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मोदी युग में मजहबी एकता

२८ मई २०१४

मुहम्मद नसीम अपनी झक सफेद दाढ़ी और गोल टोपी लगाए अहमदाबाद में घूम रहे हैं. भारत के 17 करोड़ मुस्लिमों की तरह वह भी नरेंद्र मोदी की सरकार को थोड़ी सावधानी और थोड़े कौतूहल से देख रहे हैं.

Gebet zum islamischen Opferfest
तस्वीर: picture-alliance/dpa

नसीम की सावधानी की वजह उनके ही राज्य का 2002 का दंगा है, जिसमें 1000 से ज्यादा लोग मारे गए. इनमें से ज्यादातर उन्हीं की बिरादरी के थे. उस वक्त नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे. दंगों से बुरी तरह प्रभावित अहमदाबाद में प्रॉपर्टी डीलिंग करने वाले नसीम कहते हैं, "2002 में जो हुआ, वह अभी भी मुस्लिमों के दिमाग में कौंधता रहता है."

लेकिन वह उन भारतीयों में भी हैं, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार की नाकामियों और स्कैंडलों से परेशान हो चुके हैं, "विकास के मुद्दे पर मोदी का प्रदर्शन यहां अच्छा रहा है. अब कई मुस्लिम तो उन्हें समर्थन भी करने लगे हैं." नसीम का कहना है कि प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए मोदी पर कई जिम्मेदारी भी रहेगी.

मोदी में भरोसा तलाशते मुसलमानतस्वीर: picture-alliance/dpa

भागीदारी में पीछे

देश में मुस्लिमों की बड़ी संख्या प्रतिनिधित्व के रूप में नहीं दिखती. हालांकि भारत में दो राष्ट्रपति मुस्लिम रहे हैं और मौजूदा उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुस्लिम हैं लेकिन संसद में मुस्लिमों की संख्या सिर्फ 20 पर सिमट गई है. सामाजिक आर्थिक पैमानों पर भी मुस्लिम आबादी बहुत अच्छे स्तर पर नहीं है.

बीजेपी की कट्टर हिन्दूवादी छवि की वजह से मुसलमान आम तौर पर कांग्रेस के करीब माने जाते हैं. प्रधानमंत्री मोदी का राजनीतिक जीवन कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ शुरू हुआ. बीजेपी आरएसएस की राजनीतिक शाखा है. आरएसएस पर बार बार भारत में धार्मिक उन्माद फैलाने के आरोप लगते रहे हैं. स्वतंत्रता के बाद से इस पर तीन बार पाबंदी भी लग चुकी है. पहली बार जब नाथूराम गोडसे ने 1948 में महात्मा गांधी की हत्या की, दूसरी बार इमरजेंसी के दौरान 1975 में और तीसरी बार बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 1992 में. हालांकि बाद में ये पाबंदियां खत्म कर दी गईं.

आरएसएस और मोदी

इस बात का अंदेशा जताया जाता रहा है कि मोदी की नीतियां आरएसएस से प्रभावित होंगी. हालांकि वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी कहती हैं कि मोदी स्वतंत्र और स्वच्छंद तरीके से काम करने के लिए जाने जाते हैं और वह किसी के दबाव में नहीं आएंगे, "आरएसआस उनके साथ संपर्क और सलाह मशविरा करता रहेगा लेकिन उनके छोटे छोटे फैसलों को प्रभावित नहीं कर सकता है. इसके अलावा सरकार चलाने के लिए भी मोदी को तटस्थ रहना होगा."

मोदी की कट्टर हिन्दूवादी छवितस्वीर: Reuters

भारत में बीजेपी के उभार का प्रमुख कारण अयोध्या की बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना भी रहा है. हिन्दू संगठनों का मानना है कि उस जगह पर कभी राम मंदिर हुआ करता था. 1992 में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के सामने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया, जिसके बाद देश भर में हुए दंगों में 2000 लोग मारे गए. बीजेपी के इस बार के घोषणापत्र में यहां विशाल मंदिर के निर्माण की बात कही गई है. भारत की धर्मनिरपेक्ष आबादी के लिए यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

कांग्रेस से निराशा

लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस की पिछली 10 साल की सरकार से लोग निराश हो चुके थे. गुवाहाटी के स्कूल टीचर अहमद हुसैन कहते हैं, "लोग भ्रष्टाचार और महंगाई से परेशान हो चुके थे. इसलिए धर्म की परवाह किए बगैर उन्होंने बदलाव का फैसला किया."

कांग्रेस के कार्यकाल में ही भारत का विकास दर लगभग 10 फीसदी पहुंच गया था, जो अब घट कर पांच फीसदी से भी कम हो चुका है. हालांकि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी भी जिम्मेदार है. लखनऊ में सरकारी स्कूल से रिटायर हुए शिक्षक मोनीस खान कहते हैं, "हमें मोदी का इतिहास पता है. वह अपनी जड़ से सांप्रदायिक हैं. हमें उनसे डर नहीं है लेकिन हम उन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. हमें उनके हर कदम पर नजर रखनी होगी."

एजेए/एमजे (एपी)

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