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मूलभूत अधिकार है निजता का अधिकार

२४ अगस्त २०१७

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि भारतीय नागरिकों को निजता का अधिकार संविधान ने दिया है जो मूलभूत अधिकारों में शामिल है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने की सरकार की कई योजनाओं पर होगा.

Indien Recht auf Privatsphäre- Oberster Gerichtshof
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यों वाली बेंच ने कहा है कि भारतीय संविधान में निजता का साफ तौर पर जिक्र नहीं है और सरकार की दलील है कि भारत के सवा सौ करोड़ नागरिक निजता को पू्र्ण अधिकार के रूप में पाने की उम्मीद नहीं कर सकते. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि निजता को, "धारा 21 के आंतरिक हिस्से में संरक्षित किया गया है जो जीवन और आजादी की रक्षा करती है." सुप्रीम कोर्ट में बायोमेट्रिक आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने के फैसले पर दायर याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक विशेष बेंच का गठन किया था.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Das

आधार की शुरुआत एक स्वैच्छिक कार्यक्रम से हुई थी जिसे बाद में सरकार ने सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए जरूरी बना दिया. इतना ही नहीं लोगों के बैंक खाते, आयकर, पेंशन और तमाम दूसरी योजनाओं के लिए एक के बाद एक कर इसे जरूरी बना दिया गया. सरकार का कहना है कि वह ऐसा इसलिए कर रही है ताकी सरकारी योजनाओं में चल रहे भ्रष्टाचार और जालसाजी को रोक सके. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल 1,00,000 करोड़ रुपये की सरकारी रियायत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती है.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Das

आधार कार्ड का विरोध करने वालों का कहना है कि इस कार्ड के जरिये सरकार के पास अपने नागरिकों से जुड़ी तमाम सूचनाएं पहुंच जाएंगी जिनका दुरुपयोग हो सकता है. इनके आधार पर नागरिकों की प्रोफाइलिंग भी की जा सकती है क्योंकि बायोमेट्रिक पहचान के अलावा संपत्ति और खर्च के ब्यौरे जैसी चीजें भी किसी नागरिक के बारे में इसके जरिये हासिल की जा सकती हैं. विरोधियों का दावा है कि इसका अत्यधिक उपयोग लोगों की निजता में दखल है.

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फैसले के बाद कहा कि इस फैसले का असर आधार कार्ड पर होगा. कोर्ट के बाहर प्रशांत भूषण ने पत्रकारो से कहा, "किसी भी मूलभूत अधिकार पर कानून के जरिए कुछ उचित रोक लगाई जा सकती है. आधार कार्ड लोगों पर अनुचित रोक लगाता है कि नहीं, यह देखा जाएगा."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने इस बात से इनकार किया था कि आधार कार्यक्रम लोगों की आजादी के लिए खतरा है. हालांकि लोगों की निजी जानकारियों के लीक होने की कई घटनायें सामने आ चुकी हैं. इसी साल मई में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इस विचार को ही नकार दिया कि भारत के लोग अपनी आंखों की पुतलियों का रंग और उंगलियों के निशान सरकार को सौंपने से इनकार कर सकते हैं. अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में दलील दी थी, "किसी के शरीर पर पूर्ण अधिकार की बात एक मिथक है."

तस्वीर: Reuters/A. Abidi

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों ने माना कि लोगों की निजी जानकारियों की दुरूपयोग हो सकता है और इंटरनेट के युग में इन आंकड़ों की रक्षा एक चुनौती है. इसके सात ही जजों ने यह भी माना है कि लोगों की निजता पर कुछ रोक भी लगाई जा सकती है. संविधान के विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला भारतीय लोकतंत्र के लिए एक परीक्षा है जिसके इस विषय में दूरगामी नतीजे होंगे कि कोई शख्स निजी अधिकारों के आधार पर किसी कानून को चुनौती दे सकता है या नहीं.

एनआर/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)

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