मेघालय सरकार प्रांत में बिजली की कमी और विकास के लिए बिजली का हवाला देकर पनबिजली परियोजना शुरू करना चाहती है. तो एशिया की सबसे साफ नदी के किनारे बसे गांवों के लोगों को पर्यावरण की चिंता सता रही है.
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पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की सरकार ने एशिया की सबसे साफ नदी उमंगोट पर एक मेगा बांध बनाने का फैसला किया है. लेकिन आसपास के गांव वाले इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं. गांव वालों की दलील है कि बांध बन जाने के बाद गर्मी के मौसम में इस नदी के सूखने का खतरा है और बरसात में बाढ़ का. इलाके के लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन होने के साथ यह नदी पर्यटकों के आकर्षण का भी केंद्र है. दूसरी ओर, सरकार भी अपने फैसले पर अड़ी है. उसने स्थानीय लोगों की दलीलों की निराधार ठहराया है.
पनबिजली परियोजना और बांध
मेघालय सरकार ने देश ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे साफ नदी उमंगोट पर 210 मेगावाट क्षमता वाली पनबिजली परियोजना के लिए बांध बनाने का फैसला किया है. यह बांध वेस्ट जयंतिया हिल्स जिले में नदी के ऊपरी हिस्से में बनाया जाना है. लेकिन इसका विरोध कर रहे हैं ईस्ट जयंतिया हिल्स के आसपास बसे कम से कम एक दर्जन गांवों के लोग. यह इलाका बांग्लादेश की सीमा से सटा है. यह परियोजना मेघालय एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से लगाई जानी है. परियोजना के लिए बीते सप्ताह वेस्ट जयंतिया हिल्स के मूसाखिया में एक जन सुनवाई आयोजित की गई थी. लेकिन 12 गांवों के सैकड़ों लोगों ने मौके पर पहुंच कर विरोध प्रदर्शन किया और संबंधित अधिकारियों के काफिले का रास्ता रोक कर उनको मौके पर नहीं पहुंचने दिया. उससे पहले ईस्ट जयंतिया हिल्स में आयोजित जन सुनवाई के दौरान भी यही हुआ था.
मेघालय रूरल टूरिज्म फोरम के अध्यक्ष एलन वेस्ट खारकोंगर कहते हैं, "इलाके के तमाम लोग प्रस्तावित मेगा बांध के विरोध में हैं. लोग अपनी आजीविका के लिए इसी नदी पर निर्भर हैं. दरअसल, स्थानीय लोगों को डर है कि अगर उक्त परियोजना को लागू किया गया तो उमंगोट नदी पर निर्भर गांवों में अकाल जैसी हालात पैदा हो जाएगी और साथ ही यह इलाका राज्य के पर्यटन नक्शे से गायब हो जाएगा."
सरकार की ओर से जारी परियोजना के ब्योरे में कहा गया है कि बांध बनने की स्थिति में उमंगोट नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण उसके किनारे बसे 13 गांवों के लोगों की करीब 296 हेक्टेयर जमीन पानी में डूब जाएगी. हालांकि तीन-चार गावों के लोग बांध के समर्थन में भी हैं. उनकी दलील है कि इससे इलाके का विकास होगा और रोजगार के मौके पैदा होंगे.
बांग्लादेश सीमा से सटे दावकी में इस उमंगोट नदी को देखने के लिए हर साल देश-विदेश से हजारों की तादाद में सैलानी पहुंचते हैं. नदी का पानी इतना साफ है कि लगता है उस पर चलने वाली नावें किसी शीशे पर खड़ी हैं. उन नावों की छाया नदी की तलहटी पर दिखाई पड़ती है.
पर्यावरण को बांधने वाले बांध
आम तौर पर बांधों को पर्यावरण सम्मत माना जाता है. इनसे नवीकरणीय ऊर्जा तो पैदा होती है लेकिन बड़े बड़े बांधों का उनके आसपास के पर्यावरण पर बुरा असर भी पड़ता है.
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कहां कितने बांध
पर्यावरणविदों को डर है कि कहीं आर्थिक विकास की आंधी में ताबड़तोड़ बनाए जा रहे विशाल बांध हाशिए पर आ गए समुदाय और जैव विविधता दोनों को ही ना उड़ा ना ले जाएं. खासकर दक्षिण एशिया में विशाल बांध परियोजनाओं पर काम लगातार जारी है. ग्लोबल डैम वॉच के आंकड़ों को देखें तो इस समय दुनियाभर में 3700 के आसपास बड़े स्तर के बांध बन रहे हैं, जिनमें से 2800 से अधिक केवल एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में ही हैं.
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जलवायु परिवर्तन को बढ़ाते बांध
बांधों के समर्थक इनके निर्माण को बेहद जरूरी बताते हैं क्योंकि यह सस्ती और साफ ऊर्जा का एक उपयोगी स्रोत है. इससे फॉसिल फ्यूल पर इंसान की निर्भरता कम करने में मदद मिलती है और पानी की लगातार आपूर्ति भी सुनिश्चित की जा सकती है. हालांकि बांध वाले बड़े इलाके में पानी को फैला कर रखे जाने से सतह से पानी का वाष्पीकरण बहुत ज्यादा होता है, जिससे पीने योग्य पानी का नुकसान होता है.
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सिमटता जलीय जीवन
पानी के रुकने से नीचे के इलाकों में केवल पानी ही नहीं उसके साथ बह कर जाने वाला ठोस पदार्थ जैसे मिट्टी, बालू और जैव सामग्री भी कम हो जाती है. इससे नीचे के इलाकों में जमीन कम उपजाऊ हो जाती है, नदियों का तल और गहरा होता जाता है और मिट्टी का खूब अपरदन होता है. एक अनुमान के मुताबिक बड़े बांध के कारण नीचे जाने वाले तलछट में 30 से 40 की कमी आती है.
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पानी की कमी
जल ही जीवन है और चूंकि बांध इसी जल को बांधते हैं , वे नीचे की ओर होने वाले जलप्रवाह के जीवन को प्रभावित करते हैं. ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां बांध को ही लीजिए. इथियोपिया में बन रहा यह बांध अफ्रीका में पनबिजली का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. लेकिन इससे प्रवाह के नीचे की ओर स्थित मिस्र को खेती के लिए पर्याप्त पानी ना मिलने की चिंता है.
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बदलता ईकोसिस्टम
पानी के साथ घुली मिट्टी पर नदी की मछलियां अपने भोजन के लिए निर्भर होती हैं. इसी पानी में घुली चीजों से नदी के अंदर पलने वाले सभी पौधों को पोषण मिलता है. इस सबको बांध के कारण ऊपर ही रोक लिए जाने की वजह से धीरे धीर नीचे के प्रवाह वाले हिस्से की नदी मरने लगती है. फिर वहां एक नए तरह का ईकोसिस्टम विकसित होता है, जो कि पहले से बिल्कुल अलग होता है.
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गायब होती जैवविविधता
सन 2018 की एक स्टडी में पाया गया कि एशिया की मेकॉन्ग नदी में बांधों के कारण मछलियों की तादाद में 40 फीसदी तक की कमी आ सकती है. इसके साथ ही इलाके में पाए जाने वाले धरती के सबसे दुर्लभ कपि - तापानुली ओरांगउटान भी मिट सकते हैं. इनकी कुल संख्या 500 के आसपास है. ऐसा ही खतरा कई जगहों पर कुछ दूसरी प्रजातियों पर भी मंडरा रहा है.
भविष्य में तापमान बढ़ते जाने के कारण पानी को लेकर लड़ाइयां बढ़ना तो तय है, खासकर मध्यपूर्व के देशों में पानी का संकट और गहराएगा. ऊपर से कई इलाकों में बाढ़ आने से तमाम धरोहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा. तुर्की में टिगरिस नदी में बाढ़ के कारण 12,000 साल पुराना हसनकेइफ शहर हमेशा हमेशा के लिए पानी में डूब सकता है.
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कोई विकल्प है?
अगर विशाल बांधों की जगह छोटे बांध बनाए जाएं तो भी नुकसान वैसे ही होंगे. इनकी जगह पर इन-स्ट्रीम टरबाइनों से ऊर्जा पैदा करने का विचार सामने आया है. वहीं, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि सारा का सारा ध्यान सौर और वायु ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाने पर लगाया चाहिए, जिनका पर्यावरण पर इतना बुरा असर नहीं होता.
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सरकार ने किया विरोध को नजर अंदाज
दूसरी ओर, गांव वालों के विरोध के बावजूद मेघालय सरकार ने उमंगोट नदी पर प्रस्तावित परियोजना का बचाव किया है. इस परियोजना को लागू करने वाला मेघालय एनर्जी कारपोरेशन छह सौ करोड़ के बकाया बिजली बिलों की वजह से वित्तीय तौर पर जर्जर हो चुका है. राज्य के बिजली मंत्री जेम्स संगमा कहते हैं, "हम जानते हैं कि निचले इलाकों के ज्यादातर लोग उमंगोट नदी पर आधारित पर्यटन पर निर्भर हैं. लेकिन उस पर परियोजना का कोई असर नहीं होगा क्योंकि बांध जहां बनना है वह जगह पर्यटकों के आने की जगह से दूर है." उनकी दलील है कि मेघालय बिजली की भारी कमी से जूझ रहा है. हम तमाम संबंधित पक्षों को साथ लेकर इस परियोजना पर आम राय बनाने का प्रयास कर रहे हैं.
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कहते हैं, "हम गांव वालों की शिकायतों पर विचार करेंगे और अगर उनमें सच्चाई हुई तो इस समस्या का बातचीत के जरिए समाधान करने का प्रयास किया जाएगा. हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं." उनका कहना है कि राज्य बिजली के अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है. इससे निपटने के लिए बिजली का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है. लेकिन साथ ही स्थानीय लोगों की दिक्कतों को भी ध्यान में रखा जाएगा.
लेकिन सरकार की इन दलीलों का गांव वालों पर अब तक कोई असर नहीं हुआ है. उनका कहना है कि उक्त बांध डावकी और आसपास के इलाकों में पर्यटन को चौपट कर देगा. लोगों का कहना है कि इस पनबिजली परियोजना के कारण उनकी खेती लायक जमीन डूब जाएगी. एक बार उमंगोट नदी पर बांध बन जाने के बाद सर्दियों के मौसम में नदी में पानी सूख जाएगा.
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बांध से पर्यावरण को नुकसान की चिंता
ईस्ट जयंतिया हिल्स में पर्यटन से आजीविका चलाने वाले लीजेंडर ई. सोखलेट कहते हैं, "यह बात सही है कि इस परियोजना से काफी बिजली पैदा होगी. लेकिन इसके प्रतिकूल असर को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. इससे गांव वालों की आजीविका खत्म हो जाएगी. पर्यटन का कारोबार तो पूरी तरह चौपट हो जाएगा." उनकी दलील है कि बांध बनने के बाद इलाके में बाढ़ का खतरा तो बढ़ेगा ही, इलाके की जैव विविधता और पास के जंगल के पर्यावरण को भी भारी नुकसान होने का अंदेशा है.
मेघालय प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष जेएस शाइला कहती हैं, "इस परियोजना को महज व्यावसायिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. इसके सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए. इस परियोजना से एक दर्जन से ज्यादा गांवों के लोगों से रोजगार छिन जाएगा." पर्यावरणविदों ने भी इस परियोजना पर चिंता जताई है. पर्यावरणविद् पीजे संगमा कहते हैं, "मेघालय जैव-विविधता और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है. बिजली की जरूरत के लिहाज से यह परियोजना ठीक है. लेकिन इसके तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए. पर्यावरण पर इसके प्रतिकूल असर का भी अध्ययन किया जाना चाहिए. सिर्फ बिजली के लिए हजारों लोगों की आजीविका छीनना सही नहीं है."
क्यों आती है भारत के इन राज्यों में बार बार बाढ़
भारत में हर साल कई राज्य बाढ़ से प्रभावित होते हैं. इसे कम करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नदियों को जोड़ने की योजना बनाई थी. आइए जानते हैं कि इन राज्यों में किन कारणों से बार बार आती है बाढ़.
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बिहार
बिहार के उत्तरी हिस्से में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है. इसकी मुख्य वजह नेपाल से आने वाली नदियां हैं. नेपाल में भारी बारिश के बाद वहां का पानी बिहार आ जाता है. कोसी, सीमांचल सहित मुजफ्फरपुर, शिवहर, पूर्वी चंपारण बाढ़ की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
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महाराष्ट्र
महाराष्ट्र का एक इलाका जहां सूखा से प्रभावित है, वहीं दूसरी ओर राजधानी मुंबई में हर साल बारिश के मौसम में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इसके पीछे की मुख्य वजह जलनिकासी के रास्तों का साफ नहीं होना माना गया है. लोग खुले में कचरा फेंक देते हैं, जो जलनिकासी के रास्ते को अवरूद्ध कर देता है और बाढ़ का कारण बनता है. समुद्री जलस्तर में इजाफा भी बाढ़ का एक कारण है.
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असम
असम में बाढ़ की मुख्य वजह मानसून की बारिश के कारण नदियों में पानी का बढ़ जाना है. ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में जलस्तर अचानक बढ़ जाने से ऐसे हालात बनते हैं. धेमाजी, लखीमपुर, बिस्वनाथ, नलबाड़ी, चिरांग, गोलाघाट, माजुली, जोरहाट, डिब्रूगढ़, नगांव, मोरीगांव, कोकराझार, बोंगाईगांव, बक्सा, सोनितपुर, दर्रांग और बारपेटा जिले इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/U. Saikia
त्रिपुरा-मिजोरम
त्रिपुरा और मिजोरम के निचले इलाकों व गांवों में बारिश के कारण आने वाली बाढ़ से लगभग हर साल हजारों लोग प्रभावित होते हैं. ख्वाथलंगतुईपुई नदी और इसकी सहायक नदियों की वजह से कई लोगों का आशियाना छिन जाता है. राज्य के कई इलाकों का देश के बाकी हिस्से से रेल मार्ग से संपर्क टूट जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Dey
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में लगातार बारिश से कई जिलों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं. नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है और कई गांव जलमग्न हो जाते हैं. गंगा और उसकी कई सहायक नदियों सहित सरयू, गोमती, घाघरा के किनारे बसे क्षेत्र ज्यादा प्रभावित होते हैं.
तस्वीर: Getty Images/S.Kanojia
जम्मू और कश्मीर
जम्मू और कश्मीर राज्य में 2014 में भयानक बाढ़ आई थी. उस बाढ़ में दो सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. भारी पैमाने पर भूस्खलन हुआ था. सैकड़ों गांव प्रभावित हुए थे. लोगों की मदद के लिए सेना को उतारा गया था. राज्य में बाढ़ की मुख्य वजह भारी बारिश, बादल का फटना, नदियों व तालाबों का अतिक्रमण, भूस्खलन और जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पर हो रहा असर है. (रिपोर्ट-रवि रंजन)