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"मैं फेमिनिस्ट हूं", पहली बार माना मैर्केल ने

९ सितम्बर २०२१

कई सालों से खुद को "फेमिनिस्ट" कहलाए जाने से बचती चली आ रही जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल अब अपने कार्यकाल के अंत में इस विषय पर खुल रही हैं. उन्होंने पहली बार खुद को "फेमिनिस्ट" बताया है.

तस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture alliance

मैर्केल ने यह बात आठ सितंबर को जर्मनी के डुसेलडॉर्फ में एक आयोजन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कही. उन्होंने कहा, "वास्तव में, यह पुरुषों और महिलाओं के बराबर होने की और समाज में और जीवन के हर पहलू में हिस्सेदारी की बात है. और इस संदर्भ में मैं कह सकती हूं, कि हां मैं फेमिनिस्ट हूं."

वो नाइजीरिया की लेखक चिमामांदा गोजी आदिची के साथ बातचीत के बाद पत्रकारों से बात कर रही थीं. आदिची को खुद एक फेमिनिस्ट आइकॉन के रूप में जाना जाता है. मैर्केल ने बताया कि पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी पर उनकी राय कई सालों में बनी थी.

पहली बार खुल कर बात

उन्होंने यह भी  कहा,"मेरे लिए, "फेमिनिज्म" शब्द एक विशेष आंदोलन से जुड़ा हुआ है जिसने इन मुद्दों को समाज के एजेंडा पर लाने के लिए काफी लड़ाई लड़ी है." यह पहली बार है जब 67 वर्षीय मैर्केल ने एक ऐसे विषय पर खुल कर बात की है जिसे लेकर वो पूर्व में काफी सावधान रही हैं. जर्मनी में इसी महीने आम चुनाव होने हैं और उसके बाद 16 साल सत्ता में रह चुकी मैर्केल अपना पद छोड़ देंगी.

डुसेलडॉर्फ में उन्होंने पत्रकारों को बताया, "मैंने जब पहले इस बारे में बात की थी तब मैं थोड़ी संकोची थी, लेकिन अब मैं इसके बारे में काफी सोच चुकी हूं." उन्होंने आगे कहा, "हालांकि मैं यह भी कहूंगी कि हमारे देश में ऐसा कुछ तो है जो बदल चुका है. 20 साल पहले अगर मैं एक ऐसी चर्चा देखती जिसमें पैनल पर सिर्फ पुरुष होते तो मैं इस बात पर ध्यान भी नहीं दे पाती. मैं अब इसे बिलकुल भी मान्य नहीं समझती. "

इससे पहले 2017 में बर्लिन में आयोजित किए गए विमिन20 शिखर सम्मेलन में मैर्केल से सीधे पूछा गया था कि क्या वो फेमिनिस्ट हैं. उस समय मैर्केल ने इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया था जिसकी वजह से कई लोगों ने उनकी आलोचना की थी और निराशा व्यक्त की थी.

जीवन से सीख

लेकिन इस कार्यक्रम में मैर्केल ने पूर्व के अपने तजुर्बे भी साझा किए जब वो एक युवा महिला थीं और उन तजुर्बों के बारे में बताया जिन्होंने बढ़ती उम्र में उनके विचारों पर असर डाला. उन्होंने बताया, "इनमें मानसिक रूप से विकलांग लोगों के साथ बड़ा होना और बचपन में बिलकुल निडर होना शामिल है."

नाइजीरिया की लेखक चिमामांदा गोजी आदिची के साथ मैर्केलतस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture alliance

उन्होंने भौतिक विज्ञान की पढ़ाई करने को भी ऐसे ही तजुर्बे की श्रेणी में रखा. उन्होंने याद किया कि यह एक पुरुषों के आधिपत्य वाला क्षेत्र था और उनके अलावा उस समय इसमें बहुत कम महिलाएं थीं. मैर्केल ने बताया कि कई मौकों पर उन्हें प्रयोग करने के लिए एक टेबल हासिल करने के लिए भी लड़ना पड़ता था और इससे उन्होंने अपने स्थान के लिए लड़ना सीखा.

सीके/वीके (एएफपी, डीपीए)

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