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मुर्सी ने समर्थकों को सड़क पर उतारा

१ दिसम्बर २०१२

काहिरा में शनिवार को हजारों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के पक्ष में नारा बुलंद किया. मुर्सी ज्यादा ताकत हासिल करने की कोशिशों पर विपक्षियों की हायतौबा को दबाने में जुटे हैं और लोकतंत्र इंतजार में है.

तस्वीर: AP

काहिरा यूनिवर्सिटी के पास 50 हजार से ज्यादा लोगों ने हाथों में झंडे लहरा कर नारा लगाया, "लोग खुदा के कानून पर अमल चाहते हैं." बहुत सारे लोगों को इस प्रदर्शन के लिए बसों में भर कर काहिरा के बाहर से लाया गया था. मुर्सी शनिवार को ही किसी वक्त संविधान के लिए जनमत संग्रह की तारीख भी तय करने वाले हैं. शुक्रवार की शाम को ही आनन फानन में संविधान तैयार करने वाली सभा ने इसकी मंजूरी दी. इस सभा में प्रमुख रुप से इस्लामी ताकतें ही प्रभावशाली हैं. मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता और संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद एल बेलतागी ने रॉयटर्स को बताया, "हम लोग निश्चित रूप से राष्ट्रपति को आज संविधान सौंप देंगे." राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा है की संविधान सौंपने का काम स्थानीय समय के मुताबिक शाम सात बजे होगा.

मोहम्मद मुर्सी पिछले हफ्ते तब नए संकट में घिर गए जब उन्होंने खुद को असीमित अधिकार देते हुए राष्ट्रपति के फैसलों को न्यायपालिका के दायरे से बाहर निकाल दिया. उनकी दलील है कि यह तात्कालिक कदम मिस्र को लोकतांत्रिक देश में बदलने के काम में तेजी लाने के लिए है और जो बस नए संविधान के लागू होने तक ही प्रभावी होगा. 22 नवंबर को मुर्सी ने यह अधिकार हासिल किए इसके एक दिन पहले ही गजा में युद्धविराम पर इस्रायल और हमास के बीच समझौता करा कर उन्होंने दुनिया भर में तारीफ बटोरी थी. यह अधिकार लेने के साथ ही उनके विरोधी उनसे नाराज हो गए और मिस्र की 8.3 करोड़ लोगों के दिलों की दरार और चौड़ी हो गई. काहिरा में एक बार फिर विरोध प्रदर्शनों की लपटों में घिर गया, दो लोग मारे गए हैं सैकड़ों घायल हुए हैं. विपक्ष का कहना है कि देश में फिर तानाशाही आ गई. शुक्रवार को हजालों मिस्रवासियों ने मुर्सी के खिलाफ प्रदर्शन किया. तहरीर चौक पर एक बार फिर वही नारे बुलंद हुए जो मुबारक को हटाने के लिए गूंज रहे थे. सिर्फ काहिरा में ही नहीं सिकंदरिया में तो प्रदर्शन कर रहे लोगों पर मुर्सी समर्थकों ने पथराव भी किया और स्थिति को ज्यादा तनावपूर्ण बना दिया.

तहरीर चौक पर मुर्सी का विरोधतस्वीर: Reuters

उत्तरी काहिरा में रहने वाले 23 साल के मोहम्मद नोशी का कहना है कि वह मुर्सी और उनको मिले नए अधिकार का समर्थन कर रहे हैं. नोशी के मुताबिक, "जो लोग तहरीर में हैं वो सबके प्रतिनिधि नहीं हैं. ज्यादातर लोग मुर्सी के पक्ष में हैं और वो इस अधिकार के भी खिलाफ नहीं." कट्टरपंथी सलाफी इस्लामी विद्वान मोहम्मद इब्राहिम का कहना है कि धर्मनिरपेक्ष सोच वाले मिस्रवासी शुरूआत से ही जंग हार रहे हैं. इब्राहिम ने रॉयटर्स से कहा, "वे लोग आज मिस्रवासियों के विशाल प्रदर्शन के आगे पूरी तरह से हार जाएंगे. इस प्रदर्शन का नारा है साजिशन अल्पसंख्यक को न, विघटनकारी निर्देशों को न और स्थिरता व शरिया को हां."

मुर्सी ने ऐसे बहुत से जजों को किनारे कर दिया है जो जनमत संग्रह की निगरानी करते. उन्हें मिले अधिकार ने अदालत की ताकत छीन ली है. जजों में ज्यादातर तो मुबारक के जमाने में ही नियुक्त हुए हैं उनमें से कइयों ने मुर्सी का विरोध किया है. हालांकि मुर्सी कहते हैं कि वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं. राष्ट्रपति कार्यालय से जुड़े एक सूत्र ने बताया है कि मुर्सी मुट्ठी भर जजों को अपने पक्ष में ले आएंगे. कभी मुस्लिम ब्रदरहुड के बड़े नेता रहे मुर्सी ने अपने उदार, वामपंथी, ईसाई और दूसरे विपक्षियों को एकजुट कर दिया है. अब इन्हीं लोगों ने जमनत संग्रह का बायकॉट कर दिया है हालांकि संविधान तो हर हाल में पास होगा ही. अगर जमनमत संग्रह में लोग संविधान को न कह देते हैं तब भी मुर्सी को एकछत्र राज करने का मौका मिल जाएगा क्योंकि इसके लिए उन्होंने पहले ही अधिकार हासिल कर लिए हैं.

विशेषाधिकार से क्या चाहते हैं मुर्सी?तस्वीर: AP

मिस्र में सेना के सहयोग से चले मुबारक के तीस साल के शासन को खत्म करने की जनता की कोशिश भी इसके साथ ही सड़कों पर वापस उतर आएगी जाहिर है कि ऐसे में देश में अनिश्चितता और आर्थिक मुश्किल बढ़ेगी. मुर्सी के पीछे खड़े मुस्लिम ब्रदरहुड और उसके कट्टरपंथी सलाफी सहयोगी हालांकि मानते हैं कि वो अपने दम पर समर्थन जुटा कर जनमत संग्रह में जीत जाएंगे. राष्ट्रपति ने भी कहा है कि देश में, "तानाशाही के लिए कोई जगह नहीं है." पर इतना कहने भर से ही सब कुछ नहीं हो जाता. संविधान के कई प्रावधानों का लोग विरोध कर रहे हैं. खासतौर से महिला अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर प्रबल विरोध है. इसके अलावा कुछ धाराएं ऐसी हैं जो मानवाधिकारों के उल्लंघन का हथियार बन सकती हैं क्योंकि उनकी व्याख्या ठीक से नहीं की गई है. ईशनिंदा को लेकर भी इसी तरह की बात है. संविधान के जरिए नए इस्लामी तत्वों को शामिल कर लिया गया है लेकिन कहा गया है कि पहले की तरह विधायिका के लिए प्रमुक स्रोत "शरिया के सिद्धांत" ही रहेंगे.

विरोध प्रदर्शनों का एक नया दौर शुरू हो गया है और इसमें स्थानीय मीडिया भी अपनी भूमिका निभा रहा है. कई स्वतंत्र अखबारों ने कहा है कि वो मंगलवार को विरोध में अखबार नहीं छापेंगे. एक अखबार में यह भी खबर है कि बुधवार को तीन निजी सेटेलाइट टीवी चैनल अपना प्रसारण बंद रखेंगे. मिस्र में जब तक संविधान पारित नहीं हो जाता तब तक संसदीय चुनाव नहीं हो सकते. मिस्र की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत ने इस साल जून में इस्लामी प्रभुत्व वाले निचले सदन को भंग कर दिया और तब से देश चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बगैर ही चल रहा है. राजनीतिक रस्साकसी बता रही है कि अभी लोकतंत्र का सफर लंबा है.

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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