दुनिया भर में रिसर्चर कोशिश कर रहे हैं कि जितना हो सके अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को इस्तेमाल किया जा सके. इस दिशा में इंग्लैंड के रिसर्चर अब मूत्र को इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं.
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दक्षिण पश्चिमी इंग्लैंड में ब्रिस्टल रोबोटिक्स प्रयोगशाला 'वेट लैब' में प्रवेश करने पर शौचालय जैसी गंध आती है. इस प्रोजोक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक लोआनिस लेरोपोलोस के मुताबिक यह रिसर्च में इस्तेमाल हो रहे एजेंट्स की गंध है. वैज्ञानिक इस बात को पहले से जानते हैं कि सूक्ष्म जीव विद्युत पैदा कर सकते हैं. ये सूक्ष्म जीव जब खाद्य पदार्थों का विघटन करते हैं तो इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन मुक्त होते हैं. इनकी मदद से विद्युत सर्किट में विद्युत प्रवाह संभव है.
अक्षय ऊर्जा स्रोत
पिछले एक दशक से लेरोपोलोस यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इससे रोबोट्स को फायदा हो सकता है, लेकिन हाल ही में उन्होंने महसूस किया कि मूत्र से विद्युत निर्माण भी संभव हो सकता है. उन्होंने बताया, "रिसर्चरों ने पिछले दस सालों में घास, घोंघे का कवच, मरे हुए कीड़ों और सड़े हुए फलों का इस्तेमाल किया. लेकिन हाल में जब उन्होंने यही प्रयोग मूत्र के साथ किया तो परिणाम चौंकाने वाले थे."
उन्होंनो पाया कि सूक्ष्म जीवाणुओं में जब ताजा मूत्र मिलाया जाता है तो तीन गुना ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है. उन्होंने एक आसान सा सिस्टम तैयार किया. उन्होंने यूरिनल को जीवाणुओं से गुजारते हुए यूएसबी पोर्ट से कनेक्ट किया. उन्होंने पाया कि मोबाइल फोन जैसे छोटे उपकरणों को चार्ज करने के लिए प्रयाप्त ऊर्जा का उत्पादन हो पाया.
उनकी इस खोज से खुश होकर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने इस अविष्कार को असल दुनिया में इस्तेमाल योग्य बनाने के लिए प्रयोगशाला को आर्थिक मदद देने की मंजूरी दी. लेरोपोलोस के मुताबिक वे कोशिश कर रहे हैं कि वे इसे बड़े स्तर पर सुचारू बना सकें.
स्वच्छता पर ध्यान
गेट्स फाउंडेशन ने रिसर्चरों की टीम को भारत जाकर इस यंत्र को दिखाने के लिए भी मदद दी है. इस खोज को 'यूरीनेक्ट्रिसिटी' नाम दिया गया है. 'वॉटर एड अमेरिका' संस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी सरीना प्रबासी के मुताबिक यूरीनेक्ट्रिसिटी विकासशील इलाकों में सेहत और स्वास्थ संबंधी मामलों में भी मददगार साबित हो सकती है. ग्रामीण इलाकों में मल, मूत्र और कचरे से निपटना भी बड़ी समस्या है. उनके मुताबिक इस दिशा में भी लोगों को राहत मिलेगी.
ब्रिस्टल में ही यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट इंग्लैंड के प्रोफेसर जॉन ग्रीनमैन ऐसे सूक्ष्म जीवों पर काम कर रहे हैं जो पानी को साफ कर सकें. अगर इन दो तकनीकों को मिला दिया जाए तो भविष्य के लिए 'सुपर टॉयलेट' का निर्माण हो सकता है.
ग्रीनमैन के मुताबिक मूत्र को फसल पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. लेकिन अगर इसे सूक्ष्म जीवों द्वारा की जाने वाली विघटन प्रक्रिया से गुजारा जाए तो एक तरफ तो विद्युत पैदा की जा सकती है, दूसरे इस प्रक्रिया से होकर निकलने वाला पानी काफी साफ होता है जिसे फसल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
संभव है कि कई लोगों को यह तकनीक बहुत न भाए क्योंकि मल मूत्र के बारे में लोगों की धारणाएं अच्छी नहीं हैं. लेकिन अगर इससे पर्यावरण और मानव जाति को फायदा हो, तो हो सकता है लोगों की इस पर आपत्ति भी समय के साथ खत्म हो जाए.
रिपोर्ट: अमेरिला पॉल/एसएफ
संपादन: ईशा भाटिया
जीना टॉयलेट के बिना
भारत की आधी से ज्यादा आबादी के पास मोबाइल फोन हैं, लेकिन एक तिहाई से भी कम लोग टॉयलेट का इस्तेमाल कर पाते हैं. 19 नवंबर को टॉयलेट दिवस के रूप में मनाने वाली दुनिया में एक अरब से भी ज्यादा लोगों का यही हाल है.
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गरीबी से लड़ते टॉयलेट
बेहतर साफ सफाई और साफ टॉयलेट के लिए दुनिया भर में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. दुनिया की एक तिहाई आबादी के पास साफ शौचालय नहीं है. इससे बीमारियां फैलती हैं. खराब हाइजीन के कारण मरने वालों की संख्या खसरा और मलेरिया के कारण मरने वालों से भी ज्यादा है.
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संकटग्रस्त इलाकों में..
टॉयलेट बनाना मुश्किल है. अक्सर लोग घंटों इंतजार करते हैं. ट्यूनीशिया में भागे सोमालियाई लोगों के लिए अलग से जगहें बनाने की जरूरत है, जो स्थानीय संरचना के लिए बहुत मुश्किल है.
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गंदा काम
भारत के कई हिस्सों में जहां पानी वाले टॉयलेट नहीं हैं, वहां इनकी सफाई के लिए लोग हैं. भारतीय संविधान के मुताबिक इस पर 20 साल से रोक है लेकिन अभी तक किसी पर मुकदमा नहीं चला है. नई दिल्ली में इस साल की शुरुआत से इस तरह के शौचालयों पर रोक लगा दी गई है.
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स्वास्थ्य में निवेश
पानी के कारण होने वाली बीमारियों, जैसे टायफाइड और पेचिश के संक्रमण उन इलाकों में बहुत तेजी से बढ़ते हैं, जहां साफ टॉयलेट नहीं हैं. अफ्रीका के किबेरा में लोग प्लास्टिक की थैली का इस्तेमाल करते और फिर इसे फेंक देते. अब जब नैरोबी के शैंटीटाउन में यह टॉयलेट बनाया गया है, कम लोग बीमार हो रहे हैं.
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पोलियो का संक्रमण
सीरियाई सीमा के आस पास बने शरणार्थी शिविरों में हर दिन हजारों लोग सीरिया से आ रहे हैं. शिविरों में क्षमता से ज्यादा लोग है और इस कारण गंदे पानी से होने वाली बीमारियां और संक्रामक पोलियो भी बढ़ रहा है.
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टिकाऊ हल
बोलिविया की राजधानी ला पाज के नजदीक एल आल्टो में ऐसा शौचालय बनाया गया है जिसमें मल मूत्र अलग अलग होता है और उसका ट्रीटमेंट इस तरह से होता है कि उसे खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. किसानों को यह मुफ्त में मिलता है और फुटबॉल मैदान में इस खाद का इस्तेमाल हो सकता है.
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यूरोप में भी पुराने तरह के टॉयलेट
यूरोपीय संघ में दो करोड़ लोगों के लिए साफ टॉयलेट्स नहीं हैं. पूर्वी यूरोप में अभी भी पुराने तरह के टॉयलेट हैं. ये वहां पीने के पानी को दूषित करते हैं, जहां कुआं हो. यहां हाइजीन खराब है और अर्थव्यवस्था भी.
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इथियोपिया में मदद
जीवन बेहतर बनाने के लिए एक साधारण सा टॉयलेट भी काफी है. इथियोपिया में अब लोगों को निजी टॉयलेट उपलब्ध हो पा रहा है. टॉयलेट ट्विनिंग जैसी संस्थाएं इसे मुमकिन बना रही हैं. पहले लोग बहुत बीमार रहते थे.
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बिना पानी के
अलास्का के माउंट मैक किनले पर बने इस टॉयलेट के तो कहने की क्या.. यहां से उत्तरी अमेरिका के सबसे ऊंचे पर्वत का शानदार नजारा दिखता है.
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जैविक टॉयलेट
सुलभ शौचालयों ने भारत में एक नई क्रांति लाई थी. ऐसी ही एक और कोशिश की जा रही है जैविक टॉयलेटों के जरिए. ये बायो डाइजेस्टर टॉयलेट ऐसी जगहों पर भी लगाए जा सकते हैं जहां मल निकासी की सुविधा नहीं है.
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कलावती का शौचालय मिशन
भारत में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में रेल की पटरियों के इर्द गिर्द बसी राजा का पुरवा बस्ती में 1991 से पहले तक मल मूत्र सड़कों पर बहा करता था, लेकिन अब वहां की ही एक महिला कलावती के अभियान के कारण वहां 50 सीटों वाला एक सामुदायिक शौचालय कामयाबी से चल रहा है.