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मुश्किल में रिसाइक्लिंग उद्योग

मेलानी हॉल/ओएसजे४ मार्च २०१६

सस्ते कच्चे तेल की मार रिसाइक्लिंग उद्योग पर पड़ने लगी है. नया प्लास्टिक ज्यादा सस्ता हो चुका है और इसकी मार आखिरकार पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी रिसाइक्लिंग के मामले में आदर्श माना जाता है लेकिन सस्ता कच्चा तेल अब मुश्किल खड़ी कर रहा है. कच्चे तेल की सफाई के दौरान ही प्लास्टिक और मोम जैसे उत्पाद भी मिलते हैं. यही वजह है कि सस्ते दाम की वजह से नया प्लास्टिक बनाना ज्यादा किफायती हो चुका है. प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग तुलनात्मक रूप से महंगी हो गई है.

जर्मनी में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग करने वाली कंपनियां दबाव महसूस करने लगी हैं. महंगे होने के कारण रिसाइकिल्ड प्लास्टिक की मांग कम हो रही हैं. जर्मनी के कचरा, जल और कच्चा माल प्रबंधन उद्योग संघ के प्रमुख पेटर कुर्थ के मुताबिक हालात गंभीर हो रहे हैं. रिसाइक्लिंग से जुड़ी कंपनियों को बहुत कम ग्राहक मिल रहे हैं.

यूरोप में बेल्जियम, आयरलैंड और जर्मनी रिसाइक्लिंग के चैंपियन माने जाते हैं. इन देशों में सरकारें भी रिसाइक्लिंग उद्योग की मदद करती है. जर्मनी में कुल प्लास्टिक उत्पादन का 36 फीसदी हिस्सा रिसाइकिल्ड होना अनिवार्य है. अब सरकार इस सीमा को बढ़ाकर 72 फीसदी करना चाहती है. पेटर कुर्थ इसे पर्यावरण और रिसाइक्लिंग उद्योग के लिए जरूरी मान रहे हैं.

रिसाइकिल के बाद ऐसा बनता है प्लास्टिकतस्वीर: Fotolia/digitalstock

बाजार की प्रतिस्पर्धा के चलते उत्पादकों पर सस्ते प्रोडक्ट पेश करने का दबाव बना रहता है. सामान सस्ता करने के लिए उन्हें सस्ते कच्चे माल की जरूरत पड़ती है. फिलहाल सस्ता हुआ प्लास्टिक यही कर रहा है. लेकिन पर्यावरण के लिए इसके नतीजे घातक होंगे. दुनिया के ज्यादातर देशों में कचरे का सही प्रबंधन न होने की वजह से प्लास्टिक जमीन, नदी, झीलों और महासागरों का दम घोंट रहा है.

एलन मैकआर्थर फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्लास्टिक के निपटारे के लिए क्रांतिकारी कदम तुरंत उठाए जाने चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो 35 साल बाद महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा. रिपोर्ट के मुताबिक हर साल कम से कम 80 करोड़ टन प्लास्टिक समंदर में जा रहा है, यानि हर मिनट करीब एक ट्रक प्लास्टिक महासागरों में समा रहा है.

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