मेरा दोस्त, डिजिटल कब्जावर
२९ अक्टूबर २०१३वॉशिंगटन 1972, डेमोक्रैटिक पार्टी के मुख्यालय में सेंध लगी थी. सेंध लगवाने वाले तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के करीबी लोग थे. राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की चुनाव रणनीति के बारे में ज्यादा जानकारी पाने की आपराधिक कोशिश की कीमत कुछ समय बाद राष्ट्रपति को अपना पद देकर चुकानी पड़ी. तब से वॉटरगेट अमेरिका की राजनीतिक संस्कृति पर धब्बे की तरह है. चार दशक से ये शब्द राजनीतिक नीचता का पर्याय बन गया है.
देशों के दोस्त नहीं, हित होते हैं
आश्चर्य नहीं कि एनएसए की जासूसी को बर्लिन में जल्द ही नाम मिल गया है, उसे हैंडीगेट कहा जा रहा है. लेकिन मैर्केल के मोबाइल संचार की दुनिया में सेंध लगाने की कोशिश को कौन वॉटरगेट के नजदीक ले जाना चाहेगा? लेकिन सिद्धांत में यह तुलना उचित है. डिजिटल युग में सूचना पाने के लिए सेंध लगाने के लिए लैंप और खुरपी छेनी की जरूरत नहीं है. रास्ते अलग हैं, लेकिन लक्ष्य या उद्देश्य एक ही है.
अमेरिकी वह करते हैं जो संभव है, भले ही वह गैरकानूनी और अनैतिक हो. यह वे अपने बारे में और अपनी ताकत के बारे में खुद कहते हैं. इस तरह देखें तो बराक ओबामा सबसे पहले अपने देश के हितों के प्रथम प्रतिनिधि हैं और वे दुनिया को भी इसी नजरिए से देखते हैं. ठीक उस तरह से जैसे फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स द गॉल ने एक बार कहा था, देशों के दोस्त नहीं होते, सिर्फ हित होते हैं.
और अमेरिका के हित वैश्विक हैं. यदि खबरें सच हैं तो दुनिया भर में अमेरिका के करीब 80 टेलीफोन टेप करने वाले केंद्र हैं, उनमें से 19 यूरोप में हैं और दो जर्मनी में. बर्लिन के अलावा देश की वित्तीय और कारोबारी राजधानी फ्रैंकफर्ट में. पहली नजर में यह ऐसी जगह नहीं है जिसका लेना देना आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष से हो. उससे ज्यादा लगता है कि अमेरिका की दिलचस्पी वित्तीय तबके की जानकारी हासिल करने में है. यह बेवफाई है.
दोस्तों की जासूसी सत्ता का दुरुपयोग
जर्मनी अमेरिका का बहुत शुक्रगुजार है. उसे दूसरी चीजों के अलावा अमेरिका से लोकतंत्र का भी तोहफा मिला है, इसके लिए राष्ट्र ने संघर्ष नहीं किया है. इसके अलावा मार्शल प्लान की मदद से जर्मनी एक आर्थिक ताकत बना है, जो वह सालों से है. इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में पहले पश्चिम जर्मनी और बाद में बड़ा जर्मनी भी अपने बर्लिन मुख्यालय के साथ अमेरिका से स्वतंत्र नहीं हो पाया है.
हम हमेशा बिना किसी प्रतिरोध के बड़े भाई के साथ रहे हैं. चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर की इराक युद्ध के लिए मनाही इतिहास का एकमात्र अपवाद है. जासूसी कांड एक नए काल की शुरुआत का मौका है, वो भी ऐसे वक्त में जब जर्मन अमेरिकी दोस्ती खास तौर पर गहन और अटूट समझी जाती है, शब्दों और हकीकत में बर्लिन की प्रतिक्रिया में नयापन होना चाहिए.
आत्मविश्वास से भरी जर्मन प्रतिक्रिया के मौके भी हैं. यूरोपीय संघ के साथ होने वाली मुक्त व्यापार की बातचीत और ब्राजील के साथ अमेरिका के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव की संयुक्त पहलकदमी. अंत में जो भी नतीजा निकले, संदेश यह होना चाहिए कि घड़ा भर चुका है. यदि वॉशिंगटन दूसरे विश्वयुद्ध के 70 साल बाद और जर्मन एकीकरण के 23 साल बाद डिजिटल कब्जा करने वाले की तरह बर्ताव करता है, तो दोस्ती का सवाल उठाने का मौका आ गया है.
समीक्षा: फोल्कर वागेनर/एमजे
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी