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मुलायम ने लोकसभा चुनाव की संभावना जताई

२३ मार्च २०१२

यूं तो समाजवादी पार्टी भारत सरकार के लिए संकटमोचक है लेकिन पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह खुद ही कह रहे हैं कि चुनाव की कोई गारंटी नहीं होती, इसलिए पार्टी को इसके लिए तैयार रहना चाहिए.

तस्वीर: AP

मुलायम ने अपने बेटे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहा कि छह महीने में चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादे दिखने शुरू होने चाहिए. समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की है. राम मनोहर लोहिया के जन्मदिन के मौके पर आयोजित सभा में मुलायम ने कहा, "इस बात की कोई गारंटी नहीं कि लोकसभा चुनाव कब हो जाएं."

हालांकि समाजवादी पार्टी केंद्र की यूपीए सरकार के साथ है और अभी हाल में एनसीटीसी के मुद्दे पर लोकसभा और राज्यसभा में इसने कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार का सहयोग किया था. अब समाजवादी पार्टी ने केंद्र सरकार को अजीब भ्रम की स्थिति में ला खड़ा किया है. वह सरकार का सहयोग जारी रखने की बात करते हैं लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि उनकी पार्टी सरकार में शामिल नहीं होगी क्योंकि इस सरकार के गिनती के दिन बचे हैं.

मध्यावधि चुनाव के कयास

कांग्रेस और इसकी प्रमुख सहयोगी पार्टी तृणमूल कांग्रेस में अनबन के बीच बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने भारत में मध्यावधि चुनाव के कयास लगाने शुरू कर दिए हैं. बीजेपी, अकाली दल, बीएसपी और अब समाजवादी पार्टी को लगता है कि भारत में तय वक्त से पहले ही चुनाव कराने पड़ेंगे. मौजूदा सरकार का कार्यकाल 2014 में खत्म हो रहा है. मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के लोकसभा में 22 सांसद हैं, जबकि तृणमूल के 19 सांसद.

मुलायम सिंह के चुनाव संबंधी बयान के बाद बीजेपी ने इस पर भी निशाना साधा है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का कहना है कि जब मुलायम को सरकार के स्थायित्व को लेकर शंका है तो फिर वे उसका साथ क्यों दे रहे हैं. जेटली ने कहा कि उन्हें बार बार सरकार को संकट से निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मुलायम ने यूपीए 1 में भी सरकार का साथ दिया था.

मुलायम और अखिलेशतस्वीर: UNI

घोटालों की सरकार

यूपीए ने 2009 में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की लेकिन इसके बाद से ही वह तरह तरह के घोटालों में फंस गई. टेलीकॉम और कॉमनवेल्थ घोटाले के बाद आदर्श हाउसिंग घोटाला और अब कोयला घोटाले की आंच में सरकार बुरी तरह झुलस गई है. ऊपर से अन्ना हजारे की मुहिम को लेकर सरकार पर और भी दबाव बढ़ गया है. भारत की आम जनता ने लोकपाल विधेयक की मांग की है लेकिन उस पर जबरदस्त राजनीति के बीच वह संसद में पास नहीं हो पाया है.

सरकार के कई मंत्रियों को जेल जाना पड़ा है, जबकि महंगाई को लेकर भी उसकी बुरी हालत है. पिछले दो साल में भारतीय रिजर्व बैंक ने 13 बार ब्याज दर बदला है पर महंगाई काबू में नहीं आ पाई है. इन सबके बीच भारत का विकास दर पिछले सालों में पहली बार गिरकर सात प्रतिशत से नीचे चला गया है, जिसे लेकर हाय तौबा मच रही है.

राजनीतिक दांव पेंच

दूसरी तरफ राजनीतिक तौर पर भी सरकार को बड़ी परेशानी झेलनी पड़ी है. हाल में पांच राज्यों में हुए चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा. खास तौर पर उत्तर प्रदेश की हार कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी साबित हुई क्योंकि वहां राहुल गांधी ने निजी तौर पर चुनाव प्रचार किया था. कांग्रेस राहुल को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहती है.

हाल ही में रेल बजट के बाद कांग्रेस की सहयोगी पार्टी तृणमूल से रिश्ते बेहद खराब हो गए, जब तृणमूल पार्टी के ही दिनेश त्रिवेदी ने पार्टी हाईकमान की अनदेखी कर बजट पेश कर दिया. तृणमूल ने इसके बाद कांग्रेस से त्रिवेदी को हटाने के लिए कहा. इस पूरे मुद्दे में तृणमूल के साथ साथ यूपीए सरकार की भी किरकिरी हुई.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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