चीन में लगभग दस लाख मुसलमानों को खास कैंपों में रखकर 'वफादारी की घुट्टी' पिलाई जा रही है. लेकिन इन कैंपों में जो कुछ हो रहा है, उससे फिर चीन दुनिया के निशाने पर है.
विज्ञापन
सबसे बड़ी आबादी वाला देश चीन दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना देख रहा है. दुनिया भर में अपनी छवि को चमकाने के लिए उसने एक बड़ा मीडिया तंत्र खड़ा किया है, जिस पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में दबदबा कायम करने के लिए वह दुनिया भर में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है. पूरी दुनिया को रेल, सड़क और समुद्री मार्ग से जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रहा है.
लेकिन कुछ चीजों को बदलना मुश्किल होता है. जब तक चीन में एक पार्टी वाली शासन व्यवस्था रहेगी, तब तक मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन के रुख में बदलाव की उम्मीद भी बेमानी है. यह बात सोचकर ही अजीब लगता है कि 21वीं सदी में दस लाख लोगों को कैंपों में इसलिए कैद किया गया है ताकि उन्हें 'वफादारी का पाठ' पढाया जा सके. लेकिन चीनी नेताओं को कुछ अजीब नहीं लगता. वहां की व्यवस्था में विरोध की आवाज बुलंद करना एक अपवाद है जबकि उसे दबाना एक सामान्य बात है.
इस्लाम के रास्ते से मुसलमानों को हटाता चीन
चीन में इस्लामी चरमपंथ और अलगाववाद से निपटने के लिए मुसलमानों को इस्लाम के रास्ते से हटाकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढ़ाया जा रहा है. जानिए क्या होता है ऐसे शिविरों में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
बुरी यादें
चीन में मुसलमानों का ब्रेशवॉश करने के शिविरों में ओमिर बेकाली ने जो झेला, उसकी बुरी यादें अब तक उनके दिमाग से नहीं निकलतीं. इस्लामी चरमपंथ से निपटने के नाम पर चल रहे इन शिविरों में रखे लोगों की सोच को पूरी तरह बदलने की कोशिश हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
यातनाएं
सालों पहले चीन से जाकर कजाखस्तान में बसे बेकाली अपने परिवार से मिलने 2017 में चीन के शिनचियांग गए थे कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसे शिविर में डाल दिया. बेकाली बताते हैं कि कैसे कलाइयों के जरिए उन्हें लटकाया गया और यातनाएं दी गईं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
आत्महत्या का इरादा
बेकाली बताते हैं कि पकड़े जाने के एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. शिविर में पहुंचने के 20 दिन के भीतर जो कुछ सहा, उसके बाद वह आत्महत्या करना चाहते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
क्या होता है
बेकाली बताते हैं कि इन शिविरों में रखे गए लोगों को अपनी खुद की आलोचना करनी होती है, अपने धार्मिक विचारों को त्यागना होता है, अपने समुदाय को छोड़ना होता है. चीनी मुसलमानों के अलावा इन शिविरों में कुछ विदेशी भी रखे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
इस्लाम के 'खतरे'
बेकाली बताते हैं कि शिविरों में इंस्ट्रक्टर लोगों को इस्लाम के 'खतरों' के बारे में बताते थे. कैदियों के लिए क्विज रखी गई थीं, जिनका सभी जवाब न देने वाले व्यक्ति को घंटों तक दीवार पर खड़ा रहना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ
यहां लोग सवेरे सवेरे उठते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते थे और साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते थे. वे ऐसे गीते गाते थे जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास भी पढ़ाया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/How Hwee Young
धन्यवाद शी जिनपिंग
जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" कहना पड़ता था. कुल मिलाकर उन्हें चीनी राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाई जाती है.
तस्वीर: Getty Images/K. Frayer
नई पहचान
चीन के पश्चिमी शिनचियांग इलाके में चल रहे इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
लाखों कैदी
रिपोर्टों के मुताबिक इन शिविरों में हजारों लोगों को रखा गया है. कहीं कहीं उनकी संख्या दस लाख तक बताई जाती है. एक अमेरिकी आयोग ने इन शिविरों को दुनिया में "अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा कैदखाना" बताया है.
तस्वीर: J. Duez
गोपनीय कार्यक्रम
यह कार्यक्रम बेहद गोपनीय तरीके से चल रहा है लेकिन कुछ चीनी अधिकारी कहते हैं कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए "वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी" है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Young
खोने को कुछ नहीं
बेकाली तो अब वापस कजाखस्तान पहुंच गए हैं लेकिन वह कहते हैं कि चीन में अधिकारियों ने उनके माता पिता और बहन को पकड़ रखा है. उन्होंने अपनी कहानी दुनिया को बताई, क्योंकि "अब मेरे पास खोने को कुछ" नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. H. Guan
11 तस्वीरें1 | 11
शिनचियांग प्रांत बीजिंग में बैठी चीन की सरकार के लिए लंबे समय से सिरदर्द रहा है. इस इलाके में बड़ी संख्या में तुर्क मूल की मुस्लिम आबादी रहती है जिन्हें उइगुर से नाम से जाना जाता है. इन लोगों की अपनी अलग भाषा और अलग संस्कृति है, और शायद इसी की कीमत ये लोग इतने सालों से चुका रहे हैं. चीन की सरकार ने उनकी उनकी आवाजों, शिकायतों और आपत्तियों का हल तलाशने और उन्हें साथ लेकर चलने की बजाय उन्हें दबाने का रास्ता चुना. देश के बाकी हिस्सों से हान चीनियों को शिनचियांग में लाकर बसाया गया, ताकि उइगुर लोगों को अल्पसंख्यक बनाया जा सके.
चीन में पत्नियों से बिछड़े दो पाकिस्तानी
01:58
इन में से कुछ लोगों ने हिंसा का रास्ता चुन लिया. चरमपंथी गुट बना कर उन्होंने हाल के सालों में शिनचियांग में चीनी अधिकारियों और लोगों को अपने हमलों का निशाना बनाया. इसलिए आज चीन उन्हें आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताता है. जिन कैंपों को लेकर दुनिया भर में चीन की आलोचना हो रही है, उन्हें बीजिंग की सरकार 'भटके युवाओं को रास्ते पर लाने' का उपाय बता रही है. कैंपों में शोषण की रिपोर्टों को खारिज करते हुए चीनी अधिकारी कहते हैं कि वहां रहने वाले लोगों को पेशेवर कामों की ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे उग्रवाद की तरफ न जाएं.
दूसरी तरफ विदेशों में रह रहे उइगुर लोगों के संगठन का कहना है कि चीन की सरकार इन कैंपों के जरिए जानबूझ कर उनकी सांस्कृतिक पहचान पर चोट कर रही है. वर्ल्ड उइगुर कांग्रेस के मुताबिक उइगुर लोगों की भाषा, संस्कृति और धर्म पर हमला किया जा रहा है. इस संगठन के प्रमुख डोलकुन इसा कहते हैं, "दस लाख से ज्यादा लोगों को कैंपों में कैद किया जाना किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता और इसलिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को इसके खिलाफ कदम उठाना चाहिए."
समाचार एजेंसी एपी ने इस साल मई में इन कैंपों पर एक खोजी रिपोर्ट की. इसके मुताबिक वहां कड़े अनुशासन में रहने वाले लोगों को अपने धार्मिक विचार त्याग कर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढाया जा रहा है. ये लोग सूरज उगने से पहले ही जग जाते हैं, चीनी राष्ट्रगान गाते हैं और सुबह साढ़े सात बजे चीनी ध्वज फहराते हैं. वे ऐसे गीते गाते हैं जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी की तारीफ की गई हो. इसके अलावा उन्हें चीनी भाषा और इतिहास पढ़ाया जाता है.
चीन के उइगुर मुसलमान
चीन में रहने वाले उइगुर मुसलमान न तो दाढ़ी रख सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं. चीन सरकार के नए नियमों के मुताबिक उन पर कई बंदिशें लगाई गई हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं उइगुर लोग.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
नए नियम, नयी बंदिशें
उइगुर चीन में रहने वाला एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय है. ये लोग सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के मुकाबले मध्य एशियाई देशों के ज्यादा करीब पाते हैं. मुख्यतः चीन के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उइगुर लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक कपड़े पहन सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
धार्मिक कट्टरपंथ
नए सरकारी नियमों के मुताबिक मस्जिद में जाने के लिए व्यक्ति को कम से 18 साल का होना चाहिए. इसके अलावा अगर कोई सार्वजनिक जगह पर धार्मिक उपदेश देता दिखा तो पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके अलावा धार्मिक रीति रिवाज से शादी और अंतिम संस्कार को भी धार्मिक कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
शक और संदेह
उइगुर लोग शिनचियांग में सदियों से रह रहे हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने अपने इलाके को पूर्वी तुर्केस्तान नाम देते हुए आजादी की घोषणा की थी. लेकिन 1949 में माओ त्सेतुंग ने ताकत के साथ वहां चीनी शासन लागू कर दिया. उसके बाद से चीन और उइगुर लोगों के संबंध संदेह और अविश्वास का शिकार हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
बदल गया समीकरण
शिनचियांग पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन की सरकार ने देश के अन्य हिस्सों से हान चीनियों को वहां ले जाकर बसाया है. 1949 में शिनचियांग में हान आबादी सिर्फ छह प्रतिशत थी जो 2010 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. शिनचियांग के उत्तरी हिस्से में उइगुर लोग अल्पसंख्यक हो गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. W. Young
'अच्छे' मुसलमान
चीन में उइगुर अकेला मुस्लिम समुदाय नहीं है. हुई मुस्लिम समुदाय को भाषा और सांस्कृतिक लिहाज से हान चीनियों के ज्यादा नजदीक माना जाता है. उन्हें अधिकार भी ज्यादा मिले हुए हैं. अपनी मस्जिदें और मदरसे बनाने के लिए उन्हें चीन की सरकार से मदद भी मिलती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Wong
आतंकवाद और अलगाववाद
शिनचियांग की आजादी के लिए लड़ने वाले गुटों में सबसे अहम नाम ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट का है. इसके अलावा तुर्केस्तान इस्लामिक पार्टी भी है जिस पर अल कायदा से संबंध रखने के आरोप लगते हैं. इस गुट को शिनचियांग में हुए कई धमाकों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है.
तस्वीर: Getty Images
समृद्धि का दायरा
शिनचियांग क्षेत्रफल के हिसाब से चीन का सबसे बड़ा प्रांत हैं और यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है. कभी सिल्क रूट का हिस्सा रहे इस इलाके में चीन बड़ा निवेश कर रहा है. लेकिन उइगुर लोग चीन की चमक दमक और समृद्धि के दायरे से बाहर दिखाई देते हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Peter
असमानता
हाल के बरसों में शिनचियांग में उइगुर और हान चीनियों के बीच असमानता बढ़ी है. वहां हो रहे तेज विकास के कारण चीन भर से शिक्षित और योग्य हान चीनी पहुंच रहे हैं. उन्हें अच्छी नौकरियां और अच्छे वेतन मिल रहे हैं. वहीं उइगुर लोगों के लिए उतने मौके उलब्ध नहीं हैं.
(रिपोर्ट: रिज्की नुग्रहा/एके)
तस्वीर: Getty Images
8 तस्वीरें1 | 8
रिपोर्ट कहती है कि जब इन लोगों को सब्जियों का सूप और डबल रोटी खाने को दी जाती थी तो उससे पहले उन्हें "धन्यवाद पार्टी! धन्यवाद मातृभूमि! धन्यवाद राष्ट्रपति शी!" ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि 2017 से लोगों को जबरदस्ती इन कैंपों में रखने का सिलसिला शुरू हुआ.
इन कैंपों को बंद करने के लिए चीन पर सिर्फ अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जैसे पश्चिमी देशों का दबाव नहीं है, बल्कि उसका करीबी पड़ोसी पाकिस्तान भी इस मुद्दे पर आवाज उठा रहा है. पाकिस्तान इस हालत में नहीं है कि खुल कर वह चीन का विरोध कर सके. हालांकि दबे दबे लफ्जों में ही सही, उसने भी चीन की सरकार से उइगुर लोगों के प्रति नरमी बरतने को कहा है.
चीन की तरफ से मिलने वाला अरबों डॉलर का निवेश पाकिस्तान की जुबान पर ताले डालता है. वरना क्या वजह है कि कश्मीरी मुसलमानों के साथ हो रही कथित ज्यादतियों को जोर शोर से उठाने वाला पाकिस्तान चीन में मुसलमानों के शोषण पर सालों से चुप है. ताजा बयान शायद इसलिए आया कि अब वहां इमरान खान की सरकार है, जो खासे मुंहफट हैं.
जापान में चलती फिरती मस्जिद
00:58
This browser does not support the video element.
बहरहाल सवाल यह है कि क्या चीन इन अपीलों पर अमल करेगा, और अगर भारी दबाव में उसे इन कैंपों को बंद करना भी पड़ा तो क्या उइगुर लोगों के प्रति उसका रवैया बदेलगा. शायद नहीं. और बात सिर्फ उइगुर लोगों की नहीं है. बात मानवाधिकारों के सम्मान की है. बात सबको साथ लेकर चलने की है. बात उन आवाजों पर भी ध्यान देने की है, जो आपके कानों को अच्छी नहीं लगतीं. सिर्फ शिनचियांग ही नहीं, बल्कि तिब्बत और हांगकांग में भी मानवाधिकारों का सम्मान करना होगा.
शी जिनपिंग जैसे सख्त शासक के चीन में इसकी गुंजाइश ना के बराबर है. उनका चीन सहमति और स्वीकार्यता की बजाय ताकत पर विश्वास करता है. कम्युनिस्ट पार्टी के डंडे से चलने वाले चीन में भले ही यह मुमकिन हो, लेकिन पूरी दुनिया ऐसे नहीं चल सकती, जिसकी महाशक्ति बनने का सपना चीन देखता है. मानवाधिकार का सम्मान किए बगैर महाशक्ति तो क्या एक आधुनिक संपूर्ण राष्ट्र भी नहीं बन सकता.
यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश ये हैं
अमेरिकी थिंकटैंक पियु रिसर्च सेंटर ने यूरोप में मुस्लिम आबादी बढ़ने का अनुमान जताया है. इसके मुताबिक 2050 तक यूरोप की आबादी में 7.5 फीसदी मुसलमान होंगे. एक नजर यूरोप के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देशों पर.