कई सालों से खुद को "फेमिनिस्ट" कहलाए जाने से बचती चली आ रही जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल अब अपने कार्यकाल के अंत में इस विषय पर खुल रही हैं. उन्होंने पहली बार खुद को "फेमिनिस्ट" बताया है.
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मैर्केल ने यह बात आठ सितंबर को जर्मनी के डुसेलडॉर्फ में एक आयोजन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कही. उन्होंने कहा, "वास्तव में, यह पुरुषों और महिलाओं के बराबर होने की और समाज में और जीवन के हर पहलू में हिस्सेदारी की बात है. और इस संदर्भ में मैं कह सकती हूं, कि हां मैं फेमिनिस्ट हूं."
वो नाइजीरिया की लेखक चिमामांदा गोजी आदिची के साथ बातचीत के बाद पत्रकारों से बात कर रही थीं. आदिची को खुद एक फेमिनिस्ट आइकॉन के रूप में जाना जाता है. मैर्केल ने बताया कि पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी पर उनकी राय कई सालों में बनी थी.
पहली बार खुल कर बात
उन्होंने यह भी कहा,"मेरे लिए, "फेमिनिज्म" शब्द एक विशेष आंदोलन से जुड़ा हुआ है जिसने इन मुद्दों को समाज के एजेंडा पर लाने के लिए काफी लड़ाई लड़ी है." यह पहली बार है जब 67 वर्षीय मैर्केल ने एक ऐसे विषय पर खुल कर बात की है जिसे लेकर वो पूर्व में काफी सावधान रही हैं. जर्मनी में इसी महीने आम चुनाव होने हैं और उसके बाद 16 साल सत्ता में रह चुकी मैर्केल अपना पद छोड़ देंगी.
डुसेलडॉर्फ में उन्होंने पत्रकारों को बताया, "मैंने जब पहले इस बारे में बात की थी तब मैं थोड़ी संकोची थी, लेकिन अब मैं इसके बारे में काफी सोच चुकी हूं." उन्होंने आगे कहा, "हालांकि मैं यह भी कहूंगी कि हमारे देश में ऐसा कुछ तो है जो बदल चुका है. 20 साल पहले अगर मैं एक ऐसी चर्चा देखती जिसमें पैनल पर सिर्फ पुरुष होते तो मैं इस बात पर ध्यान भी नहीं दे पाती. मैं अब इसे बिलकुल भी मान्य नहीं समझती. "
इससे पहले 2017 में बर्लिन में आयोजित किए गए विमिन20 शिखर सम्मेलन में मैर्केल से सीधे पूछा गया था कि क्या वो फेमिनिस्ट हैं. उस समय मैर्केल ने इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया था जिसकी वजह से कई लोगों ने उनकी आलोचना की थी और निराशा व्यक्त की थी.
जीवन से सीख
लेकिन इस कार्यक्रम में मैर्केल ने पूर्व के अपने तजुर्बे भी साझा किए जब वो एक युवा महिला थीं और उन तजुर्बों के बारे में बताया जिन्होंने बढ़ती उम्र में उनके विचारों पर असर डाला. उन्होंने बताया, "इनमें मानसिक रूप से विकलांग लोगों के साथ बड़ा होना और बचपन में बिलकुल निडर होना शामिल है."
नाइजीरिया की लेखक चिमामांदा गोजी आदिची के साथ मैर्केलतस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture alliance
उन्होंने भौतिक विज्ञान की पढ़ाई करने को भी ऐसे ही तजुर्बे की श्रेणी में रखा. उन्होंने याद किया कि यह एक पुरुषों के आधिपत्य वाला क्षेत्र था और उनके अलावा उस समय इसमें बहुत कम महिलाएं थीं. मैर्केल ने बताया कि कई मौकों पर उन्हें प्रयोग करने के लिए एक टेबल हासिल करने के लिए भी लड़ना पड़ता था और इससे उन्होंने अपने स्थान के लिए लड़ना सीखा.
सीके/वीके (एएफपी, डीपीए)
इन महिलाओं ने दी नारीवाद आंदोलन को आवाज
फेमिनिस्ट शब्द का इस्तेमाल तो आपने बहुत बार किया होगा लेकिन क्या आप उन महिलाओं के बारे में जानते हैं जिन्होंने इस शब्द को इसके असली मायने दिए हैं. एक नजर नारीवादी आंदोलनों की मुखर आवाजों पर.
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ओलांपे द गोज(1748-1793)
फ्रांस में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली ओलांपे द गोज ने वर्ष 1791 में लिखा कि महिलाएं स्वतंत्र पैदा हुई हैं और उन्हें भी पुरुषों के साथ बराबरी के अधिकार मिलने चाहिए.
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सोजर्न ट्रूथ (1797-1883)
सोजर्न ने अमेरिका में दासप्रथा से पीड़ित लोगों के अधिकारों के लिए काम किया. सोजर्न ने महिला अधिकारों के लिए और महिला पीड़ितों की स्थिति में बेहतरी लाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की.
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लुईजे ऑटो-पेटर्स (1819-1895)
जर्मनी में महिला अधिकारों की संस्थापक मानी जाने वाली लुईजे का कहना था कि राज्य की गतिविधियों में महिलाओं का शामिल होना महज अधिकार नहीं बल्कि उनका कर्तव्य है.
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हेडविष डोम (1831-1919)
जर्मनी में नारीवादी आंदोलन की कट्टर समर्थक रही हेडविष का मानना था कि मानव अधिकार सभी के लिए समान हैं और इनमें लिंग के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता.
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एमिली डेविसन (1872-1913)
ब्रिटेन में महिला मताधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाली एमिली को आठ बार गिरफ्तार किया गया था. एमिली 1903 में गठित वूमन सोशल ऐंड पॉलिटिक्ल यूनियन की सदस्य थीं.
नारीवादी आंदोलन की उल्लेखनीय रचना मानी जाने वाली `द सेकंड सेक्स´ की लेखिका सिमोन भी महिलाओं के अधिकारों का पुरजोर समर्थन करती रहीं.
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बेट्टी फ्रीडन (1921-2006)
अमेरिका के नारीवादी आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने वाली बेट्टी ने अपनी रचनाओं में माताओं और गृहणियों के रूप में महिलाओं की सीमित होती भूमिका की आलोचना की है.
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जूडिथ बटलर (*1956)
अमेरिका की नारीवादी दार्शनिक कही जाने वाली जूडिथ बटलर को 1990 में आई उनकी किताब `जेंडर ट्रबल´ के लिए याद किया जाता है.
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मोजन हसन (*1979)
मोजन हसन और उनका संगठन नजरा 2007 के बाद से ही मिस्र में महिला अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. हसन को 2016 में राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड से नवाजा गया, जिसे अल्टरनेटिव नोबेल प्राइज भी कहा जाता है.
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लॉरी पैनी (*1986)
ब्रिटेन की लॉरी पैनी को अहम सामयिक नारिवादियों में से एक माना जाता है. उनकी रचनाएं “मीट मार्केट” और “अनस्पीकबल थिंग्स” सेक्स के नाम पर महिलाओं के दमन की आलोचना करता है.
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मार्गरेट स्टोकोव्स्की (*1986)
जर्मनी की लॉरी पैनी के नाम से मशहूर मार्गरेट ने अपनी पहली किताब `उनटेनरुम फ्राय´ में लिंग के आधार पर समाज द्वारा दी जाने भूमिका पर सवाल उठाए हैं. साथ ही इस बात पर जोर दिया है कि छोटी आजादी भी बड़ी स्वतंत्रता से जुड़ी होती है. रिपोर्ट लीना फ्रेडरिक