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"मैर्केल ने एक अच्छी शुरुआत की है"

२२ मार्च २०१८

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने नई सरकार बनने के बाद बुधवार को पहली बार जर्मन संसद बुंडेसटाग को संबोधित किया. मैर्केल ने माना कि देश बंटा हुआ है और शरणार्थी संकट की इसमें बड़ी भूमिका है.

Bundestag - Angela Merkel gibt Regierungserklärung ab
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Kumm

अंगेला मैर्केल ने बर्लिन में नई सरकार के लक्ष्यों को सामने रखा. उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं. वैसे भी जर्मन चांसलर एक कुशल वक्ता के रूप में नहीं जानी जाती, बल्कि वह अपनी शांत-व्यावहारिक शैली के लिए मशहूर हैं. इसलिए किसी ने भी एक जोशीले भाषण की उम्मीद नहीं की थी. लेकिन लगता है कि चांसलर के दफ्तर में भी किसी ना किसी तरह यह बात पहुंच ही गई है कि राजनीति में थोड़ा बहुत जोश भी जरूरी है. वक्त बदल रहा है और आम सहमति का महत्व कम हो रहा है.

इसलिए यह ठीक ही था कि मैर्केल ने खुद ही जर्मनी के हालात बयान कर दिए और वह भी अपने भाषण की शुरुआत में ही. ऐसा कम ही होता है कि मैर्केल इस तरह से आत्म विवेचन करें. उन्होंने कहा कि देश बंटा हुआ है, उसका ध्रुवीकरण हो गया है, उन्हें इससे डर भी लग रहा है और इसकी चिंता भी हो रही है. उन्होंने कहा कि शरणार्थी संकट के दौरान उन्होंने एक सामान्य सा वाक्य इस्तेमाल किया, "वियर शाफन दस" यानि "हम कर दिखाएंगे". एक ऐसा वाक्य जिसे वह अपनी निजी जिंदगी में भी काफी इस्तेमाल करती हैं. लेकिन देश इतना बंटा हुआ है कि यह वाक्य ही पूरे विवाद का केंद्र बन गया.

आलेक्सांडर के शॉल्त्स

और यह भी अच्छा था कि मैर्केल ने सबको याद दिलाया कि कैसे लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पड़ोसी देशों में सीरिया युद्ध के असर पर आंखें मूंदी हुई हैं, वह बड़े बड़े कैंपों में रह रहे शरणार्थियों और उनके हालात को देखना नहीं चाहता है. मैर्केल ने खुद को भी इससे अलग नहीं रखा. उन्होंने कहा कि जर्मनी ने यूरोपीय संघ में "अनुचित डब्लिन मॉडल" को चुना, वह भी इस उम्मीद में कि शरणार्थी असल में कभी जर्मनी तक पहुंच ही नहीं पाएंगे. यह ऐतिहासिक समीक्षा सही भी थी, क्योंकि तथ्य ही दिमाग को शांत करते हैं, सिर्फ जज्बातों से सब कुछ नहीं होता.

लेकिन कुछ बातें मैर्केल ने नहीं कही. जैसे कि 2015 में जर्मनी ने अपनी सीमाओं को बंद करने पर भी चर्चा की थी. उन्होंने नहीं बताया कि शरणार्थियों को स्वीकारने के अलावा एक यह विकल्प भी रखा गया था. शरणार्थियों पर हुई राजनीति ने यूरोप को बांट दिया है, यह बात तो एएफडी के अध्यक्ष आलेक्सांडर गाउलांड ने भी अपने जवाब में मैर्केल को याद दिलाई.

बहरहाल, मैर्केल ने जिस "पूरी सच्चाई" की बात की, उसमें अगर माफी के दो शब्द होते, तो भी अच्छा ही होता. उन लोगों से माफी जो पिछले दो सालों में शरणार्थियों द्वारा किए गए आतंकी हमलों का शिकार हुए हैं. पर कम से कम मैर्केल ने इस पर बात तो की.

उन्होंने पिछले दशकों में समेकन से जुड़ी गलतियों पर भी खुल कर बात की. उन्होंने माना कि इन गलतियों ने समानांतर समाज को जन्म दिया है, जहां शरणार्थी इलाकों में अपराध पनप रहा है. और शरणार्थी संकट ने इन गलतियों में आग में घी डालने जैसा काम किया है. गाउलांड ने मैर्केल पर आरोप लगाया था कि वे लोगों का ध्यान अपनी गलतियों से भटकाना चाहती हैं. लेकिन मैर्केल ने अपने भाषण में इस ऐतिहासिक गलती की बात की और यह एक अहम विश्लेषण का हिस्सा रहा.

मैर्केल के लहजे में एक और अनोखी चीज थी. वह बेहद आक्रामक होकर अपनी नीतियों का बचाव कर रही थीं. मिसाल के तौर पर, जब उन्होंने ब्रिटेन में पूर्व रूसी एजेंट को जहर देने की बात की और कहा कि बहुत से सबूत रूस की ओर इशारा करते हैं, तब एक गंभीर विराम था. और फिर उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "मुझे अच्छा लगता अगर मुझे रूस का नाम ना लेना पड़ता. लेकिन प्रमाणों को देख कर अनदेखा तो नहीं किया जा सकता."

कुल मिला कर यह एक अच्छी शुरुआत थी, क्योंकि बहुत कुछ दांव पर लगा है. राजनीतिक तौर पर उन्हें फिर से विश्वास जीतना है- सिर्फ पार्टियों का ही नहीं, पूरे सिस्टम का. इसलिए मैर्केल का आखिरी वाक्य, "हम सब जर्मनी हैं", सामंजस्य के लिए बिलकुल सही संकेत था. हालांकि वे इसे थोड़े और जोश के साथ कहतीं, तो बेहतर रहता. लेकिन अभी तो सरकार बनी ही है, उन्हें और भी कई मौके मिलेंगे.

आलेक्सांडर के शॉल्त्स/आईबी

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