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मोबाइल कंपनियों को डीजल सब्सिडी पर सवाल

६ जून २०११

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश मोबाइल कंपनियों को डीजल की कीमतों में मिलने वाली सब्सिडी से बिल्कुल खुश नहीं हैं. उन्होंने महंगी गाड़ियां रखने वालों को सस्ता डीजल देने पर भी एतराज जताया है.

Der indische Umweltminister Jairam Ramesh bei einer Veranstaltung.
तस्वीर: UNI

विश्व पर्यावरण दिवस पर रमेश ने कहा कि इस सुविधा का फायदा असल में दूर दराज के जंगली इलाकों में रहने वाले लोगों को मिलना चाहिए ताकि उन्हें सस्ती रसोई गैस मिल सके और वे खाना पकाने के लिए पेड़ों को न जलाएं.

पुराना विवाद

पर्यावरण मंत्री पहले भी महंगी गाड़ियां चलाने वालों को सस्ता ईंधन देने पर सवाल उठा चुके हैं. रविवार को उन्होंने कहा, "डीजल सब्सिडी कृषि क्षेत्र के लोगों के लिए दी गई थी. लेकिन आज इस सब्सिडी का फायदा महंगी गाड़ियां चलाने वाले लोग उठा रहे हैं. या फिर मेरे और आप जैसे लोग उठा रहे हैं जो मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं."

कुछ महीने पहले भी रमेश ने ऐसा ही बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया था. उन्होंने कहा था कि डीजल पीने वाली एसयूवी गाड़ियां भारतीय सड़कों पर चलाना किसी अपराध से कम नहीं है. रविवार को उन्होंने कहा, "हमारे देश में साढ़े चार लाख मोबाइल टावर हैं. ये सभी डीजल से चलते हैं. तब डीजल पर सब्सिडी क्यों दी जानी चाहिए?"

नई बात

विश्व पर्यावरण दिवस पर हरित अर्थव्यवस्था और जंगल नाम की रिपोर्ट जारी की गई. हाल ही में स्वयंसेवी संस्था ग्रीनपीस के अध्ययन में पता चला कि टेलीकॉम कंपनियां मोबाइल टावर चलाने के लिए जो डीजल इस्तेमाल कर रही हैं, उससे भारत सरकार को अंदाजन 2600 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.

रसोई गैस पर सब्सिडी के लिए तर्क देते हुए जयराम रमेश ने कहा कि देश के एक लाख 72 हजार गांव जंगलों में या उनके किनारे बसे हैं. पेड़ों को बचाने के लिए सरकार सबसे अहम काम यह कर सकती है कि इन सभी गांवों तक सस्ती रसोई गैस पहुंचाई जाए. उन्होंने कहा कि ये गांव खाना पकाने के लिए जंगली लकड़ी पर निर्भर हैं जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य की समस्याएं भी हो रही हैं. उन्होंने कहा, "इसलिए सब्सिडी के साथ उन्हें रसोई गैस मुहैया कराना सामाजिक रूप से बहुत जरूरी है."

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः आभा एम

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