दुनिया भर में पर्यावरण के लिए काम करने वाली लड़कियों को मीडिया में आजकल उनके देश की 'ग्रेटा थुनबर्ग' का नाम दे दिया जाता है. लेकिन भारत की आठ साल की पर्यावरण कार्यकर्ता लिसीप्रिया कांगुजाम को इस बात से परेशानी है.
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स्वीडन की ग्रेटा थुनबर्ग ने उस वैश्विक अभियान की शुरुआत की, जिसके तहत अलग अलग देशों में स्कूली बच्चों ने पर्यावरण के लिए हर शुक्रवार को प्रदर्शन शुरू किए. भारत के पूर्वोत्तर हिस्से से आने वाली लिसीप्रिया भी पर्यावरण को बचाने के लिए आवाज उठाती है, लेकिन खुद को "भारत की ग्रेटा थुनबर्ग" कहे जाने से उसे परेशानी है. पिछले दिनों उसने ट्विटर पर लिखा कि वह थुनबर्ग की नकल करने की कोशिश नहीं कर रही है.
अपने काम के लिए सम्मानित होने वाली लिसीप्रिया ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से कहा कि इस तरह की तुलना ठीक नहीं है और इस पर उसे दुख होता है. वह कहती है कि यह तुलना उसके काम की अहमियत को कम करती है. लिसीप्रिया के मुताबिक, उसने जुलाई 2018 में "द चाइल्ड मूवमेंट" शुरू किया था और उस वक्त थुनबर्ग का नाम कहीं सुनाई नहीं देता था.
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टाइम के कवर पर छाने वाले चेहरे
हर साल कुछ लोग या अभियान ऐसे होते हैं, जो दुनिया को एक नए दौर में ले जाते हैं. कुछ आशा बनते हैं और कुछ निराशा. अमेरिका की मशहूर टाइम मैगजीन साल के अंत में ऐसे ही अहम चेहरे चुनती हैं. एक नजर बीते 10 साल के अहम चेहरों पर.
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2019: ग्रेटा थुनबर्ग
स्वीडन की 16 साल की ग्रेटा थुनबर्ग पर्यावरण और जलवायु संकट का अहम चेहरा बन चुकी हैं. 2018 में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए ग्रेटा ने स्वीडन की संसद के बाहर विरोध-प्रदर्शन के लिए हर शुक्रवार अपना स्कूल छोड़ा था जिसे देखकर कई देशों में #FridaysForFuture के साथ एक मुहिम शुरू हो गई.
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2018: जमाल खशोगी
इस साल टाइम मैगजीन ने उम पत्रकारों को सम्मानित किया जो अपने देश में सरकार या मजबूत ताकतों के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. वॉशिंगटन पोस्ट के सऊदी स्तंभकार जमाल खशोगी को भी पत्रिका ने श्रद्धांजलि दी. साथ ही में कई अन्य देशों के पत्रकारों को भी टाइम ने इस सम्मान के लिए चुना.
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2017: साइलेंस ब्रेकर
वो लोग जिन्होंने यौन शोषण, उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई, जो मीटू आंदोलन में मुखर रहे, उन्हें इस साल टाइम के कवर पर जगह मिली. इनमें एक्टर एश्ले जूड, सिंगर टेलर स्विफ्ट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुजन फाउलर भी शामिल थे.
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2016: डॉनल्ड ट्रंप
हिलेरी क्लिंटन को हराकर, डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद इसी साल संभाला. ट्रंप "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे. सक्रिय राजनीति के अनुभव के बिना एक कारोबारी का इस तरह जीतना एक नई बात थी.
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2015: अंगेला मैर्केल
2005 से जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल, ग्रीस के आर्थिक संकट और यूरोप में प्रवासियों के संकट पर प्रभावशाली नेता बनकर दुनिया के सामने उभरीं. वह यूरोप की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती भी हैं.
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2014: इबोला फाइटर्स
ये शब्द उन स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिये प्रयोग किया गया जिन्होंने इबोला वायरस के प्रसार को रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. इसमें सिर्फ डॉक्टर, नर्स ही शामिल नहीं हैं, बल्कि एंबुलेंस कर्मचारी, मृत लोगों को दफनाने वाले कर्मचारी तक शामिल हैं.
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2013: पोप फ्रांसिस
इस साल पोप बेनेडिक्ट के इस्तीफे के बाद पोप फ्रांसिस को रोमन कैथोलिक चर्च के पोप चुने गए. यह पहला मौका था जब वेटिकन में बतौर पोप, दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के व्यक्ति की नियुक्ति हुई.
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2012: बराक ओबामा
मिट रॉमनी को हराकर बराक ओबामा दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए.
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2011: आंदोलनकारी
अरब क्रांति, टी पार्टी आंदोलन, जैसे आंदोलन में हिस्सा लेने वाले लोगों को इस साल टाइम मैगजीन ने अपना कवर पेज पर उतारा.
2010: मार्क जकरबर्ग
फेसबुक के सह संस्थापक मार्क जुकरबर्ग टाइम मैगजीन के कवर पेज पर रहे. मार्क ने फेसबुक की शुरुआत 2004 में की और आज दुनियाभर में इसके 241 करोड़ एक्टिव यूजर हैं.
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लिसीप्रिया ने अपने एक ईमेल में कहा, "अगर आप मुझे भारत की ग्रेटा कहेंगे, तो फिर आप मेरी स्टोरी को कवर नहीं कर रहे हैं. मेरी स्टोरी को डिलीट कर रहे हैं." पिछले दिनों उसने बेंगलुरू में साढ़े आठ हजार पेड़ काटने का विरोध किया. इन पेड़ों को सड़क चौड़ी करने के लिए काटा जा रहा था ताकि शहर में होने वाले एक ऑटो शो में नामी कारोबारी आनंद महिंद्रा की नई इलेक्ट्रिक कार को पेश किया जा सके.
पिछले एक साल में दुनिया भर में बच्चे पर्यावरण के लिए खास तौर से सक्रिय नजर आए हैं. लिसीप्रिया कहती है कि सबके योगदान पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उनकी तुलना ग्रेटा थुनबर्ग से नहीं की जानी चाहिए. वह कहती है, "विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा सबसे ज्यादा है. दुनिया और मीडिया को पर्यावरण के लिए काम करने वाले सभी लोगों के काम पर ध्यान देना चाहिए."
वैज्ञानिकों का कहना है कि विकासशील देशों और छोटे द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं. वहां अकसर सूखे और बाढ़ की स्थितियां पैदा हो रही हैं. सागरों का बढ़ता जलस्तर भी खतरे की घंटी है.
पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले एक थिंकटैंक जर्मनवॉच ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत पांचवा सबसे बड़ा देश है जिस पर मौसम बदलने की वजह से असर पड़ रहा है. भारत में 2018 में गर्मी का मौसम बहुत लंबा रहा जिसकी वजह से पानी की किल्लत हुई, फसलों को नुकसान हुआ जबकि दूसरी तरफ मॉनसून की वजह से बाढ़ और तूफान ज्यादा आए.
लिसीप्रिया का बयान ऐसे समय में सामने आया है जब हाल में दावोस के विश्व आर्थिक फोरम में ली गई एक फोटो पर विवाद हुआ. ग्रेटा थुनबर्ग और कुछ पश्चिमी देशों की युवा पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ ली गई इस फोटो में युंगाडा की 23 वर्षीय कार्यकर्ता वानेसा नकाटे भी थीं. लेकिन एक समाचार एजेंसी ने फोटो जारी करते हुए नकाटे को फोटो से बाहर कर दिया. इस फोटो को लेकर काफी विवाद हुआ और मीडिया पर नस्लवादी रवैया अपनाने का आरोप लगा.
यूरोप के कई देशों में स्कूली छात्र पर्यावरण संरक्षण पर जोर देने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. शुरुआत स्वीडन की छात्रा ग्रेटा थुनबर्ग ने की थी.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
बेल्जियम में प्रदर्शन
जनवरी के आखिरी दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद करीब 30 हजार स्कूली बच्चों ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए सरकार पर दबाव डालने के लिए प्रदर्शन किया.
तस्वीर: Reuters/F. Walschaerts
धरती बचाओ
छात्रों का यह प्रदर्शन पिछले चार हफ्तों से हर गुरुवार को हो रहा है. वे स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: Imago/Belga/N. Maeterlinck
कैसे रुके प्रदूषण
बेल्जियम की तरह यूरोप के दूसरे देशों के अलग अलग शहरों में भी छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं. जर्मनी में छात्रों और प्रशिक्षुओं का प्रदर्शन शुक्रवार को होता है.
तस्वीर: Reuters/F. Walschaerts
घर जाने की शर्त
पिछले शुक्रवार जर्मनी के विभिन्न शहरों में हजारों स्कूली और यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पर्यावरण के लिए प्रदर्शन किया. बर्लिन में प्रदर्शन का नजारा.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
विरोध की ताकत
छात्रों का ये प्रदर्शन स्वीडन की 15 वर्षीया स्कूली छात्रा ग्रेटा थूनबर्ग के विरोध से प्रभावित है जो पिछले छह महीने से हर शुक्रवार संसद के सामने क्लास छोड़कर धरना दे रही है.
तस्वीर: Luise Osborne/DW
दुनिया को चेतावनी
पोलैंड के स्कूली छात्रों ने विश्व जलवायु सम्मेलन के दौरान काटोवित्से में आयोजनस्थली पर पर्यावरण संरक्षण के लिए रैली निकाली थी.