ब्रसेल्स में चल रहे ईयू सम्मेलन में जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने शरणार्थी मुद्दे पर सभी यूरोपीय देशों से एकजुटता की अपील की है. उन्होंने कहा कि इस मामले में यूरोपीय देश अपनी मनमर्जी नहीं चला सकते.
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14 दिसंबर से ब्रसेल्स में शुरू हुए यूरोपीय संघ के सम्मेलन से उम्मीद की जा रही थी कि यूरोपीय देशों के नेता ब्रेक्जिट मुद्दे पर दूसरे दौर की वार्ता करेंगे. इसके अलावा शरणार्थी मुद्दों पर जोरदार बहस होगी. साथ ही रक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग के लिए नई तरीकों पर विचार किया जाएगा है. उम्मीद मुताबिक सम्मेलन में इन मुद्दों को भरपूर तवज्जो भी मिल रही है. यूरोपीय संघ के प्रमुख डोनल्ड टुस्क ने ब्रिटेन और संघ के अन्य 27 देशों से ब्रेक्जिट के बाद, भविष्य की नीतियों पर विचार करने की बात कही. टुस्क ने कहा, "जब तक हम साथ है, किसी भी चुनौती से निपट लेंगे." उन्होंने कहा, "हमारी एकता की असली परीक्षा, ब्रेक्जिट पर दूसरे चरण की वार्ता है."
अब तक ईयू तो ब्रेक्जिट के मसले पर एकजुट नजर आया है लेकिन ब्रिटेन का रुख असमंजस भरा रहा है. इसका कारण प्रधानमंत्री टेरीजा मे को आम चुनावों में बहुमत न मिलना नहीं है. दरअसल कारण बुधवार को संसद में टेरीजा में मिली हार से जुड़ा है. बुधवार को ब्रिटिश संसद में एक ऐसे संशोधन के पक्ष में मतदान किया गया जो संसद को ब्रेक्जिट पर अंतिम निर्णय का अधिकार देता है. लक्जमबर्ग के प्रधानमंत्री जेवियर बीटल ने कहा कि संसद में टेरीजा मे को मिली हार ने समझौते के प्रयासों की प्रक्रिया को और भी जटिल बना दिया है.
ईयू से अलग होकर क्या मिलेगा ब्रिटेन को
28 मार्च को ब्रिटेन ने 'अनुच्छेद 50' पर हस्ताक्षर के साथ औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. एक नजर उन बिंदुओं पर जो बेक्जिट की वजह माने जाते हैं.
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सरकारी धन पर बोझ
ब्रिटेन की समस्या यह है कि पूर्वी यूरोप के नए सदस्य देशों के नागरिकों के लिए खुली आवाजाही का सपना तो पूरा हुआ है लेकिन पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है.
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बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी
एक डर तो सस्ते विदेशी कामगारों के आने से देश में बेरोजगारी बढ़ने का और कामगारों के वेतन पर दबाव बढ़ने का है. इसकी वजह से ब्रिटेन में यूरोप विरोधी ताकतें मजबूत हुई हैं और परंपरागत पार्टियां कमजोर हुई हैं.
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वीटो का अधिकार
वित्तीय संकट के बाद एक ओर यूरोप को और एकताबद्ध करने की मांग हो रही है तो लंदन राष्ट्रीय संसदों की भूमिका बढ़ाना चाहता है. इससे राष्ट्रीय जन प्रतिनिधियों को ब्रसेल्स के मनमाने बर्ताव के खिलाफ लाल कार्ड दिखाने का अधिकार मिलेगा.
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सामाजिक भत्तों में कटौती
ब्रिटेन नहीं चाहता कि गरीब सदस्य देशों के सस्ते कामगार ब्रिटेन में सामाजिक भत्तों का लाभ उठाएं. ब्रिटेन चाहता है कि ईयू देशों से अचानक बहुत से लोगों के आने पर उसे रोक लगाने का हक होना चाहिए. आप्रवासियों को चार साल बाद भत्ता पाने का हक मिलेगा.
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संतान भत्ता
यूरोपीय संघ में वह सरकार संतान भत्ता देती है जहां मां बाप काम करते हैं, चाहे बच्चा कहीं और रह रहा हो. ब्रिटेन पोलैंड और रोमानिया के कामगारों को बच्चों के लिए भत्ता देता है. अब यह बहस हो रही है कि क्या भत्ते को संबंधित देश के जीवन स्तर के अनुरूप होना चाहिए.
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घनिष्ठ होता संघ
यूरोपीय संघ का लक्ष्य समय के साथ घनिष्ठ होना है. लंदन को यह पसंद नहीं है. ब्रिटेन को स्वीकार फॉर्मूला समापन घोषणा में है जिसमें कहा गया है कि ईयू का लक्ष्य खुले और लोकतांत्रिक समाज में रहने वाले साझा विरासत वाले लोगों के बीच भरोसा और समझ बढ़ाना है.
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दक्षिणपंथी ताकतों का असर
प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ईयू में बने रहने के लिए तमाम शर्तें रखी हैं. जाहिर है यूरोपीय संघ से रियायतें पाकर वे इसका पूरा राजनीतिक लाभ उठाएंगे और अति दक्षिणपंथी पार्टियों को कमजोर करना चाहेंगे.
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शरणार्थी मुद्दा
प्रवासी मुद्दे पर जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा, "जब बात प्रवासी मुद्दे से निपटने की आती है तो यूरोपीय देश सिलेक्टिव सॉलिडेरिटी नहीं दिखा सकते." उन्होंने कहा कि हमें न सिर्फ प्रवासन और नियमन पर एकता और बंधुत्व की आवश्यकता है बल्कि आंतरिक स्तर पर भी एकता की आवश्यकता है. मैर्केल ने कहा, "मेरी राय में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच इस तरह की सिलेक्टिव सोलिडेरिटी नहीं हो सकती और इस मुद्दे पर अपनी मर्जी नहीं चला सकती."
पोलैंड के नए प्रधानमंत्री मताअुश मोरास्यवकी ने सम्मेलन में कहा कि वे इस बात से खुश है कि शरणार्थियों को लेकर पोलैंड का जो विरोध था उसे अब यूरोपीय संघ के सभी देशों मान रहे हैं. उन्होंने कहा कि यूरोप को शरणार्थियों को अपनाना नहीं चाहिये बल्कि रिफ्यूजी केंद्रों में उनकी मदद करनी चाहिए.