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मेरी तेरी और सब की क्रिसमस

२४ दिसम्बर २०१०

क्रिसमस पर बाजार चॉकलेट, केक और तोहफों से भरे रहते हैं. जर्मनी में दूसरे देशों से आए अन्य धर्मों के लोग भी इस त्योहार को भरपूर तरीके मनाते हैं. भले उनके लिए इसका धार्मिक महत्व न हो, पर यह खुशियां बांटने का मौका तो है ही.

तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur H

बिस्किट बेक करते समय आने वाली महक, जगमगाती लाइटें, सजे धजे बाजार और क्रिसमस मार्केट्स. इस सब के मोह में वो सभी लोग भी खिंचे चले आते हैं जो अपने देश में या कहीं और क्रिसमस बिल्कुल नहीं मनाते. दूसरे देशों से आए लोग क्रिसमस की कई परंपराओं अपना लेते हैं और इसमें अपनी खुशियां तलाशते हैं.

दो दो बार क्रिसमस

पारंपरिक रूसी श्नाइडर परिवार में क्रिसमस की परंपराओं का कायदे से पालन किया जाता है. माइकल और एलेना दस साल से जर्मन शहर ड्यूसलडॉर्फ में रह रहे हैं और उनके दोनों बेटे वहीं पैदा हुए. अब बच्चों की वजह से जर्मन क्रिसमस की परंपरा उनके परिवार का हिस्सा बन गई हैं.

एलेना बताती हैं, "एक सामान्य जर्मन परिवार की तरह हम भी अपने घर में क्रिसमस से पहले एडवेंट पर मोमबत्तियां सजाते और जलाते हैं. बच्चे कुकीज बनाते हैं. दिसंबर के दूसरे रविवार को हम क्रिसमस ट्री लाते हैं और बच्चों से साथ मिल कर उसे भी सजाते हैं. ये परंपरा मेरे बच्चों ने स्कूल में सीखी और बहुत अच्छी है."

तस्वीर: www.okapia.de

रूस और कई पूर्वी यूरोपीय देशों में ऑर्थोडॉक्स चर्च को माना जाता है जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से चलता है. वहां क्रिसमस 25 दिसंबर की बजाय 7 जनवरी को मनाया जाता है. इसलिए श्नाइडर परिवार दो बार क्रिमसम मनाता है. एलेना बताती हैं, "हमारे यहां त्योहार छह हफ्ते चलता है. चार सप्ताह जर्मनी के हिसाब से और दो सप्ताह रूसी हिसाब से. इसलिए हमें दो दो बार गिफ्ट मिलते हैं, हम दो दो बार मजे करते हैं."

खुशियां मनाने का मौका

33 साल के तुर्गे तुरगुत जर्मनी में ही पैदा हुए हैं. उनके माता पिता ने कभी क्रिसमस नहीं मनाया. लेकिन बचपन में उनका बहुत मन करता था कि क्रिसमस मनाएं. वह कहते हैं, "स्कूल में दूसरे बच्चे क्रिसमस के बारे में बात करते थे और बताते थे कि उन्हें क्या क्या गिफ्ट मिले हैं. मैं ये बातें बड़े मजे से सुनता था. हमने निकोलस की परंपरा और क्रिसमस की सजावट को अपना लिया. फिर घर में एक घर में एक क्रिसमस ट्री आया करता था और उसे सजाया जाता था. लेकिन हम धार्मिक तौर पर इस त्योहार को नहीं मनाते थे."

अब तुरगुत शादीशुदा हैं और उनका एक बेटा भी है. उनके परिवार में अब शानदार तरीके से क्रिसमस मनाया जाता है. भले ही वह ईसाई न हो, त्योहार तो मनाते हैं. कुछ ऐसा ही बैर्गिश ग्लाडबाख में रहने वाले भारतीय मूल के राजू पाठक के परिवार में भी होता है. वह अपनी जर्मन पत्नी को क्रिसमस ट्री सजाने में मदद कर रहे है और कुकीज बनाने में भी. लेकिन 67 साल के राजू खुद इसे एक त्योहार नहीं मानते.

तस्वीर: picture alliance/Bildagentur-online/Forkel

क्या तोहफा दूं

राजू कहते हैं, "मेरी पत्नी और बच्चे कई बार जिद करते हैं कि हमें तो यही वाला क्रिसमस ट्री चाहिए. लेकिन मुझे तो सब एक जैसे लगते हैं. मेरी बाहर से देखता हूं और बहुत मजा आता है. मुझे गिफ्ट भी मिलते हैं लेकिन मैं गिफ्ट देता नहीं हूं. शायद कभी कभी कोई कविता गिफ्ट कर देता हूं. लेकिन वह सब मैं जरूर करता हूं जो मुझ से कहा जाता है. हिंदू त्योहार भी मैं नहीं मनाता हूं क्योंकि मैं नास्तिक हूं."

धार्मिक आधार पर त्योहार मनाएं या नहीं मनाएं, इस बात से जर्मनी में रहने वाले विदेश मूल के कई लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता. कुछ बहुत धूमधाम से इसे मनाते हैं तो कुछ सामान्य तरीके से. लेकिन उनके लिए क्रिसमस एक ऐसा मौका है जब पूरा परिवार एकजुट होता है. धार्मिक तामझाम से दूर वह इसे सिर्फ खुशियां मनाने के एक मौके के तौर पर देखते हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः आभा एम

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