20 अक्टूबर को मॉस्को में तालिबान को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में भारत ने भी हिस्सा लेने की स्वीकृति दे दी है. बैठक में तालिबान भी हिस्सा लेगा और अफगानिस्तान के संकटों का समाधान निकालने पर बातचीत होने की संभावना है.
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रूस की मेजबानी में आयोजित की जाने वाले "मॉस्को फॉर्मेट" बातचीत के इस दौर में 11 देश हिस्सा लेंगे. रूस ने भारत को भी इसमें हिस्सा लेने के लिए निमंत्रण भेजा था जिसे भारत ने स्वीकार कर लिया है.
रूस ने कहा है कि इस बैठक में अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल को समझाने की कोशिश करेगा कि उसे अफगानिस्तान में एक और ज्यादा समावेशी सरकार का गठन करना चाहिए.
भारत और तालिबान
मॉस्को फॉर्मेट की शुरुआत 2017 में हुई थी और तब उसमें सिर्फ छह देश शामिल थे - रूस, अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन और पाकिस्तान. 2018 में रूस ने इस फॉर्मेट की बातचीत में तालिबान को भी आमंत्रित किया था और तब भी उस वार्ता में भारत ने "अनौपचारिक स्तर" पर भाग लिया था.
भारत ने अभी तक तालिबान के साथ किसी भी तरह के सहयोग का कोई संकेत नहीं दिया है. भारत ने अफगानिस्तान में स्थित अपने दूतावास और वाणिज्य दूतावासों को भी खाली कर दिया था और कर्मचारियों को वापस भारत ले आया गया था.
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सरकार बनाने से पहले 31 अगस्त को कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने राजधानी दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों से मिल कर बातचीत की थी. लेकिन उसके बाद जब तालिबान की सरकार बनी तो भारत ने उसे लेकर भारत ने अपनी अस्वीकृति जाहिर की थी.
आतंकवाद का खतरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि तालिबान ने जिस सरकार का गठन किया है वो समावेशी नहीं है. मॉस्को की बैठक में भारत और तालिबान के बीच तालिबान सरकार के गठन के बाद पहली मुलाकात होगी.
इसी सप्ताह अफगानिस्तान पर जी-20 देशों की भी एक असाधारण बैठक हुई थी जिसमें मोदी ने कहा था कि अफगानिस्तान को एक "समावेशी सरकार" और "बिना किसी रुकावट के मिलने वाले लोकोपकारी सहयोग" की जरूरत है.
उन्होंने यह भी कहा था कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि "अफगानिस्तान की जमीन कट्टरपंथ और आतंकवाद का स्त्रोत ना बन जाए." रूस अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर एक काफी सक्रिय भूमिका निभा रहा है.
उसने अभी तक तालिबान की सरकार को मान्यता तो नहीं दी है लेकिन अफगानिस्तान में अपने दूतावास को खुला रखा है. उसने अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान पर विमर्श की एक अलग व्यवस्था भी बनाई हुई है और उसमें भारत को शामिल नहीं किया है.
तालिबान राज में कुछ ऐसी है आम जिंदगी
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की स्थापना के बाद लोगों को कट्टरपंथी मिलिशिया के तहत जीवन में वापस लौटना पड़ा है. लोगों के लिए बहुत कुछ बदल गया है, खासकर महिलाओं के लिए.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बुर्के में जिंदगी
अभी तक महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कई महिलाएं कार्रवाई के डर से ऐसा करती हैं. इस तस्वीर में दो महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में पुराने कपड़े खरीद रही हैं. देश छोड़कर भागे हजारों लोग अपने पुराने कपड़े पीछे छोड़ गए हैं, जो अब ऐसे बाजारों में बिक रहे हैं.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
गलियों और बाजारों में तालिबानी लड़ाके
पुराने शहर के बाजारों में चहल-पहल है, लेकिन सड़कों पर तालिबान लड़ाकों का भी दबदबा है. वे गलियों में सब कुछ नियंत्रित करते हैं और उनके विचारों या नियमों के खिलाफ कुछ होने पर तुरंत दखल देते हैं.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
दाढ़ी बनाने पर रोक
तालिबान ने नाइयों को दाढ़ी काटने और शेव करने से मना किया है. यह आदेश अभी हाल ही में हेलमंद प्रांत में लागू किया गया है. यह अभी साफ नहीं है कि इसे देश भर में लागू किया जाएगा या नहीं. 1996 से 2001 तक पिछले तालिबान शासन के दौरान पुरुषों की दाढ़ी काटने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.
तस्वीर: APTN
महिलाओं के चेहरे मिटाए जा रहे
ब्यूटी पार्लर के बाहर तस्वीरें हों या विज्ञापन तालिबान महिलाओं की ऐसी तस्वीरों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता है. ऐसी तस्वीरें हटा दी गईं या फिर उन्हें छुपा दिया गया.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
लड़कियों को अपनी शिक्षा का डर
तालिबान ने लड़कियों को प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने की इजाजत दी है, लेकिन लड़कियों ने अभी तक माध्यमिक विद्यालयों में जाना शुरू नहीं किया है. यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग बैठने को कहा गया है.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
क्रिकेट का खेल
क्रिकेट खेलने के लिए काबुल के चमन-ए-होजरी पार्क में युवकों का एक समूह इकट्ठा हुआ है. जबकि महिलाओं को अब कोई खेल खेलने की इजाजत नहीं है. क्रिकेट अफगानिस्तान में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बढ़ती बेरोजगारी
अफगानिस्तान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विदेशी सहायता रुकने से वित्त संकट खड़ा हो गया है. इस तस्वीर में ये दिहाड़ी मजदूर बेकार बैठे हैं.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
नमाज भी जरूरी
जुमे की नमाज के लिए लोग इकट्ठा हुए हैं. मुसलमानों के लिए शुक्रवार का दिन अहम होता है और जुमे की नमाज का भी खास महत्व होता है. इस तस्वीर में एक लड़की भी दिख रही है जो जूते पॉलिश कर रोजी-रोटी कमाती है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
आम नागरिक परेशान, तालिबान खुश
अफगान नागरिक एक अजीब संघर्ष में जिंदगी बिता रहे हैं, लेकिन तालिबान अक्सर इसका आनंद लेते दिखते हैं. इस तस्वीर में तालिबान के लड़ाके स्पीडबोट की सवारी का मजा ले रहे हैं.