ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं की 12 घंटे चली बैठक एक रिफ्यूजी डील के साथ खत्म हो गई. जर्मन चांसलर मैर्केल की सरकार का भविष्य इस बात पर टिका है कि क्या वह ऐसी डील करने में कामयाब होंगी जो देश में सबको स्वीकार्य हो.
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यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डॉनल्ड टुस्क ने कहा है कि रात भर चली बैठक के बाद यूरोपीय नेताओं के बीच आखिरकार आप्रवासी डील को लेकर सहमति बन गई.
जर्मनी चांसलर के लिए यह डील बहुत अहम है क्योंकि उनकी सरकार का भविष्य इस पर टिका है. उनकी सरकार में सहयोगी सीएसयू पार्टी के नेता और गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर शरणार्थियों के मुद्दे पर मनमाफिक समझौता न होने पर जर्मन सीमा पर शरणार्थियों को लौटाने की धमकी दी है. चांसलर मैर्केल समस्या का यूरोपीय समाधान चाहती हैं.
चांसलर मैर्केल ने 2015 में दस लाख से ज्यादा शरणार्थियों को जर्मनी में आने दिया. लेकिन अब उनकी सरकार में सहयोगी और गृह मंत्री जेहोफर तथाकथित 'सेकेंडरी माइग्रेशन' पर पाबंदी लगाने के लिए जोर डाल रहे हैं.
जो लोग जर्मनी में आ चुके हैं, उनके परिवारों को अब यहां लाने की प्रक्रिया को सेकंडरी माइग्रेशन का नाम दिया जा रहा है.
अब यूरोपीय संघ की डील पर सीएसयू पार्टी के एक नेता हांस मिशेलबाख ने संतोष जताया है. उन्होंने जर्मन टीवी चैनल एआरडी को दिए इंटरव्यू में कहा, "यह साझा यूरोपीय शरणार्थी रणनीति की दिशा में एक सही कदम है."
शरणार्थी मुद्दे पर क्या हैं गभीर मतभेद, जानिए
शरणार्थी मुद्दे पर गंभीर मतभेद
शरणार्थी विवाद पर यूरोपीय संघ की शिखर भेंट से पहले 28 सदस्य देशों के नेताओं के बीच गहरे मतभेद बने हुए हैं.
तस्वीर: Reuters/D.Z. Lupi
अंगेला मैर्केल,
चांसलर, जर्मनी
अंगेला मैर्केल ने यूरोपीय साथी देशों से शरणार्थी विवाद निपटाने के लिए साझा प्रयायों की अपील की. जर्मन संसद में बोलते हुए उन्होंने राष्ट्रीय कदमों को ठुकरा दिया, “यूरोप के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं, लेकिन रिफ्यूजी समस्या भविष्य का सवाल बन सकता है."
तस्वीर: Reuters/C. Mang
आंद्रे बाबिस,
प्रधानमंत्री, चेक गणतंत्र
आंद्रे बाबिस ने भूमध्य सागर के शरणार्थियों पर साझा जिम्मेदारी से इंकार किया और कहा, “हम पूरे ग्रह को नहीं बचा सकते.” उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ की दक्षिणी सीमा को बचाने की जिम्मेदारी इटली, ग्रीस, स्पेन और माल्टा की है. शरणार्थी वाली नावों को उत्तर अफ्रीका में ही रोका जाना चाहिए.
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अलेक्सिस सिप्रास,
प्रधानमंत्री, ग्रीस
अलेक्सिस सिप्रास ने कहा है कि वे जर्मन चांसलर के साथ शरणार्थी मुद्दे पर विशेष संधि के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा, “ये उचित नहीं है कि ये लोग जर्मनी जाएं, यदि हम मानते हैं कि ये एक यूरोपीय समस्या है.” उन्होंने कहा कि बोझ के बंटवारे के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों की संरचना खोजी जानी चाहिए.
तस्वीर: Reuters/A. Konstantinidis
फिलिपो ग्रांडी,
प्रमुख, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संगठन
संयुक्त राष्ट्र ने यूरोपीय शिखर सम्मेलन से पहले शरणार्थियों को बचाने वाले जहाजों को रोकने के लिए माल्टा और इटली के फैसलों की आलोचना की है. शरणार्थी संगठन के प्रमुख फिलिपो ग्रांडी ने कहा, “बचाव कार्य को नकारना या शरण की जिम्मेदारी कहीं और थोपना अस्वीकार्य है.”
तस्वीर: Reuters/D. Balibouse
जुसेप कोंते,
प्रधानमंत्री, इटली
इटली के प्रधानमंत्री कोंते ने इटली की मांगें नहीं माने जाने की स्थिति में शरणार्थी समस्या पर यूरोपीय संघ के नेताओं के नियोजित फैसलों पर वीटो लगाने की धमकी दी है. उन्होंने कहा कि वे "उससे नतीजे निकालने" को तैयार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZumaPress
एडी रामा,
प्रधानमंत्री, अल्बानिया
यूरोपीय शरणार्थी नीति में सुधारों पर बहस के बीच अल्बानिया के प्रधानमंत्री एडी रामा ने कहा है कि बाल्कान देश अपने यहां शरणार्थियों के लिए रजिस्ट्रेशन सेंटर बनाए जाने को अस्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा, “हम कभी भी ऐसे शरणार्थी कैंप स्वीकार नहीं करेंगे.”
तस्वीर: DW
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मैर्केल ने कहा, "यूरोपीय संघ के सामने मौजूद शायद इस सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दे पर सघन बातचीत के बाद यह अच्छी बात है कि हमने एक साझा मसौदा अपनाया है." शिखर बैठक में सदस्य देशों से कहा गया है कि वे इटली और ग्रीस जैसे देशों में आने वाले और फिर जर्मनी की तरफ रुख करने वाले शरणार्थियों को रोकने के लिए "हर संभव" कदम उठाएं.
डील के तहत यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों के नेता उन देशों में कदम उठाने के लिए सहमत हुए हैं जहां से शरणार्थी नौकाओं में सवार होकर यूरोप की तरफ आते हैं. इनमें खासकर उत्तरी अफ्रीका के देश शामिल हैं, जहां अब यूरोपीय संघ की तरफ से ऐसे कदम उठाए जाएंगे कि वहां से यूरोप की तरफ लोगों का आना रोका जा सके.
इसके अलावा, यूरोपीय संघ के सदस्य अपने यहां माइग्रेशन प्रोसेसिंग सेंटर कायम कर सकते हैं जिसके जरिए वे यह तय कर सकते हैं कि आने वाले लोगों को आर्थिक आप्रवासी मान कर वापस उनके देश वापस भेजा जाए या फिर उन्हें शरणार्थी के तौर पर वे अपने यहां जगह दें. लेकिन यह सब स्वेच्छा के आधार पर होगा.
शरणार्थियों के लिए नरक बना लीबिया
रिफ्यूजियों के लिए नर्क बना लीबिया
यातना, बलात्कार, भुखमरी, यूरोप पहुंचने का सपना देखने वाले अफ्रीकी लोग, लीबिया में ऐसी बर्बरता का सामना करते हैं. उन्हें ऐसा लगता है जैसे वे नर्क में आ गए हों.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Brabo
गुलामी की रिपोर्टें
अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन की रिपोर्ट के बाद दुनिया को लीबिया में चल रही संदिग्ध मानव तस्करी का पता चला. लीबिया की सरकार ने लोगों को दास बनाकर बेचने के मामले की जांच के लिए एक आयोग बनाया.
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विरोध प्रदर्शन
पेरिस, जेनेवा, ब्रसेल्स और रबात जैसे विख्यात शहरों में लीबिया के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं. मोरक्को में युवाओं ने लीबिया के दूतावास के सामने गुलामों की कथित सौदेबाजी की विरोध किया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Senna
जान सांसत में
यूरोप की तरफ आने वाले अफ्रीकी देशों के लोग लीबिया के नाम से कांपने लगे हैं. लीबिया में एक ही कमरे में दर्जनों लोगों को कैद कर रखने की रिपोर्टें सामने आई हैं. इस दौरान मारपीट, बलात्कार और भुखमरी की शिकायतें भी आईं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Jawashi
अमानवीय हालात
लीबिया के कैंपों में कैद लोगों के मुताबिक कई सेंटरों में हालात नर्क जैसे हैं. एक अनुमान के मुताबिक लीबिया में चार लाख से 10 लाख तक अप्रवासी फंसे हुए हैं. लीबिया के सूत्रों ने यह संख्या 20 हजार बताई है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Jawashi
जेल नहीं, रिफ्यूजी कैंप
लीबिया की सरकार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन मिला है. यूरोप चाहता है कि लीबिया, यूरोप आने वाले लोगों को अपने यहां ही रोक ले. लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों को रोके रखना लीबिया के लिए भी मुश्किल हो रहा है. वहां कई जेलों को भी रिफ्यूजी कैंप में बदल दिया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/C. Occhicone
यूरोप का स्वर्णिम सपना
इस युवा को तटीय शहर मिसराता से 50 किलोमीटर दूर के जेल कैंप में रोका गया है. ज्यादातर अप्रवासी भूमध्यसागर पार कर लीबिया से यूरोप पहुंचना चाहते हैं. यूरोपीय देश चाहते हैं कि इन लोगों को किसी तरह अफ्रीका में ही रोका जाए. (सबरीना मुलर-प्लॉनिकोव, बेनेडिक्ट मास्ट)
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Brabo
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शिखर सम्मेलन में इटली का रुख सबकी चर्चा के केंद्र में था जहां महीने भर पहले ही शरणार्थियों का विरोध करने वाली दो पार्टियों के गठबंधन ने सत्ता संभाली है. शुक्रवार तड़के जब तक इटली के प्रधानमंत्री जुसेप कोंते की सारी मांगें नहीं मान ली गईं, वे यूरोपीय संघ के सभी निष्कर्षों पर वीटो करते रहे.
हाल के हफ्तों में इटली की सरकार ने अपने तटों पर पहुंचने वाली शरणार्थियों की कई नौकाओं को वापस लौटाया है. डील पर अब इटली के प्रधानमंत्री ने संतोष जताया है. उन्होंने कहा, "आज इटली अकेला नहीं है. हम संतुष्ट हैं." डील होने पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा, "यूरोपीय आपसी सहयोग से ऐसा हो पाया."
एके/एमजे (एएफपी, डीपीए)
रोहिंग्या शरणार्थियों के घाव
रोहिंग्या: ये घाव अपनी कहानी खुद कहते हैं..
म्यांमार में सेना की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. इनमें से कई लोगों के शरीर के निशान उन पर हुए जुल्मों की गवाही देते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ ऐसे ही लोगों की फोटो खींची.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
शाहिद, एक साल
पट्टियों में लिपटी एक साल के नन्हे शाहिद की टांगें. यह तस्वीर दिमाग में जितनी जिज्ञासा पैदा करती है, उससे कहीं ज्यादा त्रासदी को दर्शाती है. शाहिद की दादी म्यांमार के सैनिकों से बचकर भाग रही थी कि बच्चा गोद से गिर गया. यह तस्वीर कॉक्स बाजार में रेड क्रॉस के एक अस्पताल में ली गयी. (आगे की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं.)
तस्वीर: Reuters/H. McKay
कालाबारो, 50 साल
50 साल की कालाबारो म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुंगदूत गांव में रहती थी. गांव में म्यांमार के सैनिकों ने आग लगा दी. सब कुछ भस्म हो गया है. कालाबारो के पति, बेटी और एक बेटा मारे गये. कालाबारो घंटों तक मरने का बहाना बनाकर लेटी ना रहती तो वह भी नहीं बचती. लेकिन अपना दाया पैर वह न बचा सकी.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
सितारा बेगम, 12 साल
ये पैर 12 साल की सितारा बेगम के हैं. जब सैनिकों ने उसके घर में आग लगायी तो उसके आठ भाई बहन तो घर से निकल गये, लेकिन वह फंस गयी. बाद में उसे निकाला गया, लेकिन दोनों पैर झुलस गये. बांग्लादेश में आने के बाद उसका इलाज हुआ. वह ठीक तो हो गयी लेकिन पैरों में उंगलियां नहीं बचीं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
नूर कमाल, 17 साल
17 साल के नूर कमाल के सिर पर ये घाव हिंसा की गवाही देते हैं. वह अपने घर में छिपा था कि सैनिक आए, उसे बाहर निकाला और फिर चाकू से उसके सिर पर हमला किया गया. सिर में लगी चोटें ठीक हो गयी हैं, लेकिन उसके निशान शायद ही कभी जाएं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
अनवारा बेगम, 36 साल
अपने घर में सो रही 36 वर्षीय अनवारा बेगम की जब आंख खुली तो आग लगी हुई थी. जलती हुई एक चिंगारी ऊपर गिरी और नाइलोन का कपड़ा उनके हाथों से चिपक गया. वह कहती हैं, "मुझे तो लगा कि मैं बचूगीं नहीं, लेकिन अपने बच्चों की खातिर जीने की कोशिश कर रही हूं."
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मुमताज बेगम, 30 साल
30 साल की मुमताज बेगम के घर में घुसे सैनिकों ने उससे कीमती सामान लेने को कहा. जब मुमताज ने अपनी गरीबी का हाल बताया तो सैनिकों ने कहा, "पैसा नहीं है तो हम तुम्हें मार देंगे." और घर में आग लगा दी. उसके तीन बेटे मारे गये और उसे लहुलुहान कर दिया गया.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
इमाम हुसैन, 42 साल
इमाम हुसैन की उम्र 42 साल है. एक मदरसे में जाते वक्त हुसैन पर तीन लोगों ने हमला किया. इसके अगले ही दिन उसने अपने दो बच्चों और पत्नी को गांव के अन्य लोगों के साथ बांग्लादेश भेज दिया. इसके बाद वह भी इस हालात में कॉक्स बाजार पहुंचा.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मोहम्मद जुबैर, 21 साल
21 साल के मोहम्मद जुबैर के शरीर की यह हालात उसके गांव में एक धमाके का कारण हुई. जुबैर का कहना है, "कुछ हफ्तों तक मुझे कुछ दिखायी ही नहीं देता था." बांग्लादेश पहुंचने के बाद कॉक्स बाजार के एक अस्पताल में उसका 23 दिनों तक इलाज चला.