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मोदीफिकेशन के मायने

२६ अगस्त २०१३

नरेंद्र मोदी मास मीडिया में एजेंडा सेटिंग सिद्धांत की एक ताजा और उपयुक्त मिसाल हैं. पीएम पद को लेकर बीजेपी में पलड़ा मोदी की ओर झुकाया जा रहा है. उधर कांग्रेस की दूसरी पंक्ति के नेता मोदी के तेवर कुंद करने पर तुले हैं.

तस्वीर: AP

कांग्रेस से देश को मुक्त कराने की अलख जगाते मोदी घूम रहे हैं लेकिन लौट लौट कर गुजरात में ही शरण लेते हैं जहां उनके मुताबिक देश से बेहतर हालात हैं, विकास की चमक है, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, रोजगार सब भारत सरकार से अव्वल है. मोदी कथित राष्ट्रवाद के एक दबंग प्रवक्ता के रूप में पेश किए जा रहे हैं. रहनुमा बताए जाने लगे हैं. इस काम में नामी जनसंपर्क एजेंसियां सक्रिय हैं. ये भी सब जानते हैं. लेकिन जितना मोदी खुद को चमकाते हुए बाहर निकलते हैं उतना ही उनकी पीआर मुहिम पर मट्ठा डालने का अभियान छेड़ देते हैं कांग्रेस के दूसरी और तीसरी लाइन के नेता जिनमें दिग्विजय सिंह प्रमुख हैं. सलमान खुर्शीद, अजय माकन, मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल, जयंती नटराजन, जयराम रमेश आदि हैं. जब जब मोदी अपने आंकड़े उछालते हैं तब तब कांग्रेस की अघोषित टीम आंकड़ों के गुब्बारों पर आंकड़ों की कीलें छोड़ देती हैं.

इस तरह होता ये है कि देश के जनमानस में संघ और कॉरपोरेट की ओर से पेश मोदी समर्थक छवि अपनी छाप नहीं छोड़ पाती है. लोग असमंजसम में रह जाते हैं. वोटर का मिजाज हिंदुस्तान में कैसा रहता आया है, ये सब जानते हैं और राजनीतिक दलों को तो ये बात सबसे अच्छी तरह पता है. सारे थिंक टैंक पीछे छूट जाते हैं और सारी हवाएं बंद हो जाती हैं जब नतीजे आते हैं और वोट के रुझान पता चलते हैं.

तो कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से बीजेपी को सोनिया-राहुल-मनमोहन बनाम मोदी समीकरण नहीं बनाने दिया. बीजेपी की एक और संभावित हैरानी और परेशानी है, कहीं चुनावी बेला नजदीक आते आते कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को आगे कर दिया तो क्या होगा. ये एक ऐसा प्वाइंट है जिसकी काट बीजेपी को ढूंढे नहीं मिल रही हैं. तब तेज़ तर्रार सुषमाएं, उमाएं, स्मृतियां आदि बेअसर रह सकती हैं, ऐसी आशंका उसे लगती है.

उधर कांग्रेस के लिए मोदी फैक्टर कई मायनों में एक तरह से “ब्लेसिंग इन डिसगाइज” की तरह है. वो मामले के मोदीफिकेशन पर तवज्जो इसलिए दे रही है क्योंकि मीडिया में यही विषय सजाधजा कर परोसा जा रहा है, इसी पर सबकी निगाहें हैं, इस तरह एजेंडे सेट किए जा रहे हैं. नौ साल में यूपीए सरकार अर्थव्यवस्था और सकल वृद्धि का क्या हाल कर चुकी है, इन बातों को मुद्दा बनाने से रोकने के लिए एक बड़ा और पक्का गेट चाहिए. मोदी का मुद्दा ये गेट बन जाता है. इसी गेट पर कांग्रेसी नेता खड़े हैं और अंदर सरकार टहल रही है.

कमजोर पड़े सोनिया-मनमोहनतस्वीर: dapd

बीजेपी ने बेशक भ्रष्टाचार को और गिरते रुपये को मुद्दा बनाया है लेकिन आप पाएंगें कि मोदी ने खुद को इन मुद्दों से इतना ऊपर चाहते न चाहते कर दिया है कि पार्टी में इधर हर बात उनके बाद शुरू होती है. बुजुर्ग नेता और एक समय के मोदी के रहनुमा एलके आडवाणी की पीड़ा यही है. चुनावी जेनुइनिटी का मोदीफिकेशन हो रहा है.

क्या बीजेपी, कांग्रेस की राजनीतिक चाल में आ गई है और मोदी को इतना बड़ा कर रही है कि सारे मुद्दे उनके पीछे आ रहे हैं. कांग्रेस भी उन्हें घेर घेर कर इतना बड़ा कर रही है कि सारे मुद्दे पीछे रह जाएं. और मतदाता इतनी ऊंचाई पर तो वोट देने नही जाते, वे उन्हीं मुद्दों पर वोट देंगे जैसा कि वे करते आए हैं. मोदी और कांग्रेस नेताओं की तूतू मैंमैं में एक उपसवाल ये है कि क्या वाकई जनता ये तमाशा नहीं देख रही होगी. क्या उसने अपने विकल्प नहीं बनाए होंगे. या वो अपनी जातीय विवशताओं में लौट जाएगी.

मोदी दिल्ली फतह के जिस ललकार भाव से आगे बढ़ रहे हैं उससे लगता ये है कि वो राजा महाराजा के दौर के कोई योद्धा हैं जो चतुरंगिणी सेना लेकर दिल्ली पर चढ़ाई करने निकल पड़ा हो. हमारे टीवी ने तो कुछ इस किस्म का खेल दिखा भी दिया था. मोदी की महाभारत. जिसमें न जाने कैसे कुछ पात्र रामायण के भी आ गए थे. इतना सब होने के बावजूद हमें तो कोई धूल उड़ती, कोई गुबार उठता या कोई पताका लहराती नजर नहीं आती. फिर ये सब जो हो रहा है क्या वाकई मास मीडिया निर्मित उभार है. गुजरात में अपनी सरकार को लेकर जो जो बातें मोदी मद में बोलते आए हैं वे पीआर के तौर पर कोई संदेश भले ही दें लेकिन न जाने कैसे मोदी भूल जाते हैं कि जिन आंकड़ों के सहारे वे गुणगान में व्यस्त हैं, उन आंकड़ों का गणित पलटकर उनसे ही कुछ तीखे और प्रासंगिक सवाल करने लगता है. फिर हमें स्वास्थ्य, कुपोषण, समाज कल्याण, रिहाइश, शिक्षा, अल्पसंख्यक सुरक्षा, निवेश जैसे कई मुद्दों पर मोदी का रचाया “गुजरात” फीका ही नजर आता है. बाज दफा डरावना. हालांकि बाकी देश की हालत भी खराब ही है.

फिर भी मोदी 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री को लाइव भाषण में चुनौती देते हैं. उनके हावभाव पार्टी के लोगों तक को असहज करते हैं. वे कहकर निकल जाते हैं तो कांग्रेस की ओर से एक बयान फुदक कर आता है कि असल में मोदी ऐसे मेंढक हैं जो नया नया बाहर आया है.

उन्हें राष्ट्रीय शर्म बताने मनीष तिवारी आ जाते हैं. दिग्विजय सिंह उन्हें विचित्र विशेषणों और उपाधियों से नवाज चुके हैं. लेकिन मोदी पर तीखे बाण उन्हें घायल नहीं करते वो और प्रबल होकर सोनिया-मनमोहन पर हमला करते हैं. बीजेपी की मुश्किल ये है कि मोदी का कद इतना बढ़ा दिया गया है कि वो चाहकर भी ये नहीं कह सकती कि मोदी भाई जरा कम बोलो. कांग्रेस आलाकमान ने तो सुनते हैं अपने वीरों को ये ताकीद कर दी है.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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