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मैर्केल को उलझाने वाले नतीजे

१६ सितम्बर २०१३

जर्मनी में संसदीय चुनावों से एक हफ्ते पहले बवेरिया के प्रांतीय चुनावों में सत्ताधारी सीएसयू पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल गया है. केंद्र में चांसलर अंगेला मैर्केल के गठबंधन की छोटी पार्टी एफडीपी को हार का मुंह देखना पड़ा.

जीत की खुशीतस्वीर: Reuters

चुनाव के नतीजे कोई अचंभा लेकर नहीं आए. चुनावी शाम के अंत में बिना किसी महत्वपूर्ण घटना के बवेरिया की जानी मानी परिस्थितियां वापस लौट आई. मुख्यमंत्री हॉर्स्ट जेहोफर की क्रिश्चियन सोशल यूनियन सीएसयू ने 2008 की ऐतिहासिक हार को सुधार लिया. उस साल उसे फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी एफडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनानी पड़ा थी. अब सीएसयू फिर से पूर्ण बहुमत में है. एसपीडी का मत थोड़ा बढ़ा है, लेकिन इतना नहीं कि अगले हफ्ते एसपीडी और उसके नेता पेयर श्टाइनब्रुक से किसी चमत्कार की उम्मीद की जा सके.

वोट देने वालों का डर नहीं

दूसरी नजर डालने पर बवेरिया के चुनाव में फिर भी उल्लेखनीय बातें दिखती हैं. वोट न डालने वाले मतदाताओं का डर फिलहाल रुक गया है. करीब 65 फीसदी मतदान पांच साल पुराने पिछले चुनाव के मुकाबले सात फीसदी ज्यादा है. इसका सबसे बड़ा लाभ सीएसयू ने उठाया है. यह भी बहुत आश्चर्यजनक है, क्योंकि सरकार में होने के बावजूद पार्टी मतदाताओं को लुभाने में कामयाब रही है. यह बहुत ही असामान्य है. आम तौर पर सरकारी पार्टियों के लिए अपने समर्थकों को चुनाव के दौरान लामबंद कर पाना कठिन होता है.

क्रिस्टियान ऊडे और श्टाइनब्रुकतस्वीर: picture-alliance/dpa

सीएसयू ने मुख्य रूप से चुनाव में अपने गठबंधन सहयोगी एफडीपी का खून चूस लिया. जिसने पांच साल पहले रणनीतिक कारणों से एफडीपी को वोट दिया था, उसने इस बार सीएसयू को और मजबूत किया है. बवेरिया के मतदाताओं ने एक बार फिर एक पार्टी की सरकार के पक्ष में वोट दिया है.

कुल मिलाकर बवेरिया के चुनाव में सभी छोटी पार्टियों को नुकसान हुआ है. सिर्फ सीएसयू और एसपीडी के मत बढ़े हैं. सीएसयू के ज्यादा, एसपीडी के कम. 22 सितंबर को होने वाले बुंडेसटाग चुनाव के लिए इस नतीजे से सबक लेना मुश्किल है. इसकी कई वजहें हैं. यूरो मुद्रा के आलोचकों की पार्टी "जर्मनी के लिए विकल्प" एएफडी ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन संसदीय चुनावों में वह हिस्सा ले रही है. खासकर चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी से वह वोट काट सकती है क्योंकि पार्टी के सभी मतदाता मैर्केल की यूरो नीति से खुश नहीं हैं.

एफडीपी की मुश्किलेंतस्वीर: picture-alliance/dpa

एफडीपी और सहानुभूति लहर

अंगेला मैर्केल के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि एफडीपी का प्रदर्शन कैसा रहता है. बवेरिया में उसे सिर्फ 3 प्रतिशत मत मिले और वह विधान सभा से बाहर हो गई. विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत से सीडीयू समर्थक एफडीपी को सहानुभूति में वोट देंगे. इस लिहाज से बवेरिया का मतदान चांसलर के लिए खतरे की घंटी है. औपचारिक रूप से सीडीयू एफडीपी को वोट ट्रांसफर नहीं करना चाहता, लेकिन अतीत के अनुभव कुछ और बताते हैं. पार्टी नेतृत्व जिसे नकारता है, पार्टी कार्यकर्ता सत्ता बनाए रखने के लिए वही करते हैं. सीडीयू को सत्ता में बने रहने के लिए एफडीपी की जरूरत है और इसके लिए उसे कम से कम पांच प्रतिशत वोट चाहिए.

एफडीपी के लिए सब कुछ दांव पर लगा है. यह बवेरिया चुनाव पर हुई प्रतिक्रिया भी दिखाती है. पार्टी प्रमुख फिलिप रोएसलर ने पहली प्रतिक्रिया में बवेरिया पर छोटी सी टिप्पणी के बाद कहा कि अब मामला जर्मनी का है. कार्यकर्ताओं के लिए संदेश है, चुनाव से पहले संघर्ष करो. एसपीडी के लिए मामला एफडीपी की तरह अस्तित्व का नहीं है. भले ही मतों में वृद्धि कम रही हो, लेकिन एसपीडी के लिए यह सफलता की निशानी है. सीधे चुनाव में अंगेला मैर्केल की बढ़त एसपीडी के चांसलर उम्मीदवार पेयर श्टाइनब्रुक से अभी भी काफी ज्यादा है, लेकिन श्टाइनब्रुक मैर्केल के करीब जा रहे हैं. अब वे और जोश के साथ चुनाव प्रचार में लग जाएंगे.

रिपोर्ट: फोल्कर वागेनर/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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