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मुर्सी की सुरक्षा में सेना तैनात

६ दिसम्बर २०१२

छह महीने के खुशनुमा एहसास के बाद मिस्र की सेना फिर सड़कों पर आई. टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों का सहारा लेते हुए सेना ने राष्ट्रपति आवास के बाहर प्रर्दशनकारियों को हटाया. राष्ट्रपति मुर्सी के विशेषाधिकार पर बवाल जारी.

तस्वीर: Reuters

राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के विरोधियों और समर्थकों के बीच रात हुई झड़पों में पांच लोग मारे गए और 600 से ज्यादा घायल हुए. इस दौरान गोलियां चलीं और खूब पत्थरबाजी भी हुई. प्रदर्शनकारियों ने मुर्सी की पार्टी के कुछ दफ्तरों में आग लगा दी. रात भर की हिंसा के बाद सेना को तैनात कर दिया गया. गुरुवार सुबह राष्ट्रपति आवास के चारों तरफ टैंक और बख्तरबंद गाड़ियां दिखाई पड़ीं. सेना ने प्रदर्शनाकारियों को दोपहर एक बजे तक इलाका खाली करने का आदेश दिया.

गुरुवार शाम तक सेना ने राष्ट्रपति निवास के आस पास के इलाके को खाली करा लिया. प्रदर्शनकारियों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे मुर्सी के आवास से 150 मीटर दूर रहें. राष्ट्रपति के विरोधी 300 मीटर पीछे हटे हैं और एक चौक पर जमा हो गए हैं.

रात भर हुई हिंसक झड़पेंतस्वीर: Reuters

इस बीच मिस्र की सर्वोच्च धार्मिक संस्था ने मुर्सी से कहा है कि वह विशेषाधिकार वाला विधान वापस लें. इस विधान की वजह से ही देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. पिछले महीने मुर्सी ने ये विशेषाधिकार हासिल किए. इनके तहत राष्ट्रपति के किसी भी फैसले को कोई भी अदालत चुनौती नहीं दे सकेगी. साथ ही संविधान लागू होने तक संविधान सभा को बर्खास्त नहीं किया जा सकेगा.

22 नवंबर के आए इस विधान के बाद विरोधी मुर्सी को मिस्र का 'नया तानाशाह' कर रहे हैं. संविधान के मसौदे को जल्दबाजी में पास करने से लोगों का गुस्सा और भड़क गया है. वहीं दो हफ्ते के प्रदर्शन के बावजूद राष्ट्रपति ने अब तक दवाब के आगे झुकने के कोई संकेत नहीं दिये हैं. मुर्सी मुस्लिम ब्रदरहुड की फ्रीडम एंड जस्टिस पार्टी के नेता है. उनका समर्थन कर रहे मुस्लिम ब्रदरहुड के महासचिव महमूद हुसैन ने प्रदर्शनकारियों को विदेशी एजेंट और मुबारक सत्ता का बचा खुचा अंश कहा है.

मुर्सी का कहना है कि विशेषाधिकार कुछ ही समय के लिए हैं. उनके मुताबिक संविधान पास होते ही वह विवादित अधिकार छोड़ देंगे. लेकिन अब संविधान को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व प्रमुख और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद अल बरदेई समेत कई आलोचकों का कहना है कि आनन फानन में संसद में भेजे गए संविधान के मसौदे में कई कमियां हैं. इसमें राजनीतिक, धार्मिक स्वतंत्रता को बचाने के लिए ठोस इंतजाम नहीं दिखते. महिलाओं के अधिकारों को लेकर भी मसौदा लचर है.

बुधवार को मुर्सी के चार सलाहकारों ने इन आपत्तियों की वजह से इस्तीफा दिया. पिछले हफ्ते भी तीन सलाहकारों ने इस्तीफा दिया था.

मिस्र की सड़कों पर एक बार फिर सेना को देखना अलग अनुभव है. पिछले साल अरब वंसत के बाद होस्नी मुबारक को सत्ता से हटाने में सेना ने अहम भूमिका निभाई. मुबारक के जाने के बाद सेना ने देश की कमान संभाली. देश में इस साल जून में चुनाव हुए, जिसमें मुर्सी 51 फीसदी वोटों के साथ मामूली अंतर से जीते.

गद्दाफी का विरोधतस्वीर: Reuters

जुलाई में राष्ट्रपति कार्यालय संभालने के बाद मुर्सी से मिस्र की जनता को कई उम्मीदें थीं. लेकिन 22 नवंबर के विधान में हालत बदल दिए. ताजा विवाद से सेना काफी दिनों तक दूर रही. हालांकि सेना का अब भी कहना है कि बल प्रयोग नहीं करेगी. रिपब्लिकन गार्ड के जनरल मोहम्मद जकी ने कहा, "सैन्य शक्ति का इस्तेमाल प्रदर्शकारियों को दबाने के लिए नहीं किया जाएगा." सेना के मुताबिक टैंको और बख्तरबंद गाड़ियों का इस्तेमाल एक सीमा रेखा की तरह किया गया है.

मिस्र के हालात से अब अन्य देशों की चिंता भी बढ़ने लगी है. अमेरिका को आशंका है कि एक बार फिर मिस्र अस्थिर हो सकता है. इस्राएल के साथ सैन्य समझौते के तहत अमेरिका ने मिस्र को 1.3 अरब डॉलर की सैन्य मदद दी है. ब्रिटेन ने भी मिस्र से अपील की है कि वह बातचीत के सहारे गतिरोध को खत्म करे.

ओएसजे/एनआर (रॉयटर्स)

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