भारत के प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था थोड़ी सुस्त जरूर हुई है लेकिन यह इतने बुरे हाल में नहीं है जैसी कि कुछ लोग बता रहे हैं. मोदी ने यह भी कहा कि वो आलोचनाओं के डर से पीछे नहीं हटेंगे.
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बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता और अर्थशास्त्री भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठा रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर है. इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेट्रीज ऑफ इंडिया के एक कार्यक्रम में बुधवार को प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था को लेकर भारत में उठ रही आशंकाओं पर सफाई दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "एक तिमाही में विकास की दर कम होने से कुछ निराशावादी लोगों को बढ़ावा मिल गया है लेकिन यह पहली बार नहीं है जब किसी तिमाही में विकास की दर 5.7 फीसदी हुई हो." मोदी के मुताबिक पिछली सरकार में कम से कम आठ बार विकास की दर 5.7 फीसदी या इससे कम रही है.
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, "यह सच है कि पिछले तीन साल में औसत विकास दर 7.5 फीसदी रही है और अप्रैल से जून के बीच यह घट कर 5.7 फीसदी रह गयी लेकिन यह भी सच है कि सरकार इस स्थिति को बदलने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है." नरेंद्र मोदी का कहना है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए कई कदम उठाये हैं और वह ऐसा करना जारी रखेंगे. मोदी ने कहा है कि आलोचक भय फैला रहे हैं लेकिन अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर बढ़ रही है.
मोदी का कहना है कि सरकार ने सस्ते मकान और आर्थिक सुधारों के लिए नीतिगत फैसले किये हैं और उन्हें लागू करने के लिए "ऐतिहासिक कदम" उठाये हैं. प्रधानमंत्री ने कहा, "पिछले तीन सालों में 21 सेक्टरों में 87 सुधार किये गये हैं. रक्षा, निर्माण, वित्तीय सेवायें, खाद्य प्रसंस्करण, जैसे क्षेत्रो में निवेश के नियम बदल दिये गये हैं."
नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि सरकार ने अक्षय ऊर्जा में भारी निवेश किया है. मोदी के मुताबिक, "पिछली सरकार ने आखिरी तीन सालों में अक्षय ऊर्जा पर 4,000 करोड़ रुपये खर्च किये थे, हमारी सरकार ने तीन सालों में 10,000 करोड़ से ज्यादा रकम अक्षय ऊर्जा पर खर्च की हैं."
जो कभी लेते थे, आज दे रहे हैं बड़ा दान
वैश्विक आर्थिक संकट के बाद से विकसित देशों ने विदेशी सहायता के रूप में अपना खर्च घटा दिया है लेकिन ब्रिक्स देश और दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाएं अपने दान की सीमा बढ़ा रही हैं.
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विकास के लिए सहायता देने वाले नये देश
धीमी गति के संकेतों के बाद उभरते दानदाताओं की गतिविधि पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ी है. एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक उभरते दानदाता देश 2020 तक कुल विदेशी सहायता में करीब 20 फीसदी का योगदान देंगे. 2012 में यह आंकड़ा महज 7-10 फीसदी था.
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ड्रैगन का उदय
2013 में कुल विदेशी सहायता का बजट 7.1 अरब अमेरिकी डॉलर का था. चीन ना सिर्फ उभरते दानदाताओं में सबसे बड़ा है बल्कि पूरी दुनिया में वह अब छठा सबसे अधिक दान देने वाला देश है. दुनिया के 121 देशों की मदद कर रहे चीन का ध्यान अफ्रीका पर ज्यादा है और वह महादेश में कूटनीतिक और आर्थिक गतिविधियों में अहम होता जा रहा है. चीन की आधी से ज्यादा सहायता की रकम बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दी जाती है.
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दीर्घकालीन सहायता का विकास
ग्लोबल डेवलपमेंट प्रोग्राम डेवेक्स की नई रिपोर्ट के लिए 1000 विकास अधिकारियों का सर्वे किया गया. इन लोगों का कहना है कि उभरते दानदाता देश अगले दशक में विकास के लिए विदेशी सहायता पर खर्च करते रहेंगे.
उफान पर संयुक्त अरब अमीरात
2013 में संयुक्त अरब अमीरात ने विकास सहायता कार्यक्रम में दान देने वाले देशों में सबसे ऊंची छलांग लगाई. यूएई ने खर्च इस मद में 435 फीसदी बढ़ा दिया. इसका बड़ा हिस्सा मुस्लिम बहुल देशों को गया, खासतौर से मध्यपूर्व और उत्तर अफ्रीकी देशों को. खाड़ी देश मानवीय सहायता के मामले में भी बड़ा दान दे रहा है वह भी फिलीपींस और मध्य अफ्रीकी रिपब्लिक जैसे दूर दराज के देशों में.
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रूस और तुर्की
रूस के फिर से उभरते विदेशी सहायता कार्यक्रम का ध्यान स्वास्थ्य और शिक्षा पर है और यह पूर्व सोवियत यूनियन में स्कूल और मेडिकल सिस्टम के लिए मदद से ही निकला माना जाता है. हालांकि यूक्रेन के मसले पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का भी काफी असर हुआ है. तुर्की में विकास के लिए विदेशी सहायता पर खर्च 2010 से 2014 के बीच तीन गुना बढ़ कर 3.4 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है.
बदलती कमान
डेवेक्स की रिपोर्ट में आठ उभरते दानदाता देशों की दान नीति और प्राथमिकताओं पर ध्यान दिया गया है. इनमें ब्रिक्स देश (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के साथ ही दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की भी शामिल हैं. 2017 में चीन में ब्रिक्स देशों की बैठक में उभरते दानदाताओं ने विकसित देशों से आधिकारिक विकास सहायता वादों को समय पर और संपूर्ण रूप से पूरा करने के लिए कहा.
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आसपास पर ज्यादा ध्यान
भले ही उभरते देश कहें कि उनके सहायता कार्यक्रमों का वैश्विक लक्ष्य है लेकिन यह साफ देखा जा सकता है कि उनके दान पड़ोसी देशों के लिए ज्यादा है. भारत, संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण अफ्रीका खासतौर से अपने पड़ोसी देशों पर ज्यादा ध्यान देर रहे हैं. चीन, रूस और दक्षिण कोरिया इस मामले में अपवाद हैं.
शांति, लोकतंत्र और प्रशासन
दक्षिण अफ्रीका अपने साथी देशों की तुलना में विकास कार्यक्रमों के लिए कम धन देता है लेकिन पिछले दशक में उसने खुद को एक खास भूमिका में स्थापित किया है. दक्षिण अफ्रीका के कुल सहायता कार्यक्रम बजट का 70 फीसदी हिस्सा अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से की तरफ गया. डेवेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें प्राथमिकता शांति स्थापित करने, लोकतंत्र और प्रशासन के साथ ही मानवीय सहायता के लिए दी गयी.
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भारत के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा समेत कई बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की है. इन में सुब्रमण्यम स्वामी और अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी भी शामिल हैं. इन नेताओं का कहना है कि सरकार के जल्दबाजी में उठाये कुछ कदमों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है और आने वाले दिनों में इसके मंदी का शिकार होने की आशंका है. प्रधानमंत्री ने इन्हीं आलोचनाओं का जवाब देने की कोशिश की है. वित्त मंत्री अरूण जेटली की तरफ से फिलहाल इस बारे में कोई बयान नहीं आया है.