पाकिस्तान में पिछले दिनों गुस्साई भीड़ ने अहमदी लोगों की एक मस्जिद पर हमला किया. हालांकि अहमदी लोगों को सिर्फ पाकिस्तान में नहीं, बल्कि कई और देशों में भी सताया जाता है.
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पाकिस्तान में रहने वाले अहमदी लोगों का कहना है कि वे भी मुसलमान हैं और उन्हें अन्य लोगों की तरह अपने धर्म का पालन करने का अधिकार मिलना चाहिए. लेकिन पाकिस्तान में 1974 में बनाए गए एक कानून के तहत इन्हें गैर मुसलमान घोषित किया और उनके साथ कानूनी और सामाजिक तौर पर भेदभाव होता है. पिछले एक दशक में उनके खिलाफ हमलों में तेजी आई है.
इस्लाम में मोहम्मद को आखिरी पैगंबर माना जाता है जबकि अहमदी लोग कहते हैं कि उनके बाद भी पैगंबर हुए हैं. यही विवाद का बड़ा मुद्दा है. मिर्जा गुलाम अहमद को मानने वाले अहमदी लोगों को कादियानी भी कहा जाता है.
पाकिस्तानी सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश में धार्मिक चरमपंथ और असहिष्णुता लंबे समय से जारी है. इसकी शुरुआत 1970 के दशक में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार के दौरान हुई और सैन्य शासक जिया उल हक के दौर में यह खूब परवान चढ़ी. जिया के दौर में अहमदी लोगों के खुद को मुसलमान कहने और मस्जिद बनाने पर रोक लगाई गई. कट्टरपंथियों ने उनके पूजा स्थलों को बंद करवा दिया.
एशियाई मानवाधिकार आयोग में एक सीनियर फेलो बशीर नवीद कहते हैं कि पाकिस्तान में अहमदी लोगों का उत्पीड़न लगातार जारी है और इसे सरकार का समर्थन प्राप्त है. उनका कहना है, "सरकार मुस्लिम कट्टरपंथियों और दक्षिणपंथी पार्टियों के खुश करना चाहती है. हम देखते हैं कि पाकिस्तानी राज्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी नफरत भरी नीति को जारी रखे हुए है जिससे कट्टरपंथी ताकतवर होते हैं.”
देखिए इनका भी पाकिस्तान
इनका भी है पाकिस्तान
पाकिस्तान की अनुमानित 20 करोड़ की आबादी में लगभग 95 फीसदी मुसलमान हैं. इनमें भी बहुसंख्यक सुन्नी हैं जिनकी संख्या 75 से 85 फीसदी बताई जाती है. एक नजर पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों पर.
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शिया
शिया मुसलमान पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है जिसकी आबादी से 10 से 15 फीसदी बताई जाती है. हाल के सालों में पाकिस्तान में कई बार शिया धार्मिक स्थलों को आतंकवादी हमलों में निशाना बनाया गया है.
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अहमदी
पाकिस्तान की जनसंख्या में अहमदी मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 2.2 प्रतिशत है. हालांकि पाकिस्तान में इन्हें मुसलमान नहीं माना जाता. 1970 में दशक में एक कानून पारित कर इन्हें गैर मुसलमान घोषित कर दिया गया था और इनके साथ कई तरह के भेदभाव होते हैं.
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हिंदू
पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगभग दो प्रतिशत है जिनमें से ज्यादातर सिंध प्रांत में रहते हैं. पाकिस्तान में हिंदू बेहद पिछड़े हैं और अभी तक बुनियादी अधिकारों के लिए जूझ रहे हैं.
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ईसाई
हिंदुओं के बाद पाकिस्तान में संख्या के हिसाब से ईसाई समुदाय की बारी आती है. उनकी आबादी लगभग 1.6 प्रतिशत है जबकि संख्या देखें तो यह 28 लाख के आसपास है. हाल के सालों में कई चर्चों पर हमले हुए हैं.
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बहाई
बहाई धर्म को मानने वालों की संख्या पाकिस्तान में 40 से 80 हजार हो सकती है.
सिख
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म मौजूदा पाकिस्तान के ननकाना साहिब में हुआ था. यह स्थान सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है. पाकिस्तान में अब सिर्फ लगभग 20 हजार ही सिख बचे हैं.
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पारसी
पारसियों की आबादी दुनिया भर में घट रही है. पाकिस्तान में भी ऐसा ही ट्रेंड दिखाई पड़ता है. वहां इनकी संख्या चंद हजार तक सिमट गई है.
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कलाश
खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के चित्राल में रहने वाला कलाश समुदाय अपनी अलग संस्कृति के लिए जाना जाता है. उनकी अलग भाषा और अलग धर्म है. लगभग तीन हजार की आबादी के साथ इसे पाकिस्तान का सबसे छोटा धार्मिक समुदाय माना जाता है.
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वहीं लंदन में रहन वाले एक विद्वान अमीन मुगल की राय है कि यह मामला धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "किसी समय पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में अहमदी लोगों का खासा असर था. इतना कि बहुसंख्यक सुन्नी समूहों को उनसे खतरा महसूस होने लगा और फिर उन्होंने उनको बाहर का रास्ता दिखाना शुरू किया.”
पाकिस्तान में पिछले एक दशक के दौरान इस्लामी चरमपंथ और धार्मिक कट्टरपंथ बहुत बढ़ा है. तालिबान जैसे चरमपंथी गुट धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हैं. पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग के सदस्य असद बट कहते हैं, "जिया उल हक के सत्ता में आने से पहले ऐसा नहीं होता था. उन्होंने सब चीजों का इस्लामीकरण कर दिया और धर्म का राजनीति के साथ घालमेल कर दिया.”
लेकिन पाकिस्तान कब और कैसे अन्य धर्मों और उनके मानने वालों के प्रति असहिष्णु हो गया? कराची के एक पत्रकार मोहसिन सईद कहते हैं, "वे दिन चले गए जब लोग कहा करते थे कि सिर्फ छोटा सा समूह इस तरह के कामों में लिप्त है. अब जहर पूरे पाकिस्तानी समाज में फैल रहा है.”
पहले चर्च, फिर मस्जिद और अब म्यूजियम
पहले चर्च बना, फिर मस्जिद और अब म्यूजियम
हाइया सोफिया यानी तुर्की के शहर इस्तांबुल में विशाल गुंबद और चार मीनारों वाली डेढ़ हजार साल पुरानी इमारत. कभी ये एक चर्च था, फिर इसे मस्जिद बना दिया गया और अब यह एक म्यूजियम है.
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वास्तुकला का शाहकार
532 ईसवी में रोमन सम्राट जस्टिनियन ने एक शानदार चर्च के निर्माण का आदेश दिया था, "एक ऐसा चर्च, जो आज तक ना बना हो और ना कभी दोबारा बनाया जा सके." इस इमारत को बनाने में दस हजार कामगार लगाए गए.
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150 टन सोना
बताया जाता है कि सम्राट जस्टिनियन ने इस इमारत को बनवाने में लगभग 150 टन सोने का निवेश किया था. हाइया सोफिया यानी "पवित्र ज्ञान" जल्द ही रोमन साम्राज्य का आधिकारिक चर्च बना गया. सातवीं सदी के बाद बिजांतिन वंश के लगभग सभी सम्राटों का राज्याभिषेक यहीं हुआ.
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मस्जिद में तब्दील
वर्ष 1453 में कोंस्तानतिनोपोल में बिजांतिन शासन खत्म हुआ. ओटोमान साम्राज्य के सुल्तान मेहमत द्वितीय ने इस शहर को जीत लिया और हाइया सोफिया को एक मस्जिद में तब्दील कर दिया गया. क्रॉस की जगह चांद लगा दिया गया, घंटियों और पूजा की बेदियों को नष्ट कर दिया गया और दीवारों पर संगमरमर के जरिए उकेरे गए चित्रों पर रंग पोत दिया गया.
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फिर म्यूजियम बना
आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने हाइया सोफिया को 1934 में एक म्यूजियम में तब्दील कर दिया. दीवारों पर बने चित्रों को बहाल किया गया. इस दौरान इस बात का भी ख्याल रखा गया कि इस्लामी प्रतीक नष्ट न हों.
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इस्लाम और ईसाइयत साथ-साथ
हाइया सोफिया में हर तरफ इतिहास के निशान दिखाई देते हैं. यहां एक तरफ मोहम्मद (बाएं) और दूसरी तरफ अल्लाह (दाएं) लिखा है तो वहीं बीच में यीशु को अपनी गोद में लिए हुए वर्जिन मेरी भी देखी जा सकती हैं. हाइया सोफिया 1985 से विश्व विरासत स्थल है.
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बिजांतिन प्रतीक
हाइया सोफिया की दीवार पर उकेरे गए चित्रों में सबसे कमाल की कृति यह है जिसे 14वीं सदी में बनाया गया. हालांकि इसे पूरी तरह बहाल नहीं किया जा सका है, लेकिन चेहरे साफ तौर पर देखे जा सकते हैं. यहां यीशू को विश्व के शासक के तौर पर दिखाया गया. उनके एक तरफ मैरी हैं और दूसरी देवदूत जॉन.
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ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों की मांग
कोंस्तानतिनोपोल के पैट्रिआर्क और सभी ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों के मानद प्रमुख बार्थोलोमैओस बहुत समय से मांग कर रहे हैं कि हाइया सोफिया में ईसाइयों को पूजा अर्चना करने की इजाजत दी जाए. उनके मुताबिक, "हाइया सोफिया को तो मूल रूप से ईसाइयों के पूजा स्थल के तौर पर ही बनाया गया था."
(रिपोर्ट: क्लाउस डहमन/एके)
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वैसे पाकिस्तान अकेला देश नहीं है जहां अहमदी लोगों को परेशान किया जाता है. दक्षिण एशिया में बांग्लादेश में भी उनके साथ ऐसा सलूक होता है जबकि दक्षिण पूर्व एशिया और खास कर इंडोनेशिया में भी हालात ऐसे ही हैं.
दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में ज्यादातर सुन्नी मुसलमान ही हैं जबकि शियाओं की आबादी लगभग एक लाख है. बात अहमदी लोगों की करें तो उनकी संख्या चार लाख के आसपास बताई जाती है जिन्हें 2008 में इंडोनेशिया की सबसे बड़ी इस्लामी संस्था ने "पथभ्रष्ट लोग" करार दिया था.
विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार इंडोनेशिया में 40 फीसदी लोग नहीं चाहते कि उनके पड़ोस में कोई शिया या फिर अहमदी व्यक्ति रहे. वहीं 15.1 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्हें अपने पड़ोस में हिंदू और ईसाई भी नहीं चाहिए.
इंडोनेशिया में अहमदी समुदाय के नेताओं का कहना है कि उन्हें 2005 से उत्पीड़ित और आतंकित किया जा रहा है और बहुत से जिलों में उनकी धार्मिक गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई है. फरवरी 2011 में जावा में लगभग डेढ़ हजार लोगों ने 20 अहमदी लोगों पर हमला किया. इस हमले में तीन लोग मारे गए जबकि पांच अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे.