भारतीय बाजारों में म्यांमार से आने वाला सोना छाने लगा है. इसका ज्यादातर हिस्सा तस्करी के जरिए भारत पहुंच रहा है. इस साल अब तक लगभग 60 करोड़ रुपये का सोना तस्करों से बरामद किया गया है. बीते साल यह आंकडा लगभग 110 करोड़ था.
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भारत में सोने के आभूषणों का बाजार 2017 में 75 अरब अमेरिकी डॉलर था जिसके वर्ष 2025 तक बढ़ कर सौ अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल 150 से 200 टन तक सोना तस्करी के जरिए पहुंचता है.
केंद्रीय एजंसियों का कहना है कि म्यांमार से सोने की तस्करी ने दुबई और बैंकॉक के पारंपरिक रूट को भी पीछे छोड़ दिया है. त्योहारों का सीजन सामने होने की वजह से इसमें हाल में काफी तेजी आई है.
भौगोलिक स्थिति
म्यांमार की भौगोलिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर निगरानी में ढील ने इसे तस्करों के लिए काफी मुफीद बना दिया है. सीमा पर स्थित जंगल और पहाड़ी इलाके तस्करों को रास आने लगे हैं. भारतीय बाजारों में म्यांमार के मुकाबले कीमतों में प्रति ग्राम तीन से चार हजार रुपए के भारी अंतर ने भी इसे मुनाफे का सौदा बना दिया है.
सोने का जादू
इंसान कई सौ सालों से सोने का दीवाना है. इसके लिए उसने पुराने समय में पत्थरों के औजारों से सुरंगे बनाई और सोना ढूंढा. आज अफ्रीकी महाद्वीप सहित कई देशों में सोने के खनन की होड़ जारी है. चाहे कितना ही जोखिम क्यों न हो...
तस्वीर: MEHR
उपहार
भारत में शादी, त्योहार में सोना बड़े शौक से लिया दिया जाता है. सच ही कहते हैं.. सोना कितना सोना है...
तस्वीर: Noah Seelam/AFP/Getty Images
कण कण कीमती
सोने का हर कण कीमती है. सोना खोजने के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते. नदी किनारे घंटों पानी छानते हैं कि कहीं एक आध सोने का टुकड़ा इसमें से निकल जाए.
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कतरा ही सही
अफ्रीकी देश तंजानिया में भी सोने की खान है. वैसे तो यहां बड़ी कंपनियां खनन करती हैं लेकिन आस पास के निवासी कुछ सुनहरे टुकड़े पाने का कोई मौका नहीं गंवाते.
तस्वीर: DW/J. Hahn
सुनहरा आकर्षण
बाजारों और बैंकों में लकलक चमकते सोने को देखकर पहली बार में ख्याल ही नहीं आता कि इसके पीछे कितनी मेहनत और कितनी परेशानियां छिपी हैं. कैसे बड़ी बड़ी कंपनियां अफ्रीका के सीने में विस्फोट कर सोना निकाल रही हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
तलाश
कई अफ्रीकी देशों में सोने की खानें हैं. लोग अवैध तरीके से पत्थरों में सोना ढूंढते हैं और फिर इसे धो धो कर साफ करते हैं. यह तस्वीर माली के कायेस इलाके की है.
पूर्वी कांगो में एक सोने की खान में काम करता हुआ मजदूर. कांगो खनिज पदार्थों से संपन्न इलाका है लेकिन यहां के लोग राजनीतिक संघर्ष में पिसे हुए.
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हजारों साल पुरानी
जॉर्जिया के टिबलिसी इलाके में हजारों साल पुरानी सोने की खान मिली है. जिसे कांस्य युग के लोगों ने पत्थरों से काट काट कर बनाया था. छोटी मोटी नहीं जमीन के नीचे उन्होंने 70 मीटर की सुरंग बनाई सोना निकालने के लिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घुसपैठ से
सोने की खदानों से निकले पत्थरों का इंतजार लोग करते हैं कि कहीं से कुछ सोना निकल आए और उनकी तकदीर चमक जाए. कई लोग पुश्तैनी काम छोड़ कर इसमें लगे हैं क्योंकि पैसा काफी है.
तस्वीर: DW/J. Hahn
गहने
दुनिया भर में लोग सोने के दीवाने हैं. ये दीवानगी खास तौर पर एशियाई और मध्य एशियाई देशों में ज्यादा दिखाई देती है.
तस्वीर: Fotolia/Stefan Gräf
ईरान में
भारत के अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान श्रीलंका से लेकर जॉर्जिया, ईरान, इराक सहित अरब अमीरात के देशों में भी सोना काफी पसंद किया जाता है.
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इसी साल अप्रैल में मणिपुर के एक पूर्व विधायक का पुत्र भी तस्करी के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था. भारत की 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. इसमें से अरुणाचल प्रदेश के साथ 520 किलोमीटर और नागालैंड के साथ 215 किलोमीटर लंबी सीमा शामिल है. लेकिन मणिपुर से लगी 398 किलोमीटर और मिजोरम से लगी 510 किलोमीटर लंबी सीमा केंद्रीय एजंसियों के लिए भारी सिरदर्द बन रही है. म्यांमार से सोने की तस्करी इन दोनों राज्यों की सीमा से ही हो रही है.
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के एक अधिकारी बताते हैं, "इन दोनों राज्यों में सीमा पर स्थित जंगल और पहाड़ की वजह से वहां कड़ी निगरानी संभव नहीं है. तस्कर इसी स्थिति का लाभ उठा कर सोने के साथ पहले मणिपुर और मिजोरम पहुंचते हैं और फिर वहां से इस सोने को खास कर सड़क और रेल मार्ग से स्वर्ण उद्योग के गढ़ कहे जाने वाले कोलकाता, मुंबई और दिल्ली में पहुंचाया जाता है.”
वह बताते हैं कि इसके लिए कमीशन के आधार पर एजंटों की बहाली की जाती है ताकि किसी के गिरफ्तार होने की स्थिति में भी तस्कर गिरोह के दूसरे सदस्यों के बारे में पता ना चल सके.
बढ़ती मांग
डीआरआई के एक अधिकारी बताते हैं, "भारत में सोने की बढ़ती मांग और खपत और कीमतों में भारी अंतर की वजह से ही म्यांमार ने सोने की तस्करी के मामले में दुबई और बैंकाक जैसे शहरों को पीछे छोड़ दिया है. बीते साल से इन दोनों शहरों के मुकाबले म्यांमार से आने वाली सोने की तादाद बढ़ी है. आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं. एक किलो सोने की तस्करी पर तस्करों को खर्च काट कर 90 हजार से 1.10 लाख रुपए तक मुनाफा होता है.”
सोने के बर्तन
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डीआरआई सूत्रों का कहना है कि म्यांमार में उग्रवादी संगठनों की सक्रियता की वजह से सोने के तस्करों को काफी मदद मिलती है. इसमें उन संगठनों को भी खासा कमीशन मिलता है. इसलिए वे तस्करों को सीमा पार करने में सहायता करते हैं.
केंद्रीय एजंसियों ने वर्ष 2016 में असम के शहर गुवाहाटी में सोने की तस्करी के एक गिरोह का भांडा फोड़ते हुए दावा किया था कि वह बीते ढाई वर्षों के दौरान भारत म्यांमार सीमा के रास्ते दो हजार करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत का लगभग सात हजार किलो सोना तस्करी के जरिए देश में लाया था.
दुनिया भर में सोने की कुल खपत का 29 फीसदी भारत में होता है. सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान सात फीसदी है. जेम्स एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक देश में लगभग 50 लाख लोग प्रत्यक्ष तौर पर इस कारोबार से जुड़े हैं. वर्ष 2017 में यहां सोने की मांग 737.5 टन रही थी.
गरीब देश की सोना उगलने वाली जमीन
दुनिया के सबसे गरीब मजदूर, सोना उगलने वाली जमीन के ऊपर रहते हैं. उनके हाथ सोने की ईंटे तो बना देते हैं, लेकिन अपनी गरीबी दूर नहीं कर पाते.
तस्वीर: Robert Carrubba
अफ्रीकी देश कांगो में सोने की दो बड़ी खदानें हैं. लेकिन वहां से निकलने वाले ज्यादातर सोने की कालाबाजारी हो जाती है. खनन से जुड़े ठेकेदार खनिकों से दिन भर काम करते हैं, लेकिन पैसा तभी दिया जाता है जब सोना मिलता है.
तस्वीर: Robert Carrubba
गहरी और मुश्किल सुरंगों में घुसने के बाद खनिक लगातार मिट्टी और पत्थर कुरेदते रहते हैं. उन्हें उम्मीद होती हैं कि खुदाई में जरा सा पीला सोना निकल आयेगा.
तस्वीर: Robert Carrubba
कुछ कंपनियां खनिकों को हर दिन के हिसाब से दिहाड़ी देती हैं. लेकिन यह भी दुनिया में सबसे सस्ती दिहाड़ी है. पैसा पाने के लिए श्रमिकों को दिन भर खुदाई और कई बोरे ढोने पड़ते हैं.
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खदान से निकाली गयी मिट्टी को एक छलनी में डाला जाता है और फिर खान के भीतर मौजूद पानी भिगोया जाता है.
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मिट्टी पानी में बह जाती है और कड़े टुकड़े अलग थलग हो जाते हैं.
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और पत्थर का चमकीला टुकड़ा मिलते ही लोगों की आंखों में चमक आ जाती है. अक्सर ऐसे टुकड़ों को स्थानीय बाजार में ले जाया जाता है, जहां खरीदार उसकी कीमत लगता है.
तस्वीर: Robert Carrubba
बड़े कारोबारी पत्थर के टुकड़े को एसिड के साथ जलाते हैं. एसिड सोने को बाकी चीजों से अलग कर देता है.
तस्वीर: Robert Carrubba
फिर सोने के इस चूरे को तौला जाता है. इस प्रक्रिया तक पहुंचने वाले मैटीरियल में 80 फीसदी सोना होता है.
तस्वीर: Robert Carrubba
इसके बाद इस मिश्रण को बेहद उच्च तापमान में गलाया जाता है. इस दौरान सोना गलता है और बाकी चीजें जल जाती हैं.
तस्वीर: Robert Carrubba
पिघले मिश्रण को ईंट जैसे सांचे में डाला जाता है. यह मिश्रण जब ठंडा होता है तो सोने की ईंट बनती हैं.
तस्वीर: Robert Carrubba
एक अनुमान के मुताबिक कांगो गणराज्य में हर साल 25 से 30 टन सोना निकाला जाता है. लेकिन इसमें से सिर्फ 11 टन ही बाजार में आ पाता है. बाकी का सोना काले बाजार का हिस्सा बनता है.
तस्वीर: Robert Carrubba
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वर्ष 2017-18 के दौरान भारत से 32.71 अरब अमेरिकी डॉलर के सोने के गहनों और बेशकीमती रत्नों का निर्यात भी किया गया था. अब काउंसिल ने वर्ष 2020 तक 60 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य तय किया है. वर्ष 2022 तक इस क्षेत्र में लगभग 82 लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है.
सख्त निगरानी की जरूरत
सुरक्षा एजंसियों और विशेषज्ञों का कहना है कि मणिपुर में म्यांमार से लगी खासकर मोरे सीमा तस्करों के लिए सबसे मुफीद ठिकाने पर उभरी है. वहां खुले सीमा व्यापार का लाभ उठा कर सोने के तस्कर माल के साथ आसानी से सीमा पार कर लेते हैं. एजेंसियों का कहना है कि बड़े पैमाने पर वहां से होने वाली तस्करी को रोकने के लिए सीमा पर निगरानी सख्त करने और इस बारे में म्यांमार सरकार से बातचीत कर एक एकीकृत योजना बनाने की जरूरत है.
मणिपुर में एक सुरक्षा विशेषज्ञ एन रमेश सिंह कहते हैं, "इतने बड़े पैमाने पर तस्करी के जरिए देश में आने वाले सोने का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ना लाजिमी है. इससे सरकार को भी हर साल राजस्व के तौर पर करोड़ों का नुकसान होता है. ऐसे में तमाम एजंसियों को आपसी तालमेल के जरिए इस पर अंकुश के लिए ठोस योजना बनानी होगी.”
वह कहते हैं कि जितना सोना पकड़ा जाता है उससे कई गुना ज्यादा सोना सुरक्षित रूप से भारतीय बाजारों में पहुंच जाता है और यह बेहद चिंताजनक स्थिति है.
क्या होता है जब गांव में निकलता है सोना
बन्टाको अफ्रीकी देश सेनेगल के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बसा एक छोटा सा गांव है. 2008 तक यह एक खेती किसानी करने वालों का एक आम गांव था लेकिन फिर इस गांव में मिला सोना और गांव की स्थिति ही बदल गयी.
तस्वीर: DW/F. Annibale
सुनहरे पत्थर
बन्टाको गांव में सोने की एक छोटी सी खदान का सारा काम देखने वाले डोऊसा कहते हैं, "जब हमने 2007-2008 में सोना खोजा, गांव पूरी तरह बदल गया. गांव में हम 2 हजार लोग रह रहे थे, लेकिन अब यहां 6 हजार से भी ज्यादा लोग रहते हैं". बन्टाको की खदानों में हर रोज 3 हजार से भी ज्यादा खनिक काम करते हैं, जहां उन्हें ऐसे पत्थर मिलते हैं, जिसमें थोड़ा सा सोना होता है.
तस्वीर: DW/F. Annibale
गांव के हवाले खनन का काम
इन अस्थाई सुरंगों में काम करने वाले खनिकों पर गांव के लोग अनाधिकारिक रूप से नजर रखते हैं. वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि यहां जो भी खनन के लिए आए उनके पास खनन मंत्रालय का जारी किया हुआ कार्ड हो. डोऊसा कहते हैं,"आप देखिए यहां स्टेट पूरी तरह गायब है, तो हम, गांव के लोग खनन के काम को देखते और नियंत्रित करते हैं. वो यह भी कहते हैं कि अगर किसी ने पहले उनसे बात नहीं की है तो वे वहां काम नहीं कर सकता.
तस्वीर: DW/F. Annibale
कमाई का जुगाड़
खदान में काम करने वाले मामाडोऊ कहते हैं, "मैं यहां बस काम करने के लिए हूं. मेरे गांव में कोई काम नहीं था. वहां नौकरियां नहीं थीं. यहां मैं घर भेजने के लिए पर्याप्त पैसे बचा रहा हूं. मुझे बस इसी बात की परवाह है. यहां काम करने की परिस्थितियां बहुत कठिन हैं. स्वास्थ्य, सुरक्षा नियम और श्रमिक अधिकार को कोई अता पता नहीं हैं."
तस्वीर: DW/F. Annibale
गांव की बढ़ी रफ्तार
सोने की खानों से पहले, गांव में कोई मोटरसाइकिल नहीं थी. सोने का व्यापार करने वालों को बन्टाको से दूर के इलाकों में आने जाने की जरूरत पड़ी. इसके बाद पेट्रोल बेचने वाले, मैकेनिक और दूसरे लोग इस गांव में पहुंचे और लोगों के मूलभूत जीवन को बदल दिया.
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औजारों की दुकानें भी खुलीं
बन्टाको की मुख्य सड़क के साथ-साथ गांव के कई हिस्सों में छोटी छोटी दुकानें खुल गयी हैं. इन दुकानों में घातु के वे सब औजार बिकते हैं जो मजदूरों को खुदाई के लिए चाहिए. गांव के एक दुकानदार मलिक कहते हैं, "मैं यहां बस व्यापार करने आया हूं". वे बन्टाको से दूर दूसरे इलाके में रहते हैं. कुछ साल पहले तक यहां दूर दूर तक ऐसा व्यापार कर सकने की कोई गुंजाइश नहीं थी.
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खेती से खनन तक का सफर
इस गांव में रह रहे 45 वर्षीय वाले केईटा कहते हैं, "सोने की खोज करने से पहले इस गांव में मुश्किल से कोई पक्का घर था. यहां तक कि मेरा अपना घर भी, जो अब सीमेंट और ईंट का बन गया है. ये कभी संभव नहीं था अगर मैं खेती ही करता रहता". केईटा पहले किसान थे लेकिन सोने के बारे में पता चलने के बाद वे भी खुदाई करने लगे.
तस्वीर: DW/F. Annibale
खनन के पुराने तरीके
सोने के खनन के लिए उद्योग में बहुत अच्छी मशीने हैं जो सोने और पत्थर को अलग कर देती हैं, लेकिन ये मशीनें महंगी हैं. गांव के जो लोग सोने की खुदाई करते हैं वे इन पत्थरों को तोड़ते हैं फिर उन्हें गीला करके कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं. फिर इन्हें दुबारा पीस कर उसमें से सोना खोजने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: DW/F. Annibale
मेहनत का काम
दूसरी बार पत्थरों को थोड़कर बारीक किया जाता है. इसके बाद उन्हें एक छलनी से छाना जाता है और इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि उस मिश्रण में से सोने का हर टुकड़ा चुन लिया जाए. इस काम को करने में घरों में सभी लोग साथ देते हैं. गर्मियों की दिनों में जब स्कूलों में छुट्टी होती है तब बच्चे भी इस काम में हाथ बंटाते हैं.
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पर्यावरण को नुकसान
गांव की आर्थिक स्थिति में जो उछाल आया उससे गांव में काम करने वाले लोगों के साथ नयी परेशानियां भी साथ आईं. जैसे खनन से निकलने वाले कचरे की समस्या. गांव के लोग खुदाई के बाद के सारे कचरे को गांव के पास की नदी में यूं ही बहा देते हैं. गांव के कुछ लोगों को इस बात की भी चिंता है कि एक दिन जमीन से सोना निकलता बंद हो जाएगा. तब इस गांव का क्या होगा.