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मोदी की जर्मनी यात्रा के बारे में जर्मन अखबारों ने क्या छापा

३ मई २०२२

प्रधानमंत्री मोदी तीन दिनों की यूरोपीय यात्रा पर हैं. जर्मनी के बाद वो डेनमार्क पहुंचे हैं और आखिर में फ्रांस के दोबारा राष्ट्रपति चुने गए इमानुएल माक्रों से पेरिस में मुलाकात करेंगे.

समझौतों पर दस्तखत के बाद हाथ मिलाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चांसलर ओलाफ शॉल्त्स.
समझौतों पर दस्तखत के बाद हाथ मिलाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चांसलर ओलाफ शॉल्त्स.तस्वीर: JOHN MACDOUGALL/AFP via Getty Images

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 मई को छठी इंटर गवर्नमेंटल कंसल्टेशन(IGC) के लिए जर्मनी पहुंचे थे. जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ मुलाकात में 14 समझौतों पर दस्तखत हुए हैं. यूक्रेन पर रूसी हमले के साए में हुए इस दौरे पर जर्मन मीडिया में खासी दिलचस्पी दिखी.

बर्लिन से प्रकाशित दैनिक बर्लिनर साइटुंग के अनुसार ओलाफ शॉल्त्स ने भारत को एशिया में जर्मनी का प्रमुख सहयोगी बताया. इस पर जोर देते हुए अखबार ने लिखा है, "2045 तक जर्मनी को कार्बन न्यूट्रल होना है. इसके लिए स्टील और रसायन उद्योग में उत्पादन की प्रक्रिया को पूरी तरह बदलना होगा. खासकर ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा को प्रमुख भमिका निभानी होगी, जिसे बनाने के लिए अभी अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. जर्मनी को बड़े पैमाने पर हाइड्रोन ऊर्जा का आयात करना होगा."

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जर्मनी और भारत का ऊर्जा सहयोग इसी पर लक्षित है. जर्मनी की समस्या यह है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिए हैं. जर्मनी अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर था, लेकिन हमले के बाद माहौल बदल गया है और जर्मनी अपनी निर्भरता खत्म करना चाहता है. और इसके लिए उसे भारत की जरूरत है.

भारत और जर्मनी का प्रतिनिधिमंडल. केंद्रीय कैबिनेट से वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर मोदी के साथ दौरे पर हैं. तस्वीर: Clemens Bilan/Getty Images

म्यूनिख से प्रकाशित ज्युड डॉयचे साइटुंग ने लिखा है, "जब आपके दोस्त का दोस्त(रूस) समस्या पैदा करने का फैसला करता है, और इतना ही नहीं जब वह यूरोप में युद्धशुरू करता है और पड़ोसी पर हमला करता है तो गंभीर बातचीत की जरूरत होती है. जर्मनी के भारत के साथ दोस्ताना रिश्ते हैं. लेकिन धरती के इस आबादी बहुल देश के रूस के साथ भी निकट संबंध हैं. और यूक्रेन पर हमले के बावजूद वह इसे बनाए भी रखना चाहता है. बर्लिन के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दौरे का मतलब है, अत्यंत जटिल बातचीत और संभवतः एक या दूसरे मुद्दे पर असहमति भी."

(पढ़ें-बर्लिन में मोदी से मिले शॉल्त्स, रूस पर नहीं बदला भारत का रुख )

कोलोन से प्रकाशित कोएल्नर स्टाट अलनलाइगर ने लिखा है, "मोदी ने रूसी युद्ध की निंदा नहीं की. भारत युद्ध के बाद से रूस से पहले की अपेक्षा ज्यादा किफायती तेल खरीद रहा है. मोदी ने शॉल्त्स को भरोसा दिलाया कि वे कई सामूहिक मूल्यों को साझा करते हैं. लेकिन जब तक भारत शॉल्त्स की नई विश्व व्यवस्था में कोई भूमिका निभाएगा, उसमें वक्त लगेगा."

साझा प्रेस वार्त करते प्रधानमंत्री मोदी और चांसलर शॉल्त्सतस्वीर: JOHN MACDOUGALL/AFP via Getty Images

ब्रेमेन से प्रकाशित होने वाले दैनिक वेजर साइटुंग का कहना है, "अक्षय उर्जा पैदा करने की अच्छी परिस्थितियों के कारण लंबे समय में भारत हाइड्रोजन उर्जा के उत्पादन में दुनिया का महत्वपूर्ण उत्पादन स्थल होगा."

यही वजह है कि जर्मनी भारत के साथ ऊर्जा सहयोग में अपनी समस्याओं को हल करने का रास्ता भी देखता है. फ्रांकफुर्टर अल्गेमाइने साइटुंग ने लिखा है, "जर्मनी भारत के पर्यावरण सुरक्षा प्रयासों के लिए अगले दस वर्षों में 10 अरब की मदद देगा."

प्रधानमंत्री मोदी तीन दिनों की यूरोपीय यात्रा पर हैं. जर्मनी के बाद वो डेनमार्क पहुंचे हैं और आखिर में फ्रांस के दोबारा राष्ट्रपति चुने गए इमानुएल माक्रों से पेरिस में मुलाकात करेंगे.

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