भारत के बेजवाड़ा विल्सन को मैला ढोने की परंपरा को मिटाने की दिशा में उनके उल्लेखनीय काम के लिए रमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला. चेन्नई के कर्नाटिक गायक टीएम कृष्णा को भी 2016 में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है.
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इन दो भारतीय विजेताओं के अलावा 2016 के रमन मैग्सेसे पुरस्कार के चार अन्य विजेता भी हैं. फिलिपींस के कॉन्चिता कार्पियो-मारालेस, इंडोनेशिया के डोम्पेट धुआफा, जापान ओवरसीज कोऑपरेशन वॉलंटियर्स और 'लाओस के वीनटियाने रेस्क्यू को भी सम्मानित पुरस्कार से नवाजा गया है.
दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में जन्मे विल्सन सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक हैं और उन्हें "गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार" दिलाने के लिए संघर्ष करने के लिए यह सम्मान दिया गया है.
50 वर्षीय विल्सन के लिए लिखा गया उद्धरण कहता है, "मैला ढोना भारत में मानवता के नाम पर कलंक है. समाज में दलितों की संरचनात्मक असमानता से जुड़ा है. भारत के 'अछूत' मैला ढोने के इस काम में सूखे शौचालयों से मानव मल को इकट्ठा करने का काम अपने हाथों से करते हैं और फिर उसे अपने सिर पर टोकरी में रख उसके निबटारे की जगह तक ले जाते हैं."
पुरस्कार से सम्मानित किए जा रहे विल्सन का जन्म खुद भी एक ऐसे दलित परिवार में हुआ था, जो कर्नाटक की मशहूर कोलार सोने की खान वाले इलाके की टाउनशिप में मैला ढोने का काम करता था. उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विलसन अपने परिवार के पहले सदस्य थे.
स्कूल में विल्सन के साथ एक अछूत जैसा बर्ताव होता था. इससे बहुत नाराज और आहत होने वाले विलसन ने अपना गुस्सा मैला ढोने की परंपरा के जड़ से उन्मूलन के अभियान में लगा दिया. करीब 32 सालों से जारी उनके अभियान में सारा जोर मानव गरिमा के जन्मसिद्ध अधिकार को सबसे ऊपर रखने पर है.
स्वच्छ भारत के लिए अभियान
कूड़ेदान बनते भारत के शहरों को साफ करने में नगर निगम या स्थानीय प्रशासन जितना जिम्मेदार है उतना ही कर्तव्य शहर में रहने वाले हर नागरिक का भी है. तभी स्वच्छ भारत का सपना पूरा हो सकता है.
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मन से सफाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से शुरू किया गया स्वच्छ भारत जमीनी स्तर पर काम करता नजर आ रहा है. फिल्मी कलाकार, बड़े कारोबारी ही नहीं आम लोग भी स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने में लग गए हैं. कुछ कैमरों की चमक के बीच स्वच्छ भारत से जुड़कर सफाई अभियान में शामिल हो रहे हैं तो कुछ चुपचाप ही इसमें अपना योगदान दे रहे हैं.
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सफाई की लगन
प्रधानमंत्री ने अभियान की शुरुआत करते हुए नौ लोगों को इस काम के लिए नामित किया था और इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने इन नौ में से प्रत्येक से नौ-नौ अन्य लोगों को नामित करने को कहा था. नामित लोगों ने अपना काम बखूबी किया और आगे नौ और लोगों को नामित किया. उद्योगपति अनिल अंबानी ने पिछले दिनों मुंबई में सफाई अभियान चलाया. अब उनकी कंपनी के बोर्ड सदस्य भी इस अभियान में शामिल हो गए हैं.
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छोटे शहरों का बुरा हाल
गंदगी सिर्फ बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं है छोटे शहरों में भी उतनी ही गंदगी मिल जाएगी. सफाई को रोजमर्रा का हिस्सा बनाने से ही देश चमक पाएगा. टीवी कलाकर मोनिका भदौरिया ने भी अलीगढ़ में सफाई अभियान में शामिल होकर शहर को साफ करने की प्रतिबद्धता दिखाई.
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नदी भी हो साफ
हरिद्वार में हर की पौड़ी की सफाई में लगीं महिला स्वयंसेवक. शहरों में गंदगी के अलावा गंदी नदियों का मामला भी उठता रहता है. वक्त बेवक्त सरकार को कोर्ट की तरफ से नदियों की सफाई को लेकर फटकार पड़ती रहती हैं.
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सबका सहयोग
नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत करते हुए कहा कि सफाई के लिए सिर्फ सफाई कर्मचारी जिम्मेदार नहीं हैं. इसके लिए देश की सोच बदलनी होगी. मोदी ने कहा, "साफ इंडिया का लक्ष्य हम पा सकते हैं. अगर हम मंगल तक पहुंच सकते हैं तो क्या हम अपना पड़ोस साफ नहीं रख सकते."
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प्लास्टिक की समस्या
भारत की सड़कों पर प्लास्टिक का पड़ा होना और प्लास्टिक में फेंका गया कचरा बहुत बड़ी समस्या है. एक तो इस प्लास्टिक के नालों, नदियों में जाने की आशंका होती है, वहीं खुले आम घूम रहे पशुओं के पेट में इस प्लास्टिक का जाना जानलेवा बन जाता है.
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सामाजिक समस्या
खुले में शौच जाना स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है. महिलाओं के लिए यह मुद्दा बीमारियों से तो जुड़ा है ही, साथ ही यह असुरक्षित भी है. 2020 तक भारत सरकार खुले में शौच से निजात पा लेना चाहती है.
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कचरा प्रबंधन
अक्सर सभी तरह का कचरा एक साथ फेंक दिया जाता है. बारिश धूप में वह खुले में पड़ा सड़ता रहता है और मच्छर मक्खियों को आमंत्रण देता है. अगर जैविक कचरा एक साथ डाला जाए और प्लास्टिक, इलेक्ट्रिक और अन्य तरह का कचरा अलग करें तो हर कचरे का दोबारा इस्तेमाल हो सकता है.
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साफ जोधपुर
15 अगस्त 2014 को अभिनेता आमिर खान ने जोधपुर में स्वच्छ जोधपुर स्वस्थ जोधपुर का अभियान शुरू किया था. और इसके लिए आमिर खान ने खुद 11 लाख रुपये भी दिए. साल भर बाद आमिर एक बार फिर इसी दिन जाकर जोधपुर का जायजा लेंगे.
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एक तिहाई के पास नहीं
दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या शौचालयों के अभावों में जी रही है. यूरोपीय संघ के भी दो करोड़ लोगों के पास अच्छे शौचालयों का अभाव है. कई पूर्वी यूरोपीय देशों में अभी भी पुराने तरह के शौचालय हैं जो जमीनी पानी को प्रदूषित करते हैं.
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जैविक टॉयलेट
सुलभ शौचालयों ने भारत में एक नई क्रांति लाई थी. ऐसी ही एक और कोशिश की जा रही है जैविक टॉयलेटों के जरिए. ये बायो डाइजेस्टर टॉयलेट ऐसी जगहों पर भी लगाए जा सकते हैं जहां मल निकासी की सुविधा नहीं है.
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जागरूकता जरूरी
स्वच्छ भारत के इस अभियान में जितनी भूमिका सामाजिक गतिविधि की है उतनी ही आवश्यकता इसके बारे में जागरूकता फैलाने की है. हर व्यक्ति का हाथ जब इस अभियान में जुड़ेगा तभी भारत साफ हो सकेगा.
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मैला ढोना एक वंशानुगत पेशा है. इस काम में करीब 180,000 दलित परिवार लगे हैं, जो भारत के 790,000 सार्वजनिक और निजी सूखे शौचालय साफ करते हैं. इनमें से 98 फीसदी लोग ऐसी महिलाएं और लड़कियां हैं जिन्हें बहुत कम मेहनताना दिया जाता है. संविधान और कई कानूनों के अंतर्गत सूखे शौचालयों पर रोक है और मैनुअल स्कैवेंजिंग की नौकरी पर रखे जाने पर भी. लेकिन चूंकि सरकार खुद इसका सबसे ज्यादा उल्लंघन करती है, ये खत्म नहीं हुआ है.
सन 1957 से ही रमन मैग्सेसे पुरस्कार दिए जा रहे हैं. इसे एशिया का सर्वोच्च पुरस्कार या एशियाई नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता है. यह सम्मान फिलिपींस के तीसरे राष्ट्रपति रमन मैग्सेसे के नेतृत्व वाली भूमिका की स्मृति में दिया जाता है. हर साल एशिया के कुछ व्यक्ति या संगठन चुने जाते हैं जिन्होंने समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के लिए निस्वार्थ सेवा की हो.
सफाई करने वाले प्राकृतिक कर्मचारी
न्यू यॉर्क की सड़कों पर गिरने वाला ढेर सारा खाना कचरा बन जाता है. और इसे साफ कौन करता है? बहुत हद तक इसकी सफाई कीड़े करते हैं. वैज्ञानिक कहते हैं चीटियों और अन्य रेंगने वाले कीड़ों के बिना शहर में बहुत चूहों हो जाएंगे.
मैनहैटन की सड़कों पर चूहों को आने से रोकने में फुटपाथ की चीटियां अहम योगदान देती हैं. न्यू यॉर्क में जहां कहीं भी लोग अपना कचरा छोड़ या फिर गिरा देते हैं ये कीड़े उन्हें साफ कर देते हैं. इस वजह से बड़े हानिकारक जीवों के लिए वहां कुछ नहीं बचता है. इस प्रक्रिया की हाल ही में एक वैज्ञानिक अध्ययन में जांच की गई.
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उत्कृष्ट सेवा
चीटियां शहरों को साफ रखती हैं. उत्तरी कैरोलाइना राज्य विश्वविद्यालय की एक वैज्ञानिक कहती हैं, "यह एक सच्ची सेवा है, वे प्रभावी ढंग से कचरा इकट्ठा करती हैं." वे कहती हैं उन्होंने इस चलन की जांच मैनहैटन के पार्कों और सड़कों पर खाद्य अपशिष्ट छोड़कर की, यह देखने के लिए कि कौन सबसे तेजी से उसे खा जाता है.
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सफाई के लिए पूरी टीम
लेकिन सिर्फ चीटियां ही सफाई नहीं करती. इस प्रक्रिया में सभी प्रकार के अन्य रेंगने वाले कीड़े हैं, इनमें मकड़ी और तिलचट्टे भी साथ देते हैं.
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खाकर सफाई
अमेरिकी वैज्ञानिकों के मुताबिक मैनहैटन की प्रसिद्ध सड़कें ब्रॉडवे और वेस्ट स्ट्रीट पर इन कीड़ों की चहलकदमी आसानी से देखी जा सकती है. शोध के मुताबिक वहां कीड़े सालाना एक हजार किलोग्राम फेंका हुआ खाना खा जाते हैं. यह मात्रा करीब 60 हजार हॉट डॉग के बराबर बनती है.
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पार्क दूसरा पसंदीदा स्थान
भोजन जहां होगा वहां कीड़े भी जाएंगे. चीटियां हरे भरे इलाके जैसे सेंट्रल पार्क को छोड़कर सड़कों पर अपना ठिकाना बना लेती हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि मकड़ी और तिलचट्टे की तुलना में चीटियां दो से तीन गुना खाद्य कचरा अकेले साफ करती हैं.
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चूहों के बजाय चीटियां
रीढ़ की हड्डी वाले जानवरों और इन कीड़ों के बीच खाद्य रसद के लिए मुकाबला होता है. और चूहे इस मुकाबले में हार जाते हैं. न्यू यॉर्क वासियों के लिए यह अच्छी खबर है, क्योंकि चूहे इंसानों तक बीमारी फैलाने का काम करते हैं. इसलिए अमेरिकी वैज्ञानिकों ने न्यू यॉर्क शहर को "चीटियों के लिए फ्रेंड्ली शहर" बनाने का सुझाव दिया है.
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सबका अपना हिस्सा
कबूतर, कौवा या फिर गिलहरी सभी अपना हिस्सा चाहते हैं. ज्यादातर फेंका गया खाना बड़े जानवरों के पेट में चला जाता है. उदाहरण के लिए कबूतरों के पास बेहतर आक्रमण वाले विकल्प होते हैं. लेकिन कीड़े भी किसी मामले में कम नहीं. शोध से पता चलता है कि कीड़े कुकीज और चिप्स पसंद करते हैं.
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शानदार भविष्य
अभी भी लगता है कि न्यू यॉर्क निवासी इतनी मात्रा में खाना फेंक देते हैं जो लाखों चीटी, चूहें और कबूतर को खुश करने के लिए काफी है. नगर निगम द्वारा रोजाना 11 हजार टन कचरा उठाया जाता है. और इसमें वो कचरा शामिल नहीं जो कूड़ेदान में नहीं जाता है.