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मोक्ष के लिए भीख मांगने को मजबूर

११ अगस्त २०१२

यूपी सरकार के पास वृंदावन की विधवाओं के सम्मानजनक दाह संस्कार के लिए पैसा नहीं है. मौत के बाद इनके शव को बोरे में भर कर नदी में बहा दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर थोड़ी सरगर्मी बढ़ी है लेकिन बदलाव अभी नहीं दिखा.

तस्वीर: Suhail Waheed

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद मथुरा जिला प्रशासन थोडा हरकत में आया है. वृन्दावन के भजनाश्रम की चहल पहल बढ़ी है लेकिन पंडों और पुजारियों की भवें और तन गई हैं. आश्रमों में सीएमओ और पुलिस की आमदरफ्त उन्हें सहन नहीं हो रही है. नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी नाम के एक गैरसरकारी संगठन ने इन विधवाओं की दयनीय स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इस संस्था ने वृंदावन की विधवाओं का सर्वे किया. इसके मुताबिक 1739 विधवाओं की स्थिति बेहद दयनीय है. इनमें से करीब 200 तो वास्तव में सड़कों पर रह रही हैं. इसी सर्वे को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी के जैन और जस्टिस मदान बी लोकुर की बेंच ने यूपी सरकार और मथुरा के जिला प्रशासन की कड़ी फटकार लगाते हुए इन विधवाओं को खाना, चिकित्सा सेवा, रहने के स्थान और उनके अंतिम संस्कार का इंतजाम करने का आदेश दिया है.

इस संगठन के मुताबिक वृंदावन में चल रहे चार सरकारी विधवा आश्रम की हालत बेहद खस्ता है. न वहां खाना है न रहने की जगह. वहां के प्रबंधक इन विधवाओं से भीख मंगवाते हैं. सूत्र बताते हैं कि यहां का खाना इतना घटिया होता है कि बेसहारा विधवाएं भी इसे खा नहीं सकतीं. इससे अच्छा खाना तो उन्हें भीख में मिल जाता है. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो विधवाओं की हालत को इतना खराब नहीं मानते. वृंदावन में केबल व्यावसायी नितिन गौतम ने कहा, " जिस घटना की दुहाई देकर एक एनजीओ ने रिट दाखिल की वह काफी समय पहले की है. एक विधवा की लाश लावारिस हालत में मिली थी सबकी मर्जी से उसे बोरे में भरकर यमुना में प्रवाहित कर दिया गया. उस एक घटना को ही यहाँ की सच्चाई मान लिया गया."

तस्वीर: Suhail Waheed

उधर वृंदावन के भजनाश्रम के प्रबंधक अरुण गोयल अपना नाम तक बताने से कतरा रहे हैं. कहते हैं नाम तो भगवान् का है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में पूछने पर भड़क जाते हैं. फिर कहते हैं आप पहले सीजेएम की कोर्ट से आदेश लाइए तब बात होगी. एक दूसरे प्रबंधक आसमान की तरफ हाथ उठाकर ' हरि की लीला ' कहते है और चल देते हैं. वृन्दावन में सड़क के किनारे वृद्ध महिलाएं भीख मांगती नज़र आ जाती हैं. इनमें से कुछ भिखारी रात में उठकर मंदिरों या आश्रमों में चले जाते हैं और कुछ वहीं सड़क किनारे अगले दिन के इंतज़ार में सो जाती है. इन्हीं में से जब कोई मर जाता है तो उसके अंतिम संस्कार के लिए उसकी लाश पर चंदा मांगा जाता है.

बंगाली विधवाओं का राज

करीब पांच हजार से अधिक विधवाओं के पालनहार वृन्दावन में शायद ही कोई विधवा गैर बंगाली मिले. शत प्रतिशत बंगाली विधवाओं के आगमन से वृन्दावन के लोग आहत हैं. अधिकतर लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में यहाँ की गलत तस्वीर पेश की गई है. सारा खेल विधवाओं के नाम पर धन उगाही का है. एनजीओ विदेशों से भी विधवाओं के नाम पर पैसा कमाना चाहते हैं इसीलिए यहां की तस्वीर बेहद खराब ढंग से पेश की गई. केबल व्यवसाई नितिन गौतम के मुताबिक उससे बड़ी समस्या बंगाल की गरीब महिलाओं की है, कोई नहीं जानता जो महिलाएं यहाँ विधवा बनकर आती हैं वे विधवा होती भी हैं या नहीं. वे यहाँ 6 महीने रूकती हैं और दान-दक्षिणा वसूल कर वापस अपने घर ले जाती हैं, उसके बाद फिर आ जाती हैं. ये सिलसिला चल निकला है.

तस्वीर: DW

काशी में मोक्ष की चाह ज्यादा

काशी यानी वाराणसी को मोक्ष हासिल करने का सबसे उत्तम स्थान माना जाता है. बड़ी संख्या में बूढ़े लोग यहां आकर काशी में मौत की कामना से दिन गुजारते हैं. वाराणसी में बहुत से वृद्धाश्रम बने हुए हैं. इन आश्रमों में करीब 50-55 विधवाएं रह रही हैं. इनमें से एक नेपाल की महिलाओं के लिए है जिसे वहां का विख्यात पशुपति नाथ मंदिर ट्रस्ट चलाता है. इस आश्रम की स्थिति बाकी आश्रमों से बेहतर है. सबसे बुरा हाल दुर्गा कुंड स्थित सरकारी महिला आश्रम का है. स्थानीय व्यापारी अभय त्रिपाठी दुर्गा कुंड के सरकारी आश्रम में रह रही एक ऐसी विधवा के बारे में बताते हैं जिनका एक बेटा मुंबई में डॉक्टर है. एक दो और भी हैं जिनके बच्चे विदेश में बस गए हैं.

काशी में ही अन्नपूर्णा मंदिर ट्रस्ट का भी एक महिला वृद्धाश्रम है जिसमें अच्छी व्यवस्था है. यहां की विधवाओं को अपने कपडे तक स्वयं धोने नहीं पड़ते. टीवी भी लगा है और खाना भी अच्छा मिलता है. शहर का विस्तार होने से काशी के कई आश्रम अब ऐसी बेशकीमती भूमि के मालिक हो गए हैं जिसकी कीमत अरबों रूपये की हो गई है. इस कारण झगडे हुए और वे बंद हो गए. कुमुद भवन का वृद्धाश्रम इसी तरह विवादित हो गया.

विधवा पेंशन का पता नहीं

विधवा पेंशन स्कीम के तहत गरीबी की रेखा के नीचे गुज़ारा करने वाली विधवाओं को हर महीने 300 रूपये सरकार की ओर से दिए जाते हैं. यानि 3600 रूपये सालाना . सरकार ये रकम हर महीने के बजाए हर छठे महीने इन विधवाओं के बैंक खातों में जमा करती है. यूपी में करीब दस लाख विधवाओं को ये पेंशन मिल रही है. उसके आलावा यूपी सरकार गरीबी की रेखा के नीचे गुज़ारा करने वाली ऐसी विधवाओं को 400 रूपये महीना यानी 4800 रूपये वार्षिक देती है. इस सूची में भी करीब सात लाख विधवाएं शामिल हैं. लेकिन वृन्दावन, काशी या अयोध्या में मोक्ष की प्राप्ति के लिए जी रही विधवाओं को इन दोनों योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है.

रिपोर्टः एस.वहीद, लखनऊ

संपादनः एन रंजन

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