरे पिता भारतीय मूल के हैं."

लेकिन भारत में एडाथी की रुचि तो है, खासकर केरल के खाने में. वह भारत और जर्मनी के बेहतर रिश्तों के लिए काम करते रहते हैं और वहां हो रही घटनाओं को भी बारीकी से देखते हैं. तो भारत में जो घटनाएं होती हैं, क्या एडाथी से उम्मीद की जाती है कि वह इनके बारे में अपने जर्मन साथियों को समझा सकें? "मैं अपने को भारतीय नहीं मानता, आप भी मुझे भारतीय नहीं मानतीं. हां, लेकिन मैं बचपन से भारत से ज्यादा जुड़ा हूं, यहां के बाकी लोगों के मुकाबले. मुझसे कोई उम्मीद नहीं रख सकता कि मैं भारत के बारे में पूरी तरह जानता हूं या वहां के सामाजिक परेशानियों को सुलझा सकता हूं. यह तो वही बात हुई, कि आप किसी खानसामे के बेटे से उम्मीद करें कि वह भी आगे चलकर खाना ही पकाए."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः अनवर जे अशरफ

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