मैर्केल ने पूछा क्यों हैं महिलाएं पीछे
१४ मई २०१३जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने साफ शब्दों में महिलाओं से पूछ लिया कि उनके अनुभव क्या हैं. अपने करियर में आगे बढ़ते समय उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा. चांसलर के कार्यालय में हुई यह बहस बहुत कड़ी और जिंदादिल थी. इसमें शामिल होने वाली महिलाओं में व्यवसायी, मेयर, वैज्ञानिक महिलाएं थीं जिन्होंने बिलकुल गोल गोल बात करने की कोशिश नहीं की, बल्कि एकदम करारे और साफ शब्दों में अपनी मुश्किल रखी. अपने क्षेत्र में टॉप पर बैठी महिलाएं या इसकी इच्छा रखने वाली 100 महिलाओं ने चांसलर से गुफ्तगूं की. चांलसर तो जर्मनी के सर्वोच्च पद पर बैठी हैं लेकिन जर्मनी की 30 मुख्य कंपनियों में से एक में भी महिला नेतृत्व पद पर नहीं है. लेकिन इसके बारे में बात बहुत की जा रही है.
दफ्तर के अनुभव
महिलाओं ने जिन अनुभवों के बारे में बात की उनमें से कुछ इतने अजीब थे कि हॉल में हंसी बिखर गई. इनेस कोल्मसे जर्मनी की एसकेडबल्यू स्टील मेटल की सीईओ को शादी के बाद बवेरिया के कर कार्यालय ने टैक्स कार्ड देने से ही मना कर दिया. उनकी दलील थी कि शादी के बाद उन्हें काम करने की कोई जरूरत नहीं है. एक मां के तौर पर उन्हें ऑफिस से सर्टिफिकेट लेने को कहा गया कि वह बॉस से काम करने की अनुमति का सर्टिफिकेट ले कर आएं. अधिकारी तब और बौखला गए जब कोल्मसे ने उन्हें कहा कि वही कंपनी की बॉस हैं.
वहीं बर्लिन की पब्लिक ट्रांसपोर्ट कंपनी की सीईओ सिग्रीड निकुता का कहना है कि समाज में महिलाओं के पारंपरिक रोल का चित्र अभी बदला नहीं है. उन्होंने बताया, "मेरे साथी जान बूझ कर सुबह आठ बजे मीटिंग रखते थे, यह देखने के लिए कि मैं कैसे चार बच्चों के साथ चीजें मैनेज करती हूं. कई बार मुझे बच्चों की देखरेख करने वाला कोई नहीं मिलता था. स्कूल लंच टाइम में ही बंद हो जाते थे तो मुझे अपने साझेदार पर या नैनी पर भरोसा करना पड़ता था." कोल्मसे का कहना है कि स्वीडन में पांच बजे तक सभी ऑफिस खाली हो जाते हैं. कई पिता अपने बच्चों को किंडरगार्टन या स्कूल से लेकर आते हैं. जर्मनी में हालांकि आप तभी प्रतिबद्ध कर्मचारी होते हैं जब आप देर तक ऑफिस में रहें. मांए जो सीईओ हैं उनके लिए यह बहुत मुश्किल है. कोल्मसे को विश्वास है कि सुबह आठ बजे की मीटिंग तभी हो सकती है जब पुरुष और महिला घरेलू कर्तव्य पूरा करें. लेकिन पुरुषों को अक्सर बच्चों की देखभाल करने के लिए ऑफिस छोड़ने पर कोफ्त होती है.
ऐसी जर्मन कंपनियों की भी कमी नहीं जो पुरुष प्रशिक्षुओं के लिए हमेशा जगह रखती हैं, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. उन्हें कहा जाता है कि आप निश्चित ही परिवार शुरू करने वाली होंगी. जर्मनी की पहली चांसलर के साथ भी भेदभाव नहीं हुआ हो ऐसा नहीं है. वह इस बात को स्वीकार भी करती हैं. हाल ही में उनसे पूछा गया कि क्या बच्चों के साथ कोई महिला चांसलर हो सकती है. उन्होंने हंसी में कहा कि यह मुश्किल से ही संभव होगा और मजाक करते हुए कहा, "हेलमूट कोल के भी तो बच्चे हैं."
देश को और करना होगा
इन महिलाओं ने कहा कि लोगों के विचार बदलने में समय लगता है लेकिन नीति बनाने वालों को थोड़ा तेज काम करने की जरूरत है. दूसरे यूरोपीय देशों, फ्रांस में देश बच्चों के लिए ज्यादा करता है. लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं है. यहां तो बच्चों के लिए किंडरगार्टन में कम जगह हैं. कई साल से संघीय सरकार मदद का वादा कर रही है लेकिन विकास बहुत धीमा है. बॉस महिलाओं की मांग थी कि निजी चाइल्ड केयर के लिए टैक्स में फायदा मिले. लेकिन सरकार की योजना थोड़ी अलग है. सरकार कहती है कि जो माएं अपने बच्चों को घर पर पढ़ाएंगी उन्हें केयर भत्ता मिलेगा. वहां मौजूद महिलाओं ने इस योजना को सिरे से नकार दिया.
मारियोन कीषले कहती हैं कि आक्रामक माहौल के कारण युवा महिलाएं करियर बनाने से बचती हैं. "उनका कहना है कि इन हालात में मैं परिवार नहीं शुरू कर सकती." कीषले म्यूनिख में क्लिनिक की निदेशक हैं. उनका कहना है कि जर्मनी में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में बहुत कम वेतन दिया जाता है. भले ही वह काम उसी पोजिशन पर कर रही हों इसमें अस्पताल के हेड डॉक्टर भी शामिल हैं. इतना ही नहीं जर्मनी में पार्ट टाइम सीईओ का पद नहीं के बराबर हैं.
जर्मनी की 200 बड़ी कंपनियों के बोर्ड में महिलाएं सिर्फ चार फीसदी हैं. चांसलर चाहती हैं कि उनके लिए न्यूनतम कोटा कानूनन तय कर दिया जाए. लेकिन सितंबर में संसदीय चुनावों के बाद. योजना है कि 2020 तक बोर्ड सदस्यों में 30 फीसदी महिलाएं होंगी. मैर्केल के मुताबिक, "जब महिलाएं जनसंख्या का आधा हिस्सा हैं तो 30 फीसदी कोटा गलत नहीं है."
हालांकि महिलाओं के साथ मैर्केल की मीटिंग में महिला कोटा के लाभ पर विचार बंटे हुए थे. इससे गुणवत्ता तो बढ़ेगी लेकिन यह कोई हल नहीं है. अनुभवी सीईओ महिलाओं ने बातचीत में मौजूद जूनियर स्टाफ को कहा कि उन्हें मार्गदर्शक ढूंढना चाहिए और चुपचाप पीछे नहीं हटना चाहिए. जो प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन उनके पास है उससे उनके लिए सबसे ऊंचे पद का दरवाजा खुल सकता है.
रिपोर्टः नीना वैर्कहॉइजर/एएम
संपादनः ईशा भाटिया