यूरोपीय संघ ने म्यांमार में हुए तख्तापलट में शामिल 11 लोगों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का फैसला ले लिया है. ये एक फरवरी को हुए तख्तापलट के खिलाफ यूरोपीय देशों की सबसे महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया है.
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यूरोपीय संघ के विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल ने ब्रसेल्स में संघ के विदेश मंत्रियों की बैठक की शुरुआत से पहले यह घोषणा की. उन्होंने यह भी कहा कि म्यांमार में हालात बिगड़ते ही चले जा रहे हैं. जिन लोगों के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने हैं उनके नाम तब ही सार्वजनिक किए जाएंगे जब संघ के सदस्य देशों के मंत्री औपचारिक रूप से उन पर फैसला ले लेंगे.
संघ म्यांमार की सेना द्वारा चलाए जाने वाले व्यापारों को भी निशाना बनाने की कोशिश कर रहा है और इस संबंध में और कड़े कदमों के लागू किए जाने की संभावना है. संघ के राजदूतों ने रॉयटर्स को बताया है कि सेना की बड़ी कंपनियों म्यांमार इकोनॉमिक होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड और म्यांमार इकोनॉमिक कॉर्पोरेशन को निशाना बनाया जा सकता है. यूरोपीय निवेशकों और बैंकों को इन कंपनियों के साथ व्यापार करने से रोका जा सकता है.
इन कंपनियों की जड़ें म्यांमार की पूरी अर्थव्यवस्था में फैली हुई हैं. ये खनन, उत्पादन और खाने-पीने की चीजों से लेकर होटलों, टेलीकॉम और बैंकिंग तक मौजूद हैं. देश के सबसे बड़े करदाताओं में इनका स्थान है और देश जब लोकतांत्रिक उदारीकरण के तहत खुला था तब इन कंपनियों ने विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी भी करनी चाही थी.
2019 में संयुक्त राष्ट्र के एक तथ्य-खोजी मिशन ने इन दोनों कंपनियों और इनकी नियंत्रित कंपनियों के खिलाफ प्रतिबंधों की सिफारिश की थी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि ये कंपनियां सेना को पैसों के अतिरिक्त स्त्रोत देती हैं, जिनका इस्तेमाल सेना मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए कर सकती है. यूरोपीय संघ ने म्यांमार के खिलाफ हथियारों के व्यापार पर रोक लगा रखी है. 2018 से ही संघ ने म्यांमार की सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भी कदम उठाए हैं.
इस बीच, जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा है कि यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के निशाने पर सिर्फ वो लोग हैं जो सड़कों पर हो रही हिंसा के जिम्मेदार हैं और इनके पीछे आम लोगों को सजा देने की कोई मंशा नहीं है. मास ने ब्रसेल्स में पत्रकारों को बताया, "हत्याओं की संख्या बर्दाश्त करने की हद को पार कर गई है और इसी वजह से हम प्रतिबंध लगाना रोक नहीं पाएंगे."
सीके/एए (रॉयटर्स)
म्यांमार में दमन का कुचक्र
एक फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा तख्ता पलट देने और सत्ता हथिया लेने के बाद वहां लगातार नागरिकों के अधिकारों का दमन हो रहा है. तीन मार्च को एक ही दिन में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 प्रदर्शनकारी मारे गए.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
हिंसा का दौर
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है. तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
बढ़ते जनाजे
इन 38 लोगों को मिला कर अभी तक कम से कम 50 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है. यह तस्वीर 19 साल की क्याल सिन के शव की अंतिम यात्रा की है. वो तीन मार्च को मैंडले में सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं जब सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं. उन्हें सिर में गोली लगी और उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: REUTERS
बल का प्रयोग
प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने पहले आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. सुरक्षाबल लगातार आंसू गैस, रबड़ की गोलियां, ध्वनि बम जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. प्रदर्शन शांत ना होने पर गोली चला दी जा रही है.
तस्वीर: Aung Kyaw Htet/ZumaWire/Imago Images
बचने के तरीके
प्रदर्शनकारियों को अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ रहा है. आंखों को ढकने के लिए बड़े बड़े चश्मे, हेलमेट और ढालों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
नाकामयाब कोशिशें
प्रदर्शनकारी भी खुद को बचाने के लिए धुंआ छोड़ रहे हैं लेकिन धुंआ और किसी तरह से बनाए हुए बैरिकेड भी उन्हें पुलिस की गोलियों से बचा नहीं पा रहे हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
मीडिया पर हमले
गिरफ्तारियों का सिलसिला भी लगातार चल रहा है और प्रदर्शनकारियों के अलावा पुलिस पत्रकारों को भी गिरफ्तार कर रही है. प्रदर्शनों पर खबर कर रहे एसोसिएटेड प्रेस के थेइन जौ और पांच और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
तस्वीर: Thein Zaw family/AP/picture alliance
सू ची की छाया
प्रदर्शनकारियों में से कई म्यांमार की नेता आंग सान सू ची के समर्थक हैं, जिन्हें सेना ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. प्रदर्शनों में सू ची की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली की मांग उठ रही है.