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मुसलमान भी बाल विवाह कानून के दायरे में

२९ सितम्बर २०१५

गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि बदलते समय के साथ मुस्लिम समुदाय भी बाल विवाह के नुकसानों को समझते हुए आगे बढ़ रहा है. आदेश सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी को भी बाल विवाह निषेध कानून का उल्लंघन नहीं करने दिया जा सकता.

तस्वीर: Getty Images/P. Bronstein

गुजरात हाई कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में साफ किया है कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 के दायरे में मुसलमान भी आते हैं. कोर्ट में सुनवाई कर रहे न्यायाधीश जेबी परदीवाला ने कहा कि जो भी मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलावों का विरोध करेगा वो असल में अपने ही समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाएगा.

बाल विवाह के अलावा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत बहुविवाह, ट्रिपल तलाक जैसे कई ऐसे मामले हैं जिन पर समय समय पर बहस होती रही है. कई महिला अधिकार संगठन इन मुद्दों पर बदलाव लाए जाने की मांग कर रहे हैं.

किसी धर्म या अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े मामलों पर ऐसे आदेश बहुत आम नहीं हैं. कानून की नजर में बच्चों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए मुस्लिम समुदाय से भी बदलावों को अपनाने की अपील हुई.

दिसंबर 2014 में गुजरात हाई कोर्ट के सामने आए एक मामले में एक मुस्लिम युवक के खिलाफ उसी के समुदाय की एक 17 साल की लड़की से शादी करने की शिकायत थी, जिसमें कोर्ट ने उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की अपील रद्द कर दी थी.

उस समय मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा था कि मुसलमान लड़कियों को मासिक धर्म शुरु होने के बाद या 15 साल की उम्र के बाद शादी करना बाल विवाह निषेध कानून के तहत गैरकानूनी नहीं माना जाना चाहिए.

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