मोदी शी की मुलाकात से पहले भारत चीन की निगाहें टेढ़ी
१० अक्टूबर २०१९
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के कश्मीर पर रुख के समर्थन पर भारत ने प्रतिक्रिया दी है. चीनी राष्ट्रपति शुक्रवार से भारत के अनौपचारिक दौरे पर आ रहे हैं.
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पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बीजिंग दौरे के खत्म होने से पहले चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन कश्मीर पर बारीकी से निगाह रखा रहा है और सच्चाई साफ है. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक शी जिनपिंग ने यह भी कहा, "चीन पाकिस्तान को उसके वैध अधिकारों की रक्षा के लिए समर्थन देता है और उम्मीद करता है कि संबंधित पक्ष अपने विवादों को शांतिपूर्ण बातचीत से सुलझा लेंगे." पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ जारी संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि चीन, "ऐसी किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करता है जो स्थिति को और जटिल बना दे" जबकि विवाद को, "सही ठंग से शांतिपूर्ण तरीके से यूएन चार्टर, संबंधित सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के जरिए सुलझाया जाना चाहिए."
भारत के विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है, "भारत की स्थिति अटल और स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है. चीन हमारी स्थिति के बारे में जानता है. दूसरे देशों को भारत के अंदरूनी मामलों में बयान नहीं देना चाहिए"
भारत और चीन के रिश्तों में थोड़ा बहुत तनाव तो रहता ही है और हाल में कश्मीर को लेकर चीन का पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में समर्थन देने से यह थोड़ा और बढ़ गया है. इसके साथ ही चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना भी इस तनाव को हवा दे रही है. इस परियोजना का एक हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर से भी गुजरता है जिस पर भारत की भी दावेदारी है. इतना ही नहीं अगस्त में जब भारत ने लद्दाख को जम्मू कश्मीर से बांट कर अलग राज्य बना दिया तो चीन की चिंता बढ़ गई. लद्दाख के कुछ हिस्सों पर चीन भी दावा करता है.
लद्दाख चीन के उत्तर में अशांत क्षेत्र शिनजियांग और पूर्व में तिब्बत से लगता है. भारत भी लद्दाख के उस हिस्से पर अपना दावा जताता है जो फिलहाल चीन के कब्जे में है.
ऐसा लग रहा था कि शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2018 में चीन के वुहान में हुए पहले अनौपचारिक सम्मेलन के बाद आपसी विवादों को किनारे रख दिया था. हालांकि कश्मीर में स्थिति बदलने के बाद से दोनों के रिश्तों में गर्मजोशी नहीं नजर आ रही है. लंदन के किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने वाले प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "साफ है कि इस यात्रा के इर्द गिर्द जिस तरह की रोशनी दिख रही है वह बहुत उत्साहजनक नहीं है. अगर पूरे तौर पर देखें तो हलचल ज्यादा विवाद बढ़ाने वाली ही दिख रही है." भारत चार देशों के उस संगठन में भी अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है जिसे माना जाता है चीन के बढ़ते प्रभाव को बेअसर करने के लिए बनाया गया है. इसमें भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. भारत ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एक सैन्य अभ्यास भी किया था जो चीन के साथ उसके संबंधों की एक और दुखती रग है. चीन अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को भी अपना बताता है.
भारत की यात्रा के बाद चीनी राष्ट्रपति दो दिन के लिए नेपाल भी जाने वाले हैं. बीते दो दशकों में किसी चीनी राष्ट्रपति की यह पहली नेपाल यात्रा है. भारत को नेपाल में भी चीन की वजह से अपने प्रभाव के कमजोर पड़ने की आशंका है.
एनआर/आईबी(एएफपी)
भारत चीन का सीमा विवाद
भारत और चीन का सीमा विवाद दशकों पुराना है. तिब्बत को चीन में मिलाये जाने के बाद यह विवाद भारत और चीन का विवाद बन गया. एक नजर विवाद के अहम बिंदुओं पर.
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लंबा विवाद
तकरीबन 3500 किलोमीटर की साझी सीमा को लेकर दोनों देशों ने 1962 में जंग भी लड़ी लेकिन विवादों का निपटारा ना हो सका. दुर्गम इलाका, कच्चा पक्का सर्वेक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यवादी नक्शे ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच सीमा पर तनाव उनके पड़ोसियों और दुनिया के लिए भी चिंता का कारण है.
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अक्साई चीन
काराकाश नदी पर समुद्र तल से 14000-22000 फीट ऊंचाई पर मौजूद अक्साई चीन का ज्यादातर हिस्सा वीरान है. 32000 वर्ग मीटर में फैला ये इलाका पहले कारोबार का रास्ता था और इस वजह से इसकी काफी अहमियत है. भारत का कहना है कि चीन ने जम्मू कश्मीर के अक्साई चीन में उसकी 38000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है.
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अरुणाचल प्रदेश
चीन दावा करता है कि मैकमोहन रेखा के जरिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में उसकी 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा ली है. भारत इसे अपना हिस्सा बताता है. हिमालयी क्षेत्र में सीमा विवाद को निपटाने के लिए 1914 में भारत तिब्बत शिमला सम्मेलन बुलाया गया.
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किसने खींची लाइन
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मैकमोहन रेखा खींची जिसने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा का बंटवारा कर दिया. चीन के प्रतिनिधि शिमला सम्मेलन में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत करने या उसे मान्यता देने से मना कर दिया. उनका कहना था कि तिब्बत चीनी प्रशासन के अंतर्गत है इसलिए उसे दूसरे देश के साथ समझौता करने का हक नहीं है.
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अंतरराष्ट्रीय सीमा
1947 में आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन रेखा को आधिकारिक सीमा रेखा का दर्जा दे दिया. हालांकि 1950 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण के बाद भारत और चीन के बीच ऐसी साझी सीमा बन गयी जिस पर कोई समझौता नहीं हुआ था. चीन मैकमोहन रेखा को गैरकानूनी, औपनिवेशिक और पारंपरिक मानता है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा का दर्जा देता है.
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समझौता
भारत की आजादी के बाद 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत के इलाके में व्यापार और आवाजाही के लिए समझौता हुआ. इस समझौते के बाद भारत ने समझा कि अब सीमा विवाद की कोई अहमियत नहीं है और चीन ने ऐतिहासिक स्थिति को स्वीकार कर लिया है.
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चीन का रुख
उधर चीन का कहना है कि सीमा को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ और भारत तिब्बत में चीन की सत्ता को मान्यता दे. इसके अलावा चीन का ये भी कहना था कि मैकमोहन रेखा को लेकर चीन की असहमति अब भी कायम है.
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सिक्किम
1962 में दोनों देशों के बीच लड़ाई हुई. महीने भर चली जंग में चीन की सेना भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुस आयी. बाद में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वापस लौटी. यहां भूटान की भी सीमा लगती है. सिक्किम वो आखिरी इलाका है जहां तक भारत की पहुंच है. इसके अलावा यहां के कुछ इलाकों पर भूटान का भी दावा है और भारत इस दावे का समर्थन करता है.
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मानसरोवर
मानसरोवर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ है जिसकी यात्रा पर हर साल कुछ लोग जाते हैं. भारत चीन के रिश्तों का असर इस तीर्थयात्रा पर भी है. मौजूदा विवाद उठने के बाद चीन ने श्रद्धालुओं को वहां पूर्वी रास्ते से होकर जाने से रोक दिया था.
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बातचीत से हल की कोशिश
भारत और चीन की ओर से बीते 40 सालों में इस विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कई कोशिशें हुईं. हालांकि इन कोशिशों से अब तक कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ. चीन कई बार ये कह चुका है कि उसने अपने 12-14 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद बातचीत से हल कर लिए हैं और भारत के साथ भी ये मामला निबट जाएगा लेकिन 19 दौर की बातचीत के बाद भी सिर्फ उम्मीदें ही जताई जा रही हैं.