एवरेस्ट से सकुशल वापस आए अनुभवी पर्वतारोही रास्तों में होने वाले हादसों और मौतों के लिए ट्रेनिंग की कमी को जिम्मेदार मानते हैं. पर्वतारोही मानते हैं कि परमिट दिए जाने से पहले उम्मीदवारों की योग्यता की जांच होनी चाहिए.
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एवरेस्ट फतह करने गए पर्वतारोहियों के साथ होने वाले हादसों की खबरें आना अब शायद आम हो गया है. आंखों में सपने और दिल में जोश भरे जब पर्वतारोही अपनी यात्रा के लिए निकलते हैं तो उन्हें शायद इस बात का वास्तविक अंदाजा नहीं होता कि रास्तों पर बिछी बर्फ कोई मखमली नहीं बल्कि पथरीला अहसास कराएगी.
अमीषा चौहान भी एक ऐसी ही पर्वतारोही हैं जो एवरेस्ट के रास्तों में मिले "ट्रैफिक जाम" में फंसने के बाद सीधे अस्पताल पहुंच गईं. अमीषा फ्रॉस्टबाइट का शिकार हुईं. अब वह अपनी इस तकलीफ का इलाज करा रही हैं. एवरेस्ट पर होने वाले हादसों को लेकर अमीषा कहती हैं कि बुनियादी प्रशिक्षण के बिना एवरेस्ट की चोटी पर जाने वालों को रोका जाना चाहिए. अमीषा ने बताया, "चढ़ाई के दौरान मुझे ऐसे कई पर्वतारोही मिले जिनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं था और वे पूरी तरह अपने शेरपा गाइड पर निर्भर थे."
उन्होंने बताया कि जिनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं होती वे गलत निर्णय लेते हैं और अपने साथ-साथ शेरपा की जिंदगी को भी खतरे में डालते हैं. चढ़ाई के रास्ते पर मिलने वाली भीड़ को लेकर अमीषा बताती हैं, "मुझे नीचे आने के लिए 20 मिनट का इंतजार करना पड़ा, लेकिन वहां कई ऐसे लोग थे जो ना जाने कितने घंटों से फंसे थे."
अमीषा मानती हैं कि प्रशासन को पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पर जाने की इजाजत देने से पहले उनकी योग्यता जांचनी चाहिए. साथ ही सिर्फ प्रशिक्षित पर्वतारोहियों को ही जाने की इजाजत मिलनी चाहिए. पिछले दो हफ्तों में तकरीबन दस लोगों की जान चली गई. कुछ जानें खराब मौसम के चलते, कुछ ऑक्सीजन खत्म होने के चलते तो कुछ की मौत ठंडे रास्तों में फंसे रहने के कारण हो गई. अमीषा बताती हैं कि कई बार पर्वतारोही स्वयं की लापरवाही के चलते जान गवां बैठते हैं. ऑक्सीजन खत्म होने के बावजूद वे चोटी पर पहुंचने की जिद करते हैं और अपनी जिंदगी को खतरे में डालते हैं.
पर्वतारोहियों को डराने वाली चोटियां
पहाड़ की चोटी पर पहुंचकर झंडा फहराना, ऐसा ख्वाब कई लोग देखते हैं. लेकिन दर्जनों लोग उन पहाड़ों से कभी लौटकर नहीं आ पाते.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J-P Clatot
10. डेनाली
6,194 मीटर की इस चोटी को माउंट मैकिंले के नाम से भी जाता है. यह उत्तरी अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी है. इस पर चढ़ने में 50 फीसदी पर्वतारोही ही कामयाब हो पाते हैं. यह पहाड़ अब तक 100 से ज्यादा पर्वतारोहियों की जान ले चुका है.
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09. माउंट एवरेस्ट
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर अब तक 1,500 से ज्यादा लोग चढ़ चुके हैं. ऑक्सीजन की कमी, बदलते मौसम और दर्रों से घिरी इस चोटी को छूने के चक्कर में अब तक 290 से ज्यादा पर्वतारोही मारे जा चुके हैं.
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08. बाइंथा ब्राक
गिलगित बल्तिस्तान की इस चोटी को भी दुनिया के सबसे दुश्वार पर्वत शिखरों में गिना जाता है. 1977 में इंसान ने पहली बार इस पर चढ़ाई की. उसके बाद 2001 में जाकर कोई पर्वतारोही इस पर चढ़ने में सफल रहा. इस चोटी से उतरना बहुत ही मुश्किल है.
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07. माउंट विनसन
यह अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी उंचाई भले ही 4,892 मीटर हो. लेकिन यह धरती के सबसे दुश्वार इलाके में है. इसकी तरफ बढ़ने में अगर जरा भी चूक हुई तो राहत और बचाव की उम्मीद भी बेईमानी है.
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06. मैटरहॉर्न
आप्ल्स की सबसे ऊंची चोटी न होने के बावजूद मैटरहॉर्न यूरोप की सबसे खतरनाक चोटी है. तकनीकी चढ़ाई, हिमस्खलन का खतरा और पत्थरों के टूटने का खतरा इसे यूरोप की सबसे जानलेवा चोटी बनाता है.
तस्वीर: DW
05. आइगर
आल्प्स की आइगर चोटी की चढ़ाई तीन तरफ से बहुत मुश्किल नहीं हैं. लेकिन उत्तरी दिशा से इस चोटी पर चढ़ना बहुत ही मुश्किल है. तकनीकी रूप से चोटी का नॉर्थफेस जटिल है और पत्थरों के टूटने का खतरा भी रहता है. इसे मौत की दीवार यूं ही नहीं कहा जाता.
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04. कंचनजंघा
दुनिया भी ज्यादातर चोटियों में समय के साथ मरने वालों की संख्या में कमी आई है. लेकिन कचनजंघा में इसका उल्टा हुआ है. हाल के सालों में कंचनजंघा में मरने वालों संख्या 22 फीसदी बढ़ी है. खतरनाक मौसम और हिमस्खलन अच्छे खासे पर्वतारोहियों की हालत खस्ता कर देता है.
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03. नंगा पर्वत
दुनिया की नवीं ऊंची चोटी तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही संकरा है. पर्वत के दक्षिणी हिस्से में हजारों मीटर गहरी खाई है. नंगा पर्वत को पर्वतारोही "आदमखोर" भी कहते हैं.
तस्वीर: Reuters/Forum/M. Obrycki
02. के2
दुनिया की दूसरी ऊंची चोटी के2 बेहद दुश्वार है. हर साल बहुत कम पर्वतारोही ही इसकी तरफ नजर उठाते हैं. खड़ी चढ़ाई, नुकीले कोने और बर्फ के स्तंभों से गुजरते हुए इसकी चोटी पर पहुंचा जा सकता है. तकनीकी मुश्किल इसकी चढ़ाई को दुस्साहसी बना देती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Riedel
01. अन्नपूर्णा
1950 में पहली बार इंसान इस चोटी पर चढ़ा. लेकिन तब से अब तक 130 से ज्यादा लोग ही इस पर चढ़ पाए हैं. 53 इसके रास्ते में ही मारे गए. 8,000 मीटर ऊंची इस चोटी को दुनिया का सबसे खतरनाक पर्वत शिखर कहा जाता है.
तस्वीर: imago/McPhoto/Lovell
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हाल में एक अन्य पर्वतारोही और ऐडवेंचर फिल्ममेकर एलिया साइक्ले ने इंस्टाग्राम पर डाली एक पोस्ट में कहा था कि एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर उन्होंने जो देखा उस पर उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. उन्होंने लिखा, "मौत, लाशें, अराजकता. रास्तों पर लाशें और कैंप में और चार लाशें. जिन लोगों को मैंने वापस भेजने की कोशिश की थी उनकी भी यहां आते-आते मौत हो गई. लोगों को घसीटा जा रहा है. लोग लाशों पर से गुजर रहे थे." एलिया ने लिखा, "जो कुछ भी आप किसी सनसनीखेज हेडलाइन में पड़ते हैं, वह सब उस रात हमारे सामने मंडरा रहा था."
साल 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद से पर्वतारोहण एक आकर्षक व्यवसाय बन गया है. पर्वतारोहण के लिए नेपाल की ओर से जारी किए जाने वाले परमिट की कीमत करीब 11 हजार डॉलर है. ऐसे परमिटों के जरिए नेपाल के पास अच्छी खासी विदेशी मुद्रा आती है. इस साल तकरीबन 140 परमिट तिब्बत के उत्तरी छोर से जाने के लिए दिए गए थे. हालांकि अब तक स्पष्ट आंकड़ा नहीं आया है कि साल 2018 के मुकाबले 2019 में कितने लोगों ने एवरेस्ट की चढ़ाई की. हालांकि मारे गए पर्वतारोहियों में चार भारतीय और एक अमेरिका, ब्रिटेन और नेपाल से थे. उत्तरी तिब्बत की ओर से जाने वालों में एक ऑस्ट्रियन और आइरिश पर्वतारोही की मौत की पुष्टि की गई है.
मारे गए चार भारतीयों में एक 27 साल का निहाल बागवान भी था, जो करीब 12 घंटे के इंतजार के बाद लौटते वक्त अपनी जान गवां बैठा.
एवरेस्ट की ढलान पर बिछड़ी जिंदगियां
माउंट एवरेस्ट की चोटी को छूने का ख्वाब कई लोगों को होता है. लेकिन कुछ पर्वतारोही वहां से कभी नहीं लौट पाते. एक नजर एवरेस्ट पर होने वाले दर्दनाक हादसों पर.
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जो वहीं रह गए
हिमालयन डाटाबेस नाम का एनजीओ हिमालय की चोटियों का डाटा जमा करता है. बीते 70 साल में 280 से ज्यादा पर्वतारोही इस की ढलानों पर मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: DW/Jasvinder Sehgal
कौन सा रूट
एवरेस्ट पर चढ़ने के दो रास्ते हैं. नॉर्थ रूट और साउथ रूट. नॉर्थ रूट तिब्बत से होकर जाता है. साउथ रूट नेपाल से होकर गुजरता है. ज्यादातर पर्वतारोही साउथ रूट का इस्तेमाल करते हैं.
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मौत की वजहें
एवरेस्ट मिशन के दौरान सबसे ज्यादा पर्वतारोही कड़ाके की ठंड से होती है. बर्फीली जगहों पर भयंकर सर्दी के चलते हाथ और पैरों के ऊतक मरने लगते हैं. मांस काला पड़ जाता है और गलने लगता है. हिमस्खलन और दरारों में गिरकर भी पर्वतारोहियों की मौत होती है.
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मौत के पीछे मौत
मारे गए पर्वतारोहियों के शवों ने नीचे लाने के चक्कर में कई नेपाली भी मारे जा चुके हैं. मृतक के परिवारजन शव नीचे लाने के बदले काफी पैसा देते हैं. लेकिन शवों को बांध कर नीचे लाना बेहद जोखिम भरा होता है.