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नहीं चाहिए साहित्य अकादमी पुरस्कार

ईशा भाटिया७ अक्टूबर २०१५

जाने माने लेखक अशोक वाजपेयी और नयनतारा सहगल ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है. दोनों ने दादरी मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर नाराजगी जताई है.

Indien Nayantara Sahgal
तस्वीर: CC-BY-Ramesh lalwani

नयनतारा सहगल ने प्रधानमंत्री मोदी के "मेक इन इंडिया" नारे पर तंज कसते हुए "अनमेकिंग ऑफ इंडिया" नाम से बयान जारी किया है. लेखिका सहगल ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के दादरी में एक मुस्लिम व्यक्ति की भीड़ द्वारा हत्या पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर चिंता जताई है. इसके अलावा उन्होंने प्रसिद्ध कन्नड लेखक एमएम कालबुर्गी की हत्या पर भी प्रधानमंत्री तथा साहित्य अकादमी द्वारा कोई आलोचना ना किए जाने पर भी नाराजगी जताई. उनका कहना है कि मोदी की हिंदुत्व विचारधारा हिंदुओं को बदनाम कर रही हैं, "मैं खुद भी हिंदू हूं और मुझे यह देख कर दुख होता है."

सहगल के अलावा हिन्दी के जाने माने लेखक अशोक वाजपेयी ने भी यही कदम उठाया है. टीवी चैनल एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "अब समय आ गया है कि लेखक एकजुट होकर कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाएं. लेखक के पास विरोध करने का यही तरीका है." सहगल की तरह वाजपेयी ने भी मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया है, "ऐसे संवेदनशील मामले में इतने मुखर पीएम चुप क्‍यों हैं?"

अशोक वाजपेयी को इससे पहले 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. उनके अलावा कन्नड़ भाषा के छह लेखक भी प्रांतीय अकादमी द्वारा दिये गए पुरस्कार लौटा चुके हैं.

ये सभी कन्नड़ लेखक कालबुर्गी की हत्या के बाद सरकार द्वारा जांच में ढिलाई बरतने से नाराज हैं. कालबुर्गी धार्मिक अंधविश्वास के खिलाफ लिखते थे. हत्या से एक महीना पहले तक उन्हें पुलिस सुरक्षा भी दी जा रही थी. पिछले तीन सालों में यह तीसरा मामला है जब किसी विद्वान की कट्टरपंथ के खिलाफ बोलने पर जान ली गयी.

जहां एक तरफ इस कदम के लिए 88 वर्षीय सहगल की खूब तारीफ हो रही है, वहीं दूसरी ओर इस बात पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि पिछली बार 1986 में उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया. दरअसल नयनतारा सहगल भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भांजी हैं. उन्हें राजनीतिक मुद्दों पर खुल कर बोलने के लिए जाना जाता है. 70 के दशक में इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की भी उन्होंने कड़ी आलोचना की थी. हालांकि 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के दो साल बाद जब उन्हें पुरस्कार दिया गया, तब उन्होंने उसे स्वीकारा था. वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी सवाल किया है कि क्या ये उनके दोहरे मानदंड हैं.

इस बीच दादरी मामले में पुलिस ने तीन नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की सिफारिश की है. पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, भारतीय जनता पार्टी के विधायक संगीत सोम और बीएसपी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर बिसाहड़ा गांव में धारा 144 के उल्लंघन का आरोप लगाया है. दादरी के इसी गांव में पिछले सप्ताह गोवध की अफवाह के बाद उग्र भीड़ ने 50 साल के मोहम्मद अखलाक की पीट पीट कर हत्या कर दी थी. पुलिस का कहना है कि नेताओं को केवल पीड़ित के परिजनों से मिलने की अनुमति दी गई थी लेकिन उन्होंने जनसभाओं को भी संबोधित किया. संगीत सोम ने तो बेहद भड़काऊ भाषण भी दिया.

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