म्यांमार की चिंताएं साझा करने का मोदी ने दिया भरोसा
६ सितम्बर २०१७
म्यांमार की यात्रा पर पहुंचे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कारोबारी संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया साथ ही रखाइन प्रांत में जारी हिंसा पर चिंता साझा करते हुये कहा "भारत इन्हें समझता है."
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प्रधानमंत्री मोदी ने म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सू ची के साथ साझा प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुये कहा कि बतौर पड़ोसी और एक्ट ईस्ट पॉलिसी के संदर्भ में म्यांमार के साथ रिश्ते मजबूत करना भारत की प्राथमिकता है. रखाइन प्रांत में फैली हिंसा के मुद्दे पर मोदी ने कहा कि भारत म्यांमार की चिंताएं समझता है.
सू की ने म्यांमार पर भारत के रुख का स्वागत करते हुये कहा कि अब दोनों देश चुनौतियों से निपटने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं. उन्होंने भरोसा जताते हुये कहा कि "साथ मिलकर हम अपनी जमीन से आंतकवाद का खात्मा कर सकेंगे". मोदी ने कहा "भारत और म्यांमार की लंबी जमीनी तथा समुद्री सीमाओं पर सुरक्षा एवं स्थिरता बनाए रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में दोनों देशों के समान सुरक्षा हित हैं."
रोहिंग्या मुसलमानों पर बढ़ रहे अत्याचारों के चलते म्यांमार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा है. दुनिया के तमाम मुस्लिम देश रोहिंग्या मसले पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं. यूएनएचसीआर के आंकड़ों मुताबिक अब तक तकरीबन 1.25 लाख रोहिंग्या मुसलमान हिंसा के चलते बांग्लादेश की ओर पलायन कर चुके हैं. 25 अगस्त को रखाइन प्रांत में हुई हिंसा के लिये अधिकार समूह और संस्थायें म्यांमार के सरकारी सुरक्षा बलों को जिम्मेदार ठहरा रहीं है लेकिन म्यांमार ने ऐसे दावों को सिरे से खारिज करते हुये कहा कि सेना और पुलिस आतंकवादियों के खिलाफ लड़ रहीं है.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने दुनिया भर के नेताओं से 11 लाख की कुल आबादी वाले रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में मदद करने की अपील की है. भारत में भी मोदी सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों पर कड़ा रुख अपनाते हुये भारत के 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने की बात कही थी.
हालांकि मोदी के इस रुख की भारत में जमकर आलोचना हुई और अधिकार समूहों ने सरकार के इस कदम एक खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया है. कारोबारी पक्ष की बात करें तो भारत और म्यांमार के बीच व्यापार बढ़कर 2.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया है लेकिन भारत प्रायोजित परियोजनाओं की रफ्तार अब भी यहां धीमी बनी हुई है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.