हिजाब को पहनें या नहीं, इस पर बहस चलती रहती है और यह सुर्खियों में तब आ जाती है जब कोई देश इस पर प्रतिबंध लगाता है. क्या हिजाब पहनना महिलाओं का दमन है? जवाब को ढूंढने की कोशिश में ऑस्ट्रिया में एक प्रदर्शनी लगी है.
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कई मुस्लिम महिलाएं रोजाना हिजाब पहनती हैं. ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भी अपनी विदेश यात्राओं में सिर ढकती हैं. यूरोपीय देशों में आज भी हेडस्कार्फपारंपरिक पोशाक का हिस्सा है. ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के वेल्टम्यूजियम में हिजाबों की प्रदर्शनी लगी है. प्रदर्शनी के मुताबिक जिन देशों में बुरके पर विवाद है, वहां पारंपरिक लिबास में हेडस्कार्फ काफी प्रचलित है. इसमें ऑस्ट्रिया, फ्रांस और बेल्जियम शामिल हैं.
म्यूजियम के क्यूरेटर आक्सेल श्टाइनमन कहते हैं, "जब भी कोई हेडस्कार्फ शब्द का इस्तेमाल करता है तो फौरन बहस शुरू हो जाती है क्योंकि हम इसे इस्लाम से जोड़कर देखते हैं." उनके मुताबिक, "यूरोप में हेडस्कार्फ का इतिहास दो हजार साल पुराना है और यह ईसाई धर्म से जुड़ा हुआ है." प्रदर्शनी में ईसा मसीह की मां मरियम 'वर्जिन मैरी' और अन्य ननों की सिर ढंकी हुई तस्वीरें इस बात की पुष्टि करती हैं.
पारंपरिक पोशाक पहने यूरोप की सुवेनियर डॉल्स के सिर भी ढंके होते हैं और यह न सिर्फ धर्म से जुड़े होते हैं, बल्कि स्थानीय शहर की पहचान भी होते हैं. 1950 के जमाने में ऑस्ट्रियाई पर्यटन के पोस्टरों में स्थानीय महिलाएं पारंपरिक डिर्नडल पहने दिखती हैं और इनके सिर पर स्कार्फ बंधा होता है. 1970 के दशक के अन्य पोस्टर में आल्प पहाड़ों की झोपड़ी के आगे एक लड़की ने सिर पर स्कार्फ बांध रखा है जिसे बैनडाना कहते हैं. यह रुमालनुमा स्कार्फ आज भी यहां के लोगों के बीच बीच काफी लोकप्रिय है.
म्यूजियम इस बात से इनकार नहीं करता है कि प्रदर्शनी की शुरुआत इस बहस से हुई थी कि मुस्लिम महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं. 2017 में ऑस्ट्रियाई कॉस्टेमिक चेन बीपा ने एक विज्ञापन लॉन्च किया था जिसमें हिजाब पहने युवा मुस्लिम लड़कियां शामिल थीं. जल्द ही सोशल मीडिया पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई.
जब वेल्टम्यूजियम के डायरेक्टर क्रिस्ट्रियान शिकल्ग्रुबर ने विज्ञापन का बचाव किया, तो उन पर महिलाओं के दमन का समर्थन करने का आरोप लगा. इस मुद्दे पर उन्होंने बताया, ''हर समाज में इस कपड़े को पहनने या न पहनने का फैसला कई कारणों से लिया जाता है." वह आगे कहते हैं, "इसमें धार्मिक मान्यताएं, सांस्कृतिक परंपराएं और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति शामिल होती हैं."
ऑस्ट्रिया की दक्षिणपंथी सरकार ने एक बिल तैयार किया है जिसमें डे-केयर या प्राइमरी स्कूल जाने वाली लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. एक साल पहले यहां पूरा चेहरा ढंकने वाले बुरके पर भी बैन लगाया गया है. सरकार का तर्क है कि इससे लड़कियों की आजादी सुरक्षित रहेगी और राजनीति में इस्लाम के फैलते असर को रोका जा सकेगा.
कहां कहां बैन है बुरका
दुनिया में ऐसे कई मुल्क हैं जहां बुरके या नकाब पर प्रतिबंध है. कहीं पूरी तरह तो कहीं आंशिक रूप से. जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/G.-G. Kitina
डेनमार्क
31 मई 2018 को डेनमार्क की सरकार ने एक नया कानून लागू किया है जिसके तहत सार्वजनिक स्थलों पर चेहरा ढंकने की मनाही होगी. स्की मास्क और नकली दाढ़ी-मूछ लगाने पर भी रोक होगी. हालांकि बीमारियों से बचने के लिए पहनने वाले मास्क और मोटरसाइकल हेलमेट को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
फ्रांस यूरोप का पहला ऐसा मुल्क है जिसने बुरके को बैन करने का कदम उठाया. 2004 में इसकी शुरुआत हुई. पहले स्कूलों में धार्मिक चिन्हों पर रोक लगी. 2011 में सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर बुरके को पूरी तरह बैन कर दिया. ऐसा करने पर 150 यूरो का जुर्माना है. कोई अगर महिलाओं को जबरन बुरका पहनाएगा तो उस पर 30 हजार यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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बेल्जियम
फ्रांस के नक्श ए कदम पर चलते हुए बेल्जियम ने भी 2011 में बुरका बैन कर दिया. बुरका पहनने पर महिलाओं को 7 दिन की जेल या 1300 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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नीदरलैंड्स
2015 में हॉलैंड ने बुरके पर बैन लगाया. लेकिन यह बैन स्कूलों, अस्पतालों और सार्जवनिक परिवहन तक ही सीमित है. सभी जगहों पर इसे लागू नहीं किया गया है.
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स्विट्जरलैंड
1 जुलाई 2016 से स्विट्जरलैंड के टेसिन इलाके में बुरके पर प्रतिबंध लागू हो गया है. इसका उल्लंघन करने पर 9200 यूरो तक का जुर्माना हो सकता है.
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इटली
इटली में राष्ट्रीय स्तर पर तो बैन नहीं है लेकिन 2010 में नोवारा शहर ने अपने यहां प्रतिबंध लगाया. हालांकि अभी बुरका पहनने पर किसी तरह की सजा नहीं है. और कुछ राज्यों में बुरकीनी पहनने पर रोक है.
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जर्मनी
जून 2017 से जर्मनी में भी बुरके और नकाब पर रोक है लेकिन ऐसा सिर्फ सरकारी नौकरियों और सेना पर लागू होता है. इसके अलावा ड्राइविंग के दौरान भी चेहरा ढंकने की अनुमति नहीं है. जर्मनी की एएफडी पार्टी लगातार बुरके पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग कर रही है.
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स्पेन
स्पेन के कैटेलोनिया इलाके में कई जिलों में बुरके और नकाब पर 2013 से ही प्रतिबंध है. कई राज्यों में कोशिश हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे धार्मिक आजादी का उल्लंघन मानते हुए पलट दिया. लेकिन यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट का फैसला है कि बुरके पर बैन मानवाधिकार उल्लंघन नहीं है. इसी आधार पर कई जिलों ने इस बैन को लागू किया हुआ है.
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तुर्की
मुस्लिम बहुल आबादी वाले तुर्की में 2013 तक सरकारी संस्थानों में बुरका या हिजाब पहनने पर रोक थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. महिलाएं अपना सर और चेहरा ढंकते हुए भी वहां जा सकती हैं. बस अदालत, सेना और पुलिस में ऐसा करने की अनुमति अब भी नहीं है.
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चाड
अफ्रीकी देश चाड में पिछले साल बुरके पर प्रतिबंध लगाया गया. जून में वहां दो आत्मघाती बम हमले हुए जिसके बाद प्रधानमंत्री ने कदम उठाए. बाजारों में बुरके की बिक्री तक पर बैन है. पहनने पर जुर्माना और जेल होगी.
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कैमरून
चाड के प्रतिबंध लगाने के एक महीने बाद ही उसके पड़ोसी कैमरून ने भी नकाब और बुरका बैन कर दिए. हालांकि यह सिर्फ पांच राज्यों में ही प्रभावी है.
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निजेर
आतंकवाद प्रभावित दीफा इलाके में बुरका प्रतिबंधित है. हालांकि सरकार इसे पूरे देश में लागू करने की इच्छुक है.
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कॉन्गो
पूरे चेहरे को ढकने पर कॉन्गो ने बैन लगा रखा है. 2015 से यह प्रतिबंध लागू है.
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बिना कोई जवाब दिए यह प्रदर्शनी सवाल करती है कि क्या हिजाब से महिलाओं का दमन होता है, क्या महिलाएं इससे खुद को अभिव्यक्त करना चाहती हैं या हिजाब पुरुषों की नजर से बचाता है. म्यूजियम के क्यूरेटर अलग-अलग हिजाबों को प्रदर्शनी में दिखा कर इस बहस को शांत करने की कोशिश कर रहा हैं. इन्हें किसी मैनिक्विन को पहनाने के बजाए दीवारों पर लगाया गया है. इन्होंने हंसती, खेलती और पोज देती हुई महिलाओं को भी हिजाब पहने दिखाया है, जिसमें वे पीड़ित नहीं बल्कि आत्मविश्वास से भरपूर दिख रही हैं. इसके साथ ही प्रदर्शनी की तस्वीरों में अल्जीरिया से बोस्निया और जावा द्वीप के पुरुषों को पगड़ी या अन्य प्रकार की टोपियों को पहने दिखाया गया है. पारंपरिक पोशाकों पर म्यूजियम का केंद्र होने के बावजूद यह प्रदर्शनी शालीन ड्रेसिंग या कपड़ों की ओर ध्यान आकर्षित करती है.
वीसी/आईबी (डीपीए)
बुरका, हिजाब या नकाब: फर्क क्या है?
बुरका, हिजाब या नकाब. ये शब्द तो आपने कई बार सुने होंगे. लेकिन क्या आप शायला, अल अमीरा या फिर चिमार और चादर के बारे में भी जानते हैं. चलिए जानते हैं कि इन सब में क्या फर्क है.
मुस्लिम पहनावा
सार्वजनिक जगहों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में सबसे ताजा नाम ऑस्ट्रिया का है. बुर्के के अलावा मुस्लिम महिलाओं के कई और कपड़े भी अकसर चर्चा का विषय रहते हैं.
शायला
शायला एक चोकोर स्कार्फ होता है जिससे सिर और बालों को ढंका जाता है. इसके दोनों सिरे कंधों पर लटके रहते हैं. आम तौर पर इसमें गला दिखता रहता है. खाड़ी देशों में शायला बहुत लोकप्रिय है.
हिजाब
हिजाब में बाल, कान, गला और छाती को कवर किया जाता है. इसमें कंधों का कुछ हिस्सा भी ढंका होता है, लेकिन चेहरा दिखता है. हिजाब अलग अलग रंग का हो सकता है. दुनिया भर में मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं.
अल अमीरा
अल अमीरा एक डबल स्कार्फ होता है. इसके एक हिस्सा से सिर को पूरी तरह कवर किया जाता है जबकि दूसरा हिस्सा उसके बाद पहनना होता है, जो सिर से लेकर कंधों को ढंकते हुए छाती के आधे हिस्से तक आता है. अरब देशों में यह काफी लोकप्रिय है.
चिमार
यह भी हेड स्कार्फ से जुडा हुआ एक दूसरा स्कार्फ होता है जो काफी लंबा होता है. इसमें चेहरा दिखता रहता है, लेकिन सिर, कंधें, छाती और आधी बाहों तक शरीर पूरी तरह ढंका हुआ होता है.
चादर
जैसा कि नाम से ही जाहिर है चादर एक बड़ा कपड़ा होता है जिसके जरिए चेहरे को छोड़ कर शरीर के पूरे हिस्से को ढंका जा सकता है. ईरान में यह खासा लोकप्रिय है. इसमें भी सिर पर अलग से स्कार्फ पहना जाता है.
नकाब
नकाब में पूरे चेहरे को ढंका जाता है. सिर्फ आंखें ही दिखती हैं. अकसर लंबे काले गाउन के साथ नकाब पहना जाता है. नकाब पहनने वाली महिलाएं ज्यादातर उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में दिखायी देती हैं.
बुरका
बुरके में मुस्लिम महिलाओं का पूरा शरीर ढंका होता है. आंखों के लिए बस एक जालीनुमा कपड़ा होता है. कई देशों ने सार्वजनिक जगहों पर बुरका पहनने पर प्रतिबंध लगाया है जिसका मुस्लिम समुदाय में विरोध होता रहा है.