1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मैरी कॉम से प्रेरित हैं वर्ल्ड चैंपियन रमाला

१४ नवम्बर २०१८

युद्ध की विभाषिका से भागने वाली एक लड़की ने मुक्केबाजी की बदौलत अपने सपनों को पूरा किया है. परिवार से छुपकर मुक्केबाजी करने वाली सोमालिया की रमाला अली मैरी कॉम को अपनी प्रेरणा मानती है.

Ramla Ali
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

एक वक्त ऐसा था, जब सोमालिया गृह युद्ध की आग में जल रहा था. इस अफ्रीकी देश की राजधानी होने के कारण मोगादीशू सबसे अधिक इसकी चपेट में था. 1990 के दशक में इस शहर से एक परिवार का पलायन हुआ था और यह पलायन इस देश की पहली महिला अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज रमाला अली के उद्भव का कारण बना.

मोगादीशू में हुए एक बम हमले में रमाला के 12 साल के भाई की मौत हो गई और इसके कारण उनकी मां को परिवार सहित घर छोड़कर ब्रिटेन में शरण लेनी पड़ी थी. रमाला उस समय दुधमुंही थीं लेकिन ब्रिटेन जाने के बाद जो कुछ उनके साथ हुआ, उसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी.

ब्रिटेन पहुंचने तक का रमाला के परिवार का सफर मुश्किलों भरा था. लगभग नौ दिन तक नाव में सफर करने के बाद रमाला का परिवार और अन्य लोग शरणार्थी बनकर केन्या पहुंचे और फिर संयुक्त राष्ट्र की मदद से उन्होंने इंग्लैंड में शरण ली. यहीं रमाला बड़ी हुईं और मुक्केबाजी सीखी. शुरुआत में तो मुक्केबाजी उनके लिए वजन घटाने का साधन था लेकिन धीरे-धीरे यह उनके लिए एक जुनून बन गया, जिसे आज वह जी भर कर जी रही हैं.

मर्दों के छक्के छुड़ाती थाई ट्रांसजेंडर बॉक्सर

01:19

This browser does not support the video element.

अपने घर को छोड़कर दूसरे देश आने की परेशानी के बारे में रमाला ने आईएएनएस से कहा, "मेरे लिए यह अधिक मुश्किल नहीं था, क्योंकि उस समय मैं बहुत छोटी थी. हालांकि, मेरी बड़ी बहन के लिए यह मुश्किल था. वह 16 साल की थी और उसे अपने सभी दोस्तों को पीछे छोड़कर नई दुनिया में आना पड़ा. नए देश में नई शुरुआत करनी पड़ी. हमें भाषा को समझने में संघर्ष करना पड़ा."

मुक्केबाजी की शुरुआत के बारे में उन्होंने कहा, "स्कूल से मैंने मुक्केबाजी की शुरुआत की. सोमालिया का खाना बहुत अच्छा था और इस कारण मेरा वजन काफी बढ़ गया था. पलायन के बाद जब हम ब्रिटेन आए और नए स्कूलों में गए, तो मुझे कई बच्चों ने वजन को लेकर ताने कसे और परेशान किया. इसी कारण मैंने वजन घटाने के लिए मुक्केबाजी शुरू की."

उन्होंने कहा, "मुक्केबाजी से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और इसके जरिए मैं किसी के सामने भी निडर होकर खड़ी हो सकती थी. इसी कारण मैंने नए देश में नए दोस्त भी बनाए. हालांकि, परिवार का समर्थन मुझे नहीं मिला."

अपने जुनून को पूरा करते हुए रमाला के जीवन में वह पल भी आया, जब उन्होंने एक मुक्केबाज के रूप में पहचान भी कायम की. 2016 में वह ब्रिटिश राष्ट्रीय चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली मुस्लिम महिला मुक्केबाज बनीं. रमाला के लिए यह पल सबसे अहम भी था और सबसे मुश्किल भी.

उन्होंने कहा, "मैं जब नेशनल फाइनल्स में पहुंची तो मेरा साथ देने वाला मेरे परिवार का एक भी व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था. मेरे कुछ दोस्त थे. मेरी प्रतिद्वंद्वी बॉक्सर का परिवार उसके समर्थन के लिए आया था. उसके पिता ही उसके कोच थे. ऐसे में मुझे बहुत निराशा हुई कि उसके पास इतना समर्थन है और मुझे अपने नेशनल फाइनल्स में खेलने की बात भी मेरे परिवार से छुपानी पड़ी."

बॉक्सिंग से टेंशन दूर

03:35

This browser does not support the video element.

रमाला के परिवार में उनकी मां अनीसा माये मालिम और इमाम पिता को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि उनकी बेटी मुक्केबाजी करे, क्योंकि इसमें उन्हें छोटे कपड़े पहनने पड़ते थे और यह बात रमाला को बहुत दुखी करती थी. बावजूद इसके उन्होंने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा. रमाला ने आज दुनियाभर में नाम कमाया है. उनका परिवार भी आज उनके साथ है और उन्हें सबसे बड़ी खुशी है कि उनकी मां इस बात से अब खुश हैं.

अब भी समुदाय में कुछ लोग उनका समर्थन नहीं करते हैं. इस पर रमाला ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है. कुछ लोग सोचते हैं कि महिलाओं का काम घर और बच्चे संभालना है. विश्व चैम्पियनशिप में प्रतिस्पर्धा का स्तर दर्शाता है कि महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं. हम लोग अन्य महिलाओं के लिए भी रास्ता बना रहे हैं, ताकि वह इस खेल में अच्छा प्रदर्शन कर सकें. मुझे लगता है कि जो लोग महिलाओं की मुक्केबाजी के खिलाफ हैं, उन्हें यह चैम्पियनशिप देखनी चाहिए. इससे उनकी सोच बदलेगी."

बकौल रमाला, "हम 1960 के दशक में नहीं रह रहे हैं. यह 21वीं सदी है. मेरी मां ने भी सोचा था कि मेरा मुक्केबाजी करना अच्छा नहीं लेकिन वह अब मेरा समर्थन करती हैं. अगर मेरी मां की सोच बदल सकती है, तो किसी की भी सोच बदल सकती है."

जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर रमाला ने पांच बार की विश्व चैम्पियन एमसी मैरी कॉम का नाम लिया. उन्होंने कहा, "मैरी कॉम और मेरे जीवन का संघर्ष एक जैसा ही रहा. उनके परिवार ने भी शुरुआत में उनका समर्थन नहीं किया था. उन्होंने इतनी बड़ी उपलब्धियां हासिल की और वह इस समय में महिला मुक्केबाजी का चेहरा हैं, तो ऐसे में वह सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. मुझे इससे उम्मीद मिली कि एक दिन मैं उनकी तरह बनूंगी और अन्य लोग मुझे देखते हुए प्रेरणा लेंगे."

मोनिका चौहान (आईएएनएस)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें