नरेंद्र मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने पर देश के मुसलमानों में जिस मॉब लिंचिंग, लव जिहाद, घर वापसी और नेताओं के बड़बोलापन का डर था, उससे उलट सरकार के पहले ही 20 दिनों में मुसलमानों की बेहतरी के लिए हुई हैं कई घोषणाएं.
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पिछले महीने लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच चार मई को लखनऊ के एक पंच सितारा होटल में शिया धर्मगुरु मौलाना सय्यद कल्बे जव्वाद नकवी की प्रेसवार्ता हुई और उसमें उन्होंने लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनाथ सिंह के पक्ष में समर्थन का एलान कर दिया. उसके बाद तो जैसे आसमान टूट पड़ा. यही चर्चा होने लगी कि क्या अब मुसलमान भी बीजेपी का समर्थन खुलेआम करेंगे? मौलाना जव्वाद ने बताया कि उन्होंने एक व्यक्ति विशेष का समर्थन किया है और किसी पार्टी का नहीं. लोग स्वतंत्र हैं अपना मताधिकार प्रयोग करने के लिए. बहरहाल, राजनाथ सिंह लखनऊ से 3.47 लाख वोट से चुनाव जीत गए. पूरे चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने खासकर हिंदी पट्टी में मुसलमानों से दूरी ही रखी. विपक्षी दलों ने यही माना कि मुसलमान वोटर उन्हें मत नहीं देगा तो क्या बीजेपी को देगा.
मोदी की दूसरी पारी और मुसलमान
हाल के दिनों में कई ऐसे एलान हुए जो बीजेपी की मुसलमान-विरोधी छवि रखने वालों को हैरानी में डाल रहे हैं. बीते 11 जून को मौलाना आजाद नेशनल एजुकेशन फाउंडेशन की 112वीं गवर्निंग बॉडी की बैठक में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों का रोड मैप सामने रख दिया. इसमें स्कूल ड्रॉप-आउट बच्चों को ब्रिज कोर्स करवा कर मेनस्ट्रीम एजुकेशन में लाया जाना है. मदरसों को मुख्यधारा में लाने के लिए वहां हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स और साइंस की शिक्षा दिए जाने की बात है. यहीं नहीं, अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ छात्रों को अगले पांच साल में छात्रवृत्तियां दी जाएंगी. शैक्षिक संस्थानों में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाएगा. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही करीब आधा दर्जन से अधिक योजनाओं में तेजी लाई जाएगी. इसके अलावा मुसलमानों की वक्फ प्रॉपर्टी का विकास किया जायेगा और इन प्रॉपर्टीज पर स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक भवन इत्यादि खोलने के लिए 100 फीसदी फंडिंग की व्यवस्था किए जाने की योजना है.
हज का कोटा भी इस बार बढ़ा कर दो लाख कर दिया गया है. केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने ये भी एलान किया कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने "विकास की सेहत" को "साम्प्रदायिकता एवं तुष्टीकरण की बीमारी" से मुक्ति दिलाकर "सेहतमंद समावेशी सशक्तिकरण" का माहौल तैयार किया है. ऐसी घोषणाओं का असर सोशल मीडिया पर भी हो रहा और ये सब बातें खूब शेयर हो रही हैं. इन मुद्दों पर कोई भी विपक्षी दल अभी तक कुछ कह नहीं पाया हैं लेकिन आम मुसलमान बात कर रहा है.
क्या हिंदुओं को भी मिलती है तीर्थ सब्सिडी ?
भारत सरकार ने हज यात्रा के लिए मिलने वाली सब्सिडी खत्म कर दी है. कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ऐसा किया जा रहा है. भारत में राज्य सरकारें हिंदुओं को भी कई तरह की तीर्थयात्राओं के लिए सब्सिडी देती हैं.
तस्वीर: Jasvinder Sehgal
असम
वरिष्ठ नागरिकों के लिए कांग्रेस पार्टी ने 2004-05 में धर्मज्योति योजना शुरू की थी. इसमें 20 के समूह में जाने वाले यात्रियों को बस यात्रा का आधा खर्च दिया जाता है. इसके अलावा मौजूदा बीजेपी सरकार ने पुण्यधाम यात्रा 2017 में शुरू की जिसके तहत सरकार जगन्नाथ मंदिर, मथुरा, वृंदावन, अजमेर शरीफ और वैष्णो देवी की यात्रा का खर्च उठाती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Tauseef
दिल्ली
दिल्ली की कैबिनेट ने इसी हफ्ते मुख्यंत्री तीर्थ यात्रा योजना शुरू की है. इसके तहत हर विधानसभा सीट से 1100 वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थयात्रा कराई जाएगी जिसका पूरा खर्च सरकार देगी. यात्रा का लाभ सिर्फ उनको मिलेगा जिनकी वार्षिक कमाई 3 लाख रुपये से कम है. यात्रियों को 2 लाख के इंश्योरेंस के अलावा आने जाने, ठहरने और भोजन का खर्च मिलेगा.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA
गुजरात
राज्य में 2001 से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सब्सिडी योजना चल रही है. सिंधु दर्शन और श्रावण तीर्थदर्शन योजना इस साल से शुरू की गयी है. मानसरोवर के लिए 23 हजार रुपये की सब्सिडी मिलती है. सिंधु दर्शन के लिए 15,000 और श्रावण तीर्थ दर्शन के लिए 50 लोगों के समूह में जाने वाले यात्रियों को बस यात्रा का आधा खर्च मिलता है.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA
हरियाणा
मौजूदा सरकार 50 बुजुर्ग यात्रियों को सिंधु दर्शन यात्रा के लिए 10 हजार रुपये देती है. 50 दूसरे यात्रियों को मानसरोवर की यात्रा के लिए 50 हजार रुपये मिलते हैं.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
मध्यप्रदेश
मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के तहत हर साल मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नागरिकों को इसका लाभ मिलता है. उन्हें बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथपुरी, द्वारका, वैष्णोदेवी, गया, हरिद्वार, शिर्डी, तिरुपति, अजमेर शरीफ, काशी, श्रावण बेलागोला और वेलांकन्नी चर्च की यात्रा के लिए सरकार मदद देती है. इसके अलावा तीर्थ के लिए विदेश जाने वालों को भी 30 हजार रुपये या फिर यात्रा का आधा खर्च सब्सिडी के रूप में दिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/A.F. Kersting
कर्नाटक
कर्नाटक के निवासियों को सरकार की तरफ से चार धाम यात्रा के लिए 20 हजार रुपये प्रति यात्री दिए जाते हैं. कांग्रेस पार्टी की सरकार ने यह योजना 2014 में शुरू की थी. इससे पहले बीजेपी सरकार ने मानरोवर यात्रा के लिए 30 हजार रुपये प्रति यात्री सब्सिडी शुरू की थी. 2017 में एक और सब्सिडी शुरू की गई जिसके तहत राज्य में तीर्थ पर जाने वाले सभी धर्मों के लोगों को खर्च का 25 फीसदी हिस्सा मिलता है.
तस्वीर: Milap Chand Sharma
राजस्थान
2013 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेल से मुफ्त तीर्थयात्रा योजना शुरू की. पिछले साल बीजेपी सरकार ने इसका नाम बदल, इसमें विमान यात्रा को भी शामिल करा दिया. वर्तमान में 13 तीर्थस्थलों के लिए यह सुविधा दी जाती है. 2013 से लेकर अब तक 80 हजार से ज्यादा लोगों ने इस योजना का लाभ लिया है.
तस्वीर: Reuters
तमिलनाडु
तमिलनाडु में हिंदुओं को मानसरोवर और मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है. यहां येरुशलम की यात्रा पर जाने वाले ईसाई भी सब्सिडी पा सकते हैं. मानसरोवर और मुक्तिनाथ की सब्सिडी 2012 में शुरू की गई. इसके तहत मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को 40 हजार और मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए 10 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाती है. येरुशलम जाने वालों को 20000 रुपये मिलते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Gharabli
उड़ीसा
2016 में सरकार ने वरिष्ठ नागरिक तीर्थ यात्रा योजना शुरू की जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ यात्रा का पूरा खर्च दिया जाता है. सरकार ने इसके लिए पहले वर्ष में 5 करोड़ रुपये की रकम निर्धारित की थी.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/A. F. Kersting
उत्तर प्रदेश
भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने का बाद सब्सिडी दोगुनी कर दी गई. यहां कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वालों को अब एक लाख रुपये प्रति यात्री सरकार की तरफ से दिया जाएगा. इसके अलावा समाजवादी पार्टी की सरकार ने श्रावण यात्रा के लिए विशेष रेलगाड़ी की व्यवस्था की थी, जिसमें वरिष्ट नागरिक ही सफर कर सकते हैं.
तस्वीर: DW/S. Waheed
उत्तराखंड
2014 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने मेरे बुजुर्ग, मेरे तीर्थ नाम से योजना शुरू की जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को राज्य के तीर्थस्थलों की यात्रा कराई जाती है. बीजेपी की सरकार आने के बाद इसका नाम बदल दिया गया. साथ ही पीरन कलियार दरगाह समेत कई और तीर्थ स्थानों को भी इसमें शामिल किया गया. राज्य का संस्कृति मंत्रालय कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वालों को इस साल से 30 हजार रूपये की सब्सिडी देगा.
तस्वीर: Jasvinder Sehgal
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कैसी है नई घोषणाओं पर प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश में वक्फ प्रॉपर्टीज को बचाने के लिए सेव वक्फ इंडिया का संचालन करने वाले सय्यद रिजवान मुस्तफा मानते हैं कि ये बहुत बड़ा कदम है. उन्होंने कहा, "हम कहीं एक मदरसा भी खोलना चाहें तो पहले जमीन के लिए मारामारी करें. अब जब हमको अपनी वक्फ प्रॉपर्टी पर ही मदरसा खोलने की 100 फीसदी फंडिंग मिल रही है फिर और क्या चाहिए.” मुस्तफा के अनुसार इस सबसे मुसलमानों पर बहुत असर पड़ेगा. वे कहते हैं, "वो आपकी पढ़ाई-लिखाई की बातें कर रहे हैं तो आप क्या करिएगा. बिलकुल मुसलमान का झुकाव होगा.” लखनऊ के रहने वाले काजिम रज़ा के अनुसार अब माहौल बदल रहा है. रजा बताते हैं, "पहले बाबरी मस्जिद को कई राजनीतिक दलों ने खूब उठाया. लेकिन जो बच्चा 1992 (जब बाबरी मस्जिद गिरी) में पैदा हुआ वो आज 27 साल का है. उसको अब अपनी पढ़ाई और करियर, रोजी-रोटी की फिक्र ज्यादा है. अगर इस तरफ ध्यान दे दिया गया तो बदलाव निश्चित है.”
मोदी के विजयी होने के बाद से ही कई मुस्लिम संगठनों की तरफ से भी बधाई संदेशों का तांता लग गया. 'जमीअत उलेमा ए हिन्द' के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी की तरफ से बधाई दी गई और उम्मीद की गई कि मुसलमानों के रोजगार और शिक्षा की तरफ ध्यान दिया जायेगा. 'आल इंडिया उलेमा मशायख बोर्ड' के अध्यक्ष सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने भी बधाई दी और मुस्लिमों के विकास की बात की.
लखनऊ में रहने वाली गृहणी तनवीर फातिमा के अनुसार पढ़ाई और करियर सबसे जरूरी हैं. इनकी एक इंजीनियर बेटी बेंगलुरू में नौकरी कर रही है और दूसरी फार्मेसी कोर्स करने के बाद पुणे जाने की तैयारी में है. वे कहती हैं, "कब तक डरिएगा. अच्छे और बुरे लोग हर समाज में हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि मुसलमान को आप लोगों ने स्टीरियोटाइप कर दिया है कि वो हमेशा दुपल्ली टोपी लगाए रहेगा, आंख में सुरमा होगा, लुंगी पहनेगा, उसके मोहल्ले में चांद तारे की झड़ियां लगी होंगी. ऐसा कुछ नहीं हैं. वो भी आम इंसान की तरह हैं. उसकी जरुरत भी सबकी तरह नौकरी, पढ़ाई है. इसमें अगर कुछ मदद मिल रही है तो क्या बुराई है.”
ऐसा नहीं है कि मुसलमानों के लिए जो घोषणाएं हुई हैं बस मुसलमान उस पर लट्टू हो गया. इन सबकी नींव मोदी ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत में ही रख दी है. चुनावी प्रचार में तमाम बयान हर तरफ से आए लेकिन नतीजों के बाद मोदी की तरफ से वो हुआ जो अप्रत्याशित था. मई 23 को बीजेपी मुख्यालय पर अपने भाषण में मोदी ने पहला कदम बढाया और नया स्लोगन दिया—सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास. साफ कहा कि अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतना है, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देना है. उनका भरोसा और दिल जीतना है. जिस बात से मुसलमान चिंतित रहते हैं वो हैं कुछ नेताओं के चुभने वाले बयान. मोदी ने सांसदों को साफ कह दिया कि ऐसे बयानों से परहेज करें. इसके बाद पार्लियामेंट हॉल में सांसदों से भेंट कार्यक्रम में फिर अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने की बात दोहराई.
कैसा है मोदी की ऐतिहासिक जीत का फॉर्मूला
2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का भारतीय जनता दल (बीजेपी) रिकॉर्ड जीत के साथ सत्ता में वापस आ रहा है. 90 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 60 करोड़ ने अपने वोट डाल कर मोदी के पक्ष में फैसला सुना दिया है.
तस्वीर: IANS/Twitter/@narendramodi
करिश्माई व्यक्तित्व
नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि तमाम विपक्षी नेताओं के व्यक्तित्व के कुल जमा असर पर भी भारी रही. चुनाव भले ही लोकसभा सीटों के लिए हुए हों, लेकिन ज्यादातर वोटरों ने अपने स्थानीय उम्मीदवार की नहीं बल्कि मोदी के नाम पर अपना वोट बीजेपी को दिया.
तस्वीर: IANS
भरोसेमंद सेनापति
चुनाव के नतीजों में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की भूमिका बहुत बड़ी है. बीजेपी ने शुरु से अपने पीएम पद के उम्मीदवार मोदी को सामने रखा और अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए सभी जरूरी गठजोड़ करने का जिम्मा शाह को सौंपा, जो कि चुनाव दर चुनाव इसमें अपनी महारत साबित करते आ रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
लंबे चलने वाले चुनाव
लंबे चले प्रचार अभियानों के कारण मोदी को देश के कोने कोने में जाकर लोगों से सीधा संपर्क स्थापित करने का मौका मिला. वाक् कला के धनी मोदी को सुनने के लिए वैसी ही भीड़ उमड़ती है जैसी कभी नेहरू, इंदिरा और अटल बिहारी वाजपेयी के लिए आती थी. इस सीजन में खुद मोदी ने 130 से अधिक जनसभाएं कीं.
तस्वीर: IANS
संगठन की शक्ति
बीजेपी के पास ना केवल उसके सुपरस्टार प्रचारक मोदी हैं बल्कि एक बेहद गठा हुआ अनुशासित संगठन भी. बीजेपी खुद प्राथमिक सदस्यों के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है और इसका मूल संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवकों का संगठन है. संघ ने भी विश्व भर में मोदी समर्थक माहौल तैयार करने में भूमिका निभाई.
तस्वीर: Reuters/H. Sharma
धन बल
बीजेपी के पास खर्च करने के लिए कांग्रेस और अन्य पार्टियों के मुकाबले कई गुना ज्यादा धन था. केवल सोशल मीडिया की बानगी देखें, तो फेसबुक और गूगल पर ही कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी ने छह गुना ज्यादा पैसा खर्च किया. अनुमान है कि बीजेपी का चुनाव प्रचार में कुल खर्च कांग्रेस से 20 गुना ज्यादा था.
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/S. Naskar
पाकिस्तान-विरोध पर एकजुटता
चुनाव के ठीक पहले पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव पर पीएम मोदी के रवैये के कारण भी उन्हें बहुत फायदा हुआ. फरवरी में पुलवामा में भारतीय सैनिकों पर हुए आत्मघाती हमले का जवाब देने का उनका कदम और तरीका दोनों कहीं ना कहीं लोगों को पंसद आया, जिसका सबूत उन्होंने अपने वोट के रूप में दिया. राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद के नाम पर काफी लोग उनके साथ जुड़े.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
लोकलुभावन नीतियां
देश के गरीबों के लिए बीते पांच साल में लाई गई योजनाओं के अंतर्गत कई लोगों के घरों में गैस सिलिंडर पहुंचा, टॉयलेट बनवाए गए, बिजली पहुंची और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच बढ़ाने के प्रयास हुए. हालांकि कई इलाकों में ये काम अधूरे हैं लेकिन नतीजों से लगता है कि लोगों ने कुल मिलाकर इन कदमों का स्वागत किया है.
तस्वीर: DW/PM Tewari
नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति
बीजेपी और उसके नेताओं की देश के सत्ता के गलियारों में बने रहने, देश को नेतृत्व देने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति लोगों को नजर आती है. वो हर तरह कोशिश करके सत्ता में रहना चाहते हैं. जिस तरह से बीजेपी ने अपने कमजोर सहयोगियों की मांग भी पूरी की और उन्हें अपने साथ रखा उस तरह की प्रतिबद्धता दूसरे दलों में नजर नहीं आती है.
तस्वीर: IANS
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बीजेपी पर असर भी दिख रहा हैं. पहली बार उत्तर प्रदेश के कानपुर में ईदगाह के बाहर बीजेपी का कैंप लगा और सांसद सत्यदेव पचौरी खुल कर मुसलमानों से गले मिले. यही नहीं, भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा, जिनको लेकर बहुत कुछ कहा और लिखा गया, वो भी शहर काजी के आवास पर ईद की बधाई देने गईं. झारखंड जहां से बीते साल मॉब लिंचिंग की घटना प्रकाश में आई, वहां की सरकार ने अखबारों को पूरे पन्ने का विज्ञापन दे कर बताया कि प्रदेश में मुसलमानों के लिए नया आधुनिक हज हाउस बनाया गया है.
क्या होगा अगर मुसलमान बीजेपी की तरफ गया
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र मोहम्मद वासिफ के अनुसार अमरोहा जनपद में उनके पैत्रिक गांव में लगभग 150 मुसलमानों ने भाजपा को लोकसभा में वोट दिया. वासिफ बताते हैं, "वैसे बीजेपी का उम्मीदवार हार गया और बसपा का सांसद जीत गया लेकिन अब गांव की छोटी मोटी बात के लिए यही 150 मुसलमान आगे आगे जा कर बीजेपी नेताओं से काम के लिए कहते हैं. किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है.”
लोकनीति—सीएसडीएस पोस्ट पोल सर्वे 2019 के अनुसार लगभग 8 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया और लगभग 15 फीसदी चाहते थे कि मोदी सरकार वापस आ जाये. ये आंकड़े देखने में भले कम लगे लेकिन इनके पीछे 2014-2019 में मोदी का कार्यकाल है. अब अगर बदलाव हुए और कहीं 15 से 20 फीसदी मुसलमान भी बीजेपी की तरफ चले गए तो बाकी पार्टियों का वोट शेयर धराशायी हो जाएगा. अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो गठबंधन (सपा-बसपा) को एकमुश्त मुसलमान वोट मिला और 15 सीटें भी जिसमें 6 मुसलमान जीते. अगर ये वोट हिले तो गठबंधन का टिकना मुश्किल हो सकता है. इस बात की फिक्र सभी पार्टियों को है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं, "किसी भी सरकार का अपने नागरिकों को साथ लेकर चलने का इरादा अच्छी बात है. वादे हुए हैं अब कितने अमल में आएंगे ये देखने वाली बात है. मुख्य बात ये है कि बीजेपी के मूल संघ परिवार में एंटी मुस्लिम आइडियोलॉजी घुली हुई है और कांग्रेस में ऐसा नहीं हैं. इस अंतर को भाजपा कैसे पाटेगी, ये देखने वाली बात होगी.”
फिलहाल अब शहरों में बीजेपी और मोदी की होर्डिंग्स में मुसलमान चेहरे नजर आते हैं, खुल कर मुसलमान भाजपा में होने की बात कहते हैं. ये बदलाव नहीं तो क्या है कि पुराने लखनऊ के मुस्लिम मोहल्ले में ढोल पर मुस्लिम युवकों ने बीजेपी की जीत पर नाचते हुए बधाइयां दी थीं.