केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान का कहना है कि आगामी आम चुनाव से पहले किसी नए सियासी गठजोड़ की संभावना नहीं है. उन्होंने विपक्षी मोर्चे में शामिल होने के लिए एनडीए छोड़ने की संभावना भी साफ तौर पर खारिज कर दी है.
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उन्होंने कहा कि विपक्ष के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है. विपक्ष विभाजित है और जहां तक सपा-बसपा की एकता का सवाल है, जिसका बहुत बखान किया जा रहा है, आम चुनाव में यह साथ नहीं रहेगा. पासवान मानते हैं कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के पृष्ठभूमि में होते हुए भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में कोई आकर्षण नहीं है.
बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पासवान ने माना कि चुनाव वाले वर्ष में छोटे मुद्दे भी बड़े बन जाते हैं, जिसे सरकार विरोधी लहर करार दिया जाता है और सरकार को जमीनी स्तर पर इसे बदलने की जरूरत है. पासवान ने आईएएनएस से एक साक्षात्कार में कहा, "मेरे जैसे लोग आत्मसम्मान की राजनीति करते हैं. जिनमें भी आत्मसम्मान है, वे (राजद प्रमुख) लालू प्रसाद के साथ नहीं रह सकते. कांग्रेस में अगर कोई राहुल गांधी से मिलना चाहता है तो उसे तीन महीने इंतजार करना पड़ता है. उसके बाद भी मुलाकात होगी, यह निश्चित नहीं है."
अगले साल होने जा रहे आम चुनाव से पहले, खासतौर पर हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा के साथ आने के बाद राजनीतिक दलों के नए गठजोड़ की संभावना के बारे में पूछे जाने पर पासवान ने एनडीए छोड़कर किसी भाजपा विरोधी, कांग्रेस विरोधी मोर्चे का हाथ थामने की संभावना से स्पष्ट इंकार किया.
उन्होंने जोर देकर कहा, "कोई दुविधा नहीं है. एनडीए को छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता." पासवान ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन नहीं होगा. पिछले संसदीय चुनाव में उन्होंने स्वतंत्र रूप से राज्य की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन गठबंधन की स्थिति में दोनों पार्टियों को 40-40 सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा.
पासवान ने सवाल उठाया, "उनका क्या होगा, जिन्हें एक खास सीट के लिए टिकट हासिल करने के लिए अपनी पूरी जिंदगी बिताने के बावजूद टिकट नहीं मिलेगा? वे चुप नहीं रहेंगे. जाहिर है कि वे दूसरों की जीत की संभावना का भी बंटाधार कर देंगे."
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Kumar
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. K. Singh
बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
तस्वीर: AP
गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
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हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Sharma
गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
तस्वीर: Reuters
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa
नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
तस्वीर: DW/A. Anil Chatterjee
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उन्होंने कहा कि करीब 25 प्रतिशत मतदाता जो चुनाव से पहले अपना मन बदलते हैं, वे एनडीए के पक्ष में वोट देंगे, क्योंकि वे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखेंगे, क्योंकि विपक्ष में इस पद के लिए करीब आधा दर्जन नेता हैं. उन्होंने कहा, "मतदाता देखेंगे कि यहां एक ओर मोदी हैं और दूसरी ओर विपक्ष में राहुल गांधी, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू और कई चेहरे हैं. ऐसे हालात में मतदाता कभी भी अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहेंगे और मोदीजी के पक्ष में वोट देंगे."
मोदी के 'अच्छे दिन' के वादे के बारे में उन्होंने कहा, "जो लोग नरेंद्र मोदी से नाराज हैं, उनके पास क्या विकल्प हैं? वे किसे समर्थन देंगे? क्या राजीव गांधी ने वे वादे पूरे किए थे, जो उन्होंने किए थे..मोदी का कोई विकल्प नहीं है. प्रधानमंत्री के पद के लिए कुर्सी खाली नहीं है."
"मोदी सरकार का हनीमून पीरियड खत्म, लेकिन प्रेमप्रसंग बरकरार"
एनडीए सरकार के सत्ता में तीन साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी बनी हुई है. खैर, ये दावा हमारा नहीं बल्कि थिंक टैंक पियू रिसर्च की स्टडी में किया जा रहा है.जानिये क्या है रिपोर्ट
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दस में से नौ की पहली पसंद
रिपोर्ट में कहा गया है, "मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के अब तक तीन साल बीत चुके हैं, जिसके बाद यह कहा जा सकता है कि सरकार का हनीमून पीरियड भले ही खत्म हो गया हो लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में जनता के साथ उनका प्रेम प्रसंग बना हुआ है." सर्वे के मुताबिक भारत में हर दस में से नौ व्यक्ति नरेंद्री मोदी के प्रति सकारात्मक राय रखता है.
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सर्वे में कितने लोग थे शामिल
इस रिपोर्ट को 21 फरवरी से लेकर 10 मार्च, 2017 के दौरान तैयार किया गया है. इसमें करीब 2464 भारतीयों को शामिल किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी की लोकप्रियता उत्तर भारत में जस की तस बनी हुई है. देश के पश्चिमी और दक्षिणी इलाकों में इसमें बढ़त देखने को मिली है. हालांकि देश के पूर्वी इलाके में मोदी की लोकप्रियता घटी है.
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कैसा है राज्यों में हाल
सर्वे की माने तो मोदी की लोकप्रियता देश भर में बनी हुई है. दक्षिण भारतीय राज्यों मसलन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगना समेत देश के पश्चिमी राज्यों मसलन महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ में मोदी के नेतृत्व को लेकर सकारात्मक रुझान नजर आता है. कुछ इसी तरह का रुझान बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दिखता है.
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मोदी बनाम गांधी
सर्वे के मुताबिक मोदी को भारतीय राजनीति का अभी का सबसे लोकप्रिय चेहरा माना जा सकता है. इस सर्वे में मोदी को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मुकाबले 31 प्वांइट अधिक मिले हैं. वहीं राहुल गांधी से 30 प्वाइंट आगे हैं. मोदी के अलावा इन दोनों नेताओं की लोकप्रियता घटी है.
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मोदी की साख
सर्वे के मुताबिक जनता का मानना है कि मोदी के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था की गति ठीक रही. 10 मे 8 के मुताबिक देश की आर्थिक परिस्थितियां बेहतर हैं. 2014 में हुए आम चुनावों के बाद से अब तक देश के आर्थिक हालातों को बेहतर बताने वालों में 19 फीसदी की वृद्धि हुई है. साथ ही जो अर्थव्यवस्था को बहुत अच्छा कहने वाले पिछले तीन साल में तिगुना हो गये हैं. हर दस में से सात का मानना है कि चीजें सही दिशा में हैं.
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घरेलू मोर्चे पर सफल मोदी
सर्वे में कहा गया है कि मोदी की लोकप्रियता का राज घरेलू मोर्चे पर मिल रही सफलता को दिया जा सकता है. हर 10 भारतीय में से 7 भारतीय कहते हैं कि मोदी ने गरीबी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जो नीति अपनायी है वह अच्छी है. इसके साथ ही लोग भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ भी मोदी सरकार द्वारा अपनायी जा रही नीतियों की तारीफ कर रहे हैं.
तस्वीर: PIB/Goverment of India
केजरीवाल भी शामिल
लोकप्रियता के मामले में मोदी समेत, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को इस सर्वे में जगह मिली है. सर्वे में बताया गया है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता में गिरावट आयी है. साल 2016 में केजरीवाल की लोकप्रियता 65 फीसदी थी, 2015 में यह आंकड़ा 58 फीसदी का था, लेकिन इस वर्ष यह लोकप्रियता महज 39 फीसदी ही रही.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Pal Singh
मोदी की चुनौतियां
इस लोकप्रियता के बीच मोदी के समक्ष चुनौतियां भी नजर आ रही हैं. सर्वे के मुताबिक 73 फीसदी भारतीय युवा, रोजगार के अवसरों में कमी को एक बड़ी समस्या मान रहे हैं. इसके अलावा भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर चुनौती बनी रह सकती है क्योंकि 10 में 7 भारतीय ही इस मोर्चे पर मोदी के रुख की सराहना करते हैं.
तस्वीर: AP
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पासवान ने कहा कि जब सरकार चुनावी वर्ष में होती है तो छोटे मुद्दों को भी राष्ट्रीय चिंता का विषय बना दिया जाता है और इसे सरकार के खिलाफ लहर करार दिया जाता है. उन्होंने कहा, "सरकार को जमीनी स्तर पर अपने काम का प्रचार करना चाहिए. धारणा को बदलने की जरूरत है. इस सरकार ने मुस्लिमों के खिलाफ कुछ नहीं किया, लेकिन धारणा बनी हुई है कि यह सरकार मुस्लिम विरोधी है."
प्रधानमंत्री के विवादास्पद मुद्दों पर चुप्पी साधने के बारे में पूछे जाने पर पासवान ने कहा, "ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री हर मुद्दे पर चुप रहते हैं. उन्होंने हिंदुत्व पर कुछ नहीं कहा. प्रधानमंत्री बनने के बाद जब वह पहली बार संसद गए थे तो उन्होंने कहा था कि हमारा संविधान ही हमारा धर्म है."
बिहार में हाल ही में विधानसभा और लोकसभा उपचुनावों में भाजपा-जद (यू) की हार पर उन्होंने कहा कि इसमें सहानुभूति की लहर ने उम्मीदवारों की जीत की बड़ी भूमिका निभाई. लालू प्रसाद को बिहार की जनता की सहानुभूति मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा, "कुछ ही दिनों में लोग उन्हें भूल जाएंगे. भारत में लोग आपातकाल को भूल गए थे. ओम प्रकाश चौटाला को जब जेल हुई तो हरियाणा में क्या हुआ? लोग उन्हें भूल गए. बिहार में नया नेतृत्व उभरेगा."
उन्होंने कहा कि जहां तक एनडीए का सवाल है "हम एकजुट हैं. नीतीश का अपना वोट बैंक है. बिहार और उत्तर प्रदेश में जाति सबसे बड़ा मुद्दा है. बिहार में अगर अनुसूचित जाति के लोग एनडीए का समर्थन नहीं करते हैं, तो एनडीए कुछ नहीं कर सकता. लेकिन अगर अनुसूचित जातियां उनका साथ देती हैं तो समस्या होगी. बिहार में विकास का मुद्दा दोयम दर्जे पर आता है, वहां जाति जैसे सामाजिक मुद्दे सबसे ऊपर होते हैं."
- वी.एस. चंद्रशेखर और ब्रजेंद्र नाथ सिंह (आईएएनएस)
भारत का नया कैबिनेट
शपथ ग्रहण के बाद भारत में मंत्रियों को उनके विभाग बांट दिए गए हैं. बहुत से मंत्रालय मोदी ने अपने पास रखे हैं, जबकि कुछ मंत्रालयों को लेकर चर्चा भी हो रही है. देखते हैं कैसी है मोदी की टॉप टीम.
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भारत का नया कैबिनेट
शपथ ग्रहण के बाद भारत में मंत्रियों को उनके विभाग बांट दिए गए हैं. बहुत से मंत्रालय मोदी ने अपने पास रखे हैं, जबकि कुछ मंत्रालयों को लेकर चर्चा भी हो रही है. देखते हैं कैसी है मोदी की टॉप टीम.
तस्वीर: Reuters
प्रधानमंत्री
सरकार के प्रमुख नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, कार्मिक, जन शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय अपने पास रखे हैं. हर मंत्रालय के अहम नीतिगत फैसले पर उनकी राय जरूरी होगी.
तस्वीर: Reuters
वित्त, कॉरपोरट और रक्षा
अरुण जेटली वित्त मंत्री बने हैं. जेटली के सामने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी है. विकास दर 4.5 फीसदी रह गई है. चुनवी भाषणबाजी के बाद अब असल में महंगाई और भ्रष्टाचार को काबू करना होगा. वह रक्षा और कॉरपोरट मामलों के मंत्री भी हैं.
तस्वीर: Sam Panthak/AFP/GettyImages
विदेश और एनआरआई
सुषमा स्वराज के सामने पड़ोसी देशों से सीमा विवाद सुलझाने की चुनौती है. 30 साल बाद पूर्ण बहुमत में आई किसी पार्टी के पास मौका है कि वो विवादों का पक्का हल खोजे. कूटनीति के सहारे उन्हें भारत के आर्थिक हितों का भी ख्याल रखना होगा.
तस्वीर: AP
गृह
भारत में लंबे समय से पुलिस सुधारों की बात हो रही है. बीजेपी ने सीबीआई के दुरुपयोग की बात बहुत बार उठाई है. अब देखना है कि राजनाथ सिंह इस पर नई नीति अपनाते हैं या नहीं. सांप्रदायिक सद्भाव भी गृह मंत्रालय के जिम्मे होगा.
तस्वीर: Reuters
रेल
दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भारत में है. लेकिन सबसे ज्यादा रेल हादसे भी वहीं होते हैं. नए पटरियां नहीं बिछ रही हैं. मोदी ने बुलेट ट्रेन का वादा किया है. रेल मंत्री सदानंद गौड़ा के सामने इन चुनौतियों के अलावा सस्ता टिकट रखने की भी चुनौती होगी.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
सड़क परिवहन व जहाजरानी
भारत को सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से तेज तर्रार काम की उम्मीद है. बीते पांच साल में चार लेन वाले हाइवे का निर्माण धीमा पड़ गया. सड़कों की क्वालिटी आम तौर पर खराब होती है. सड़क दुर्घटनाओं के मामले में भी भारत सबसे जोखिम भरा है. जरूरत सड़कों को अच्छा और सुरक्षित बनाने की है. नदी मार्गों की योजनाएं भी जस की जस लटकी हुई हैं
तस्वीर: AP
जल संसाधन और गंगा पुनर्जीवन
उमा भारती को यह जिम्मेदारी मिली है. भारत की कई सरकारों ने नदियों की सफाई के नाम पर अरबों रुपये फूंके हैं. अब देखना उमा भारती पुराने ढर्रे पर चलती हैं या नया करती हैं. उनके सामने नदियों को गंदा करने वाले उद्योगों को सुधारने की भी चुनौती होगी.
तस्वीर: AP
अल्पसंख्यक मामले
कभी कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आई नजमा हेपतुल्लाह अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री बनाई गई हैं. आरएसएस, बजरंग दल और वीएचपी जैसे कट्टर संगठनों के दबाव से निपटते हुए नजमा को अल्पसंख्यक के हितों की हिफाजत करनी होगी.
तस्वीर: Adalberto Roque/AFP/Getty Images
स्वास्थ्य
दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने से चूके हर्षवर्धन के सामने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने की चुनौती है. देश के दूर दराज के इलाकों में अच्छे अस्पतालों और डॉक्टरों की भारी कमी है. सरकारी अस्पतालों की हालत बुरी है. जीवनशैली में बदलाव से नौजवान बीमार हो रहे हैं.
तस्वीर: RAVEENDRAN/AFP/Getty Images
मानव संसाधन विकास
अभिनेत्री स्मृति ईरानी यह मंत्रालय संभालेंगी. भारत में शिक्षा को लेकर बड़ा असमंजस है. सीबीएसई, आईसीएससी और राज्य बोर्डों के सिलेबस एक दूसरे से अलग हैं. इसकी वजह से परेशानियां भी आती हैं. उच्च शिक्षा के मामले भी देश पिछड़ रहा है.
तस्वीर: PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images
सूचना प्रसारण और पर्यावरण
भारत प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है. औद्योगिक कचरे की जवाबदेह निकासी के अभाव में पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. शहरों की आबोहवा जहरीली होती जा रही है. विकास में बाधा डाले बिना टिकाऊ पर्यावरण बनाए रखना पर्यावरण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रकाश जावड़ेकर के इम्तिहान जैसा है. जावड़ेकर ही सूचना प्रसारण मंत्रालय भी संभालेंगे.
तस्वीर: Manpreet Romana/AFP/Getty Images
नागरिक उड्डयन
भारत एक विशाल देश है, जहां तेज रफ्तार परिवहन चुनौती है. ट्रेनों में रिजर्वेशन के लिए तमाम जतन करने पड़ते हैं. हवाई परिवहन को अब भी संभ्रांत तबके से जोड़ा जाता है. अशोक गजपति राजू अगर इसमें सुधार करें, तो क्रांति हो सकती है. जनता व उद्योगों को तेज रफ्तार सेवाएं मिल सकती हैं.
तस्वीर: PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images
खाद्य एंव उपभोक्ता
लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान यह मंत्रालय संभालेंगे. आम तौर पर हर सरकार में मंत्री रहने वाले पासवान के सामने कंपनियों को जवाबदेह बनाने की चुनौती है. यूपीए-1 में पासवान ने दवाओं में एमआरपी लिखवाने का फैसला किया था.
तस्वीर: UNI
शहरी विकास और संसदीय मामले
यह मंत्रालय एम वैंकया नायडू को दिया गया है. मंत्रालय में शहरों से गरीबी खत्म करने का शब्द भी जोड़ा गया है. राह बाधाओं से भरी है. चार महानगरों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. नायडू को हर सुविधा के साथ नए शहर बसाने होंगे. साथ ही वह संसदीय मामलों का मंत्रालय भी देखेंगे.
तस्वीर: INDRANIL MUKHERJEE/AFP/Getty Images
महिला एवं बाल कल्याण
मेनका के सामने कुपोषण और प्रसव के दौरान महिलाओं को सुरक्षित सेवाएं मुहैया कराने की चुनौती होगी. महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए उन्हें बाकी मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करना होगा.