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मुझे "भारत की ग्रेटा थुनबर्ग" मत कहो: लिसीप्रिया

६ फ़रवरी २०२०

दुनिया भर में पर्यावरण के लिए काम करने वाली लड़कियों को मीडिया में आजकल उनके देश की 'ग्रेटा थुनबर्ग' का नाम दे दिया जाता है. लेकिन भारत की आठ साल की पर्यावरण कार्यकर्ता लिसीप्रिया कांगुजाम को इस बात से परेशानी है.

Licypriya Kangujam
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Quicler

स्वीडन की ग्रेटा थुनबर्ग ने उस वैश्विक अभियान की शुरुआत की, जिसके तहत अलग अलग देशों में स्कूली बच्चों ने पर्यावरण के लिए हर शुक्रवार को प्रदर्शन शुरू किए. भारत के पूर्वोत्तर हिस्से से आने वाली लिसीप्रिया भी पर्यावरण को बचाने के लिए आवाज उठाती है, लेकिन खुद को "भारत की ग्रेटा थुनबर्ग" कहे जाने से उसे परेशानी है.  पिछले दिनों उसने ट्विटर पर लिखा कि वह थुनबर्ग की नकल करने की कोशिश नहीं कर रही है.

अपने काम के लिए सम्मानित होने वाली लिसीप्रिया ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से कहा कि इस तरह की तुलना ठीक नहीं है और इस पर उसे दुख होता है. वह कहती है कि यह तुलना उसके काम की अहमियत को कम करती है. लिसीप्रिया के मुताबिक, उसने जुलाई 2018 में "द चाइल्ड मूवमेंट" शुरू किया था और उस वक्त थुनबर्ग का नाम कहीं सुनाई नहीं देता था.

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लिसीप्रिया ने अपने एक ईमेल में कहा, "अगर आप मुझे भारत की ग्रेटा कहेंगे, तो फिर आप मेरी स्टोरी को कवर नहीं कर रहे हैं. मेरी स्टोरी को डिलीट कर रहे हैं." पिछले दिनों उसने बेंगलुरू में साढ़े आठ हजार पेड़ काटने का विरोध किया. इन पेड़ों को सड़क चौड़ी करने के लिए काटा जा रहा था ताकि शहर में होने वाले एक ऑटो शो में नामी कारोबारी आनंद महिंद्रा की नई इलेक्ट्रिक कार को पेश किया जा सके.

पिछले एक साल में दुनिया भर में बच्चे पर्यावरण के लिए खास तौर से सक्रिय नजर आए हैं. लिसीप्रिया कहती है कि सबके योगदान पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उनकी तुलना ग्रेटा थुनबर्ग से नहीं की जानी चाहिए. वह कहती है, "विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा सबसे ज्यादा है. दुनिया और मीडिया को पर्यावरण के लिए काम करने वाले सभी लोगों के काम पर ध्यान देना चाहिए."

वैज्ञानिकों का कहना है कि विकासशील देशों और छोटे द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं. वहां अकसर सूखे और बाढ़ की स्थितियां पैदा हो रही हैं. सागरों का बढ़ता जलस्तर भी खतरे की घंटी है.

पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले एक थिंकटैंक जर्मनवॉच ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत पांचवा सबसे बड़ा देश है जिस पर मौसम बदलने की वजह से असर पड़ रहा है. भारत में 2018 में गर्मी का मौसम बहुत लंबा रहा जिसकी वजह से पानी की किल्लत हुई, फसलों को नुकसान हुआ जबकि दूसरी तरफ मॉनसून की वजह से बाढ़ और तूफान ज्यादा आए.

लिसीप्रिया का बयान ऐसे समय में सामने आया है जब हाल में दावोस के विश्व आर्थिक फोरम में ली गई एक फोटो पर विवाद हुआ. ग्रेटा थुनबर्ग और कुछ पश्चिमी देशों की युवा पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ ली गई इस फोटो में युंगाडा की 23 वर्षीय कार्यकर्ता वानेसा नकाटे भी थीं. लेकिन एक समाचार एजेंसी ने फोटो जारी करते हुए नकाटे को फोटो से बाहर कर दिया. इस फोटो को लेकर काफी विवाद हुआ और मीडिया पर नस्लवादी रवैया अपनाने का आरोप लगा.

एके/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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