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मैंने ज्यादा फिल्में तो देखी नहीं हैं: आमिर

२१ फ़रवरी २०११

आमिर खान जर्मनी में हैं. बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में वह ज्यूरी मेंबर के तौर पर आए हैं. डॉयचेवेले से बातचीत में हमने उनके सामने रखे वे सवाल जो जर्मनी में रहने वाले लोगों के मन में उठते हैं. आप भी पढ़िए.

तस्वीर: AP

आप पहली बार बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में आए हैं, कैसा रहा बर्लिनाले का अनुभव?

बड़ा अच्छा रहा. बर्लिन तो बड़ा मशहूर फेस्टिवल है, दुनिया में इसकी बहुत इज्जत है. जब मुझे इसकी ज्यूरी में आने के लिए निमंत्रण दिया गया तो बड़ा अच्छा लगा. वैसे मैं बर्लिन फेस्टिवल इससे पहले कभी आया नहीं हूं. तो यह मेरे लिए एक मौका भी था, इसका अनुभव लेना, यहां की फिल्में देखना. यहां के लोगों से मिलना भी एक अच्छा अनुभव रहा.

यूरोप और भारत के सिनेमा की जब बात की जाती है तो किस तरह अंतर दिखता है आपको, दोनों जगहों के सिनेमा में?

मैं पहले यह कहना चाहूंगा कि यूरोपीयन सिनेमा के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. इतनी ज्यादा फिल्में मैंने देखी भी नहीं हैं यहां की. तो सही मायने में मैं कोई टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा. लेकिन मैं आपको हिंदुस्तानी सिनेमा के बारे में बता सकता हूं. हमारा मुख्यधारा का सिनेमा जिंदगी से बड़ा है. वह आपको बड़ी कहानियां बताता है, भावनाएं दिखाता है और उसमें बड़ी संजीदगी से कहानी बताने का एक तरीका है. हमारी ज्यादातर फिल्में संगीतमयी होती हैं, उनमें गानों का बड़ा इस्तेमाल होता है. एक खास फर्क जो मुझे नजर आता है वह यह है कि भारतीय सिनेमा में एक उम्मीद है, एक सकारात्मकता है, जिंदगी को देखने का एक अलग नजरिया है. भारतीय सिनेमा सच्चाई के ज्यादा करीब नहीं है. उसका मुख्य उद्देश्य आपका मनोरंजन करना है. यूरोपीयन सिनेमा जो मैंने देखा है वह सच्चाई के ज्यादा करीब है. वह आपको जिंदगी के पहलुओं के बारे में बताता है. लेकिन भारतीय सिनेमा में भी अलग अलग किस्म की फिल्में बनती हैं, हमेशा से बनती आई हैं. सत्यजीत रे, श्याम बेनेगल, गोविंद नेहलानी और मृणाल से ये सारे अलग अलग किस्म की फिल्में बनाते हैं. ये मुख्यधारा की फिल्में नहीं हैं. यह सच्चाई के करीब होती हैं, सोचने पर मजबूर करने वाली होती हैं. इस आधार पर देखा जाए तो इंडियन सिनेमा को किसी एक प्रकार से जोड़ना मुश्किल होता है. एक किस्म का सिनेमा नहीं है. अगर आप पीपली लाइव या धोबी घाट देखें, जो फिल्में मैंने खुद प्रोड्यूस की हैं, तो ये बिल्कुल अलग तरह की फिल्में हैं. यह मुख्यधारा में नहीं
बैठती हैं.

तस्वीर: dapd

आप काफी प्रयोग करते हैं. ऐसे प्रयोग सफल भी हो रहे हैं. आपको लगता है कि भारत में अब प्रयोगधर्मी फिल्मों के लिए दर्शकों का एक नया वर्ग तैयार हो रहा है?

मेरे हिसाब से भारत में हमेशा से दर्शकों का अलग अलग वर्ग रहा है. बड़ी फिल्में बनती हैं तो छोटी फिल्में भी बनती है. व्यावसायिक फिल्मों के साथ आर्ट फिल्में भी बनती है. ऐसा हमेशा से होता रहा है. 70 के दशक में जब अमित जी की बड़ी फिल्में आती थीं तो उनके साथ श्याम बेनेगल, गोविंद नेहलानी और वासु चटर्जी की फिल्में भी आया करती थीं. तो अलग अलग किस्म की फिल्में बनती आ रही हैं. और जब हम हिंदुस्तानी सिनेमा कहते हैं तो हमें यह नहीं कहना चाहिए कि हिंदी सिनेमा. हिंदुस्तानी सिनेमा अलग अलग भाषाओं में फिल्में बनाता है. उड़िया, तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी और बांग्ला हर भाषा में हम फिल्में बनाते हैं. तो हिंदुस्तानी सिनेमा को सिर्फ हिंदी सिनेमा नहीं समझना चाहिए.

तस्वीर: dapd

आमिर खासतौर पर आपकी फिल्मों के जो गाने होते हैं उनमें बॉलीवुड का मसखरापन नहीं होता. वे बड़े सादे से और दिल को छू जाने वाले गाने होते हैं. आपको क्या लगता है कि संगीत भी बदल रहा है?

मेरे ख्याल से कोई बहुत खास बदलाव नहीं हो रहा है. लोगों को शीला की जवानी बड़ा पसंद आ रहा है, मुन्नी बदनाम हुई भी बहुत हिट है. उसके साथ साथ लोग तारे जमीं पर का मां भी सुनते हैं. तो मुझे लगता नहीं कि कोई एक किस्म का सिनेमा या संगीत है. जहां तक मेरे काम का सवाल है, तो मैं भी हर तरह की फिल्में करता हूं. तारे जमीं पर और 3 इडियट्स शिक्षा के ऊपर हैं. लेकिन गजनी कोई संदेश नहीं देती. फना एक रोमैंटिक फिल्म है.इसी तरह गाने भी हर तरह के हैं.

आमिर एक स्टाइल आइकन हैं. भारत के युवा आपको फॉलो करते हैं. एक फिल्म में आपने जो टोपी पहनी वह रातों रात हिट हो गई. गजनी ने लड़कों का हेयर स्टाइल बदल दिया.आपको लगता है कि फिल्म स्टार नौजवानों को इस कदर प्रभावित कर सकते हैं.

मुझे लगता है कि हम हिंदुस्तानियों को फिल्में बहुत पंसद हैं और इनका खास असर होता है हम पर. जब मैं छोटा था तो मैं भी फिल्में देखता था. अलग अलग सितारों को देखता था तो मुझ पर इसका असर होता था. गानों का असर होता था. डायलॉग्स का, गीत के बोलों का असर होता था. यह हम सब पर निर्भर रहता है कि हम पर किस चीज का असर होता है.

सुना है धूम में आप विलेन बन रहे हैं, क्या गजनी जैसे विलेन हैं, बॉडी वाले?

मेरी दो फिल्में आ रही हैं. सबसे पहले तो एक फिल्म है जिसकी शूटिंग मार्च में होगी. अभी नाम तय
नहीं है. इसमें मैं, फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी मिलकर प्रोड्यूस कर रहे हैं. डायरेक्टर हैं रीमा काक्टी. यह एक सस्पेंस थ्रिलर है. फिर साल के अंत मैं हम शुरू कर रहे हैं धूम थ्री, जिसमें मैं एक विलेन का किरदार निभा रहा हूं. दोनों ही मुख्यधारा की फिल्में हैं, दोनों की कहानी मुझे बड़ी पसंद है.

इंटरव्यूः ओंकार सिंह जनौटी, बर्लिन

संपादनः वी कुमार

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