मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि म्यांमार के अधिकारी रोहिंग्या लोगों पर हुए अत्याचारों के सबूतों को छिपा रहे हैं. संस्था का कहना है कि यूएन की टीम को म्यांमार के रखाइन प्रांत में जाने दिया जाना चाहिए.
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सैटेलाइट से मिली तस्वीरों से पता चलता है कि म्यांमार के अधिकारियों ने जलाए गए रोहिंग्या गांवों को कैसे साफ कर दिया है. ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि पिछले साल अगस्त में भड़की हिंसा के बाद से कम से कम 55 गांवों को पूरी तरह साफ कर दिया गया है. इस हिंसा के कारण लगभग सात लाख लोग पहले ही भागकर बांग्लादेश चले गए हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच में एशिया विभाग के निदेशक ब्रैड एडम्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "अधिकारी अत्याचार के सबूतों को छिपाना चाहते हैं और उन्होंने रोहिंग्या लोगों की जमीनों पर कब्जा कर लिया है. वे कब्रों, इस्तेमाल किए गए हथियारों और उन सभी सबूतों को छिपा रहे हैं जिनसे पता लगाया जा सके कि किसने ये अपराध किए हैं." उनके मुताबिक, "इससे रोहिंग्या लोगों के सफाए की बर्मी अधिकारियों की मानसिकता पता चलती है."
रोहिंग्या: ये घाव अपनी कहानी खुद कहते हैं..
म्यांमार में सेना की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. इनमें से कई लोगों के शरीर के निशान उन पर हुए जुल्मों की गवाही देते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ ऐसे ही लोगों की फोटो खींची.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
शाहिद, एक साल
पट्टियों में लिपटी एक साल के नन्हे शाहिद की टांगें. यह तस्वीर दिमाग में जितनी जिज्ञासा पैदा करती है, उससे कहीं ज्यादा त्रासदी को दर्शाती है. शाहिद की दादी म्यांमार के सैनिकों से बचकर भाग रही थी कि बच्चा गोद से गिर गया. यह तस्वीर कॉक्स बाजार में रेड क्रॉस के एक अस्पताल में ली गयी. (आगे की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं.)
तस्वीर: Reuters/H. McKay
कालाबारो, 50 साल
50 साल की कालाबारो म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुंगदूत गांव में रहती थी. गांव में म्यांमार के सैनिकों ने आग लगा दी. सब कुछ भस्म हो गया है. कालाबारो के पति, बेटी और एक बेटा मारे गये. कालाबारो घंटों तक मरने का बहाना बनाकर लेटी ना रहती तो वह भी नहीं बचती. लेकिन अपना दाया पैर वह न बचा सकी.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
सितारा बेगम, 12 साल
ये पैर 12 साल की सितारा बेगम के हैं. जब सैनिकों ने उसके घर में आग लगायी तो उसके आठ भाई बहन तो घर से निकल गये, लेकिन वह फंस गयी. बाद में उसे निकाला गया, लेकिन दोनों पैर झुलस गये. बांग्लादेश में आने के बाद उसका इलाज हुआ. वह ठीक तो हो गयी लेकिन पैरों में उंगलियां नहीं बचीं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
नूर कमाल, 17 साल
17 साल के नूर कमाल के सिर पर ये घाव हिंसा की गवाही देते हैं. वह अपने घर में छिपा था कि सैनिक आए, उसे बाहर निकाला और फिर चाकू से उसके सिर पर हमला किया गया. सिर में लगी चोटें ठीक हो गयी हैं, लेकिन उसके निशान शायद ही कभी जाएं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
अनवारा बेगम, 36 साल
अपने घर में सो रही 36 वर्षीय अनवारा बेगम की जब आंख खुली तो आग लगी हुई थी. जलती हुई एक चिंगारी ऊपर गिरी और नाइलोन का कपड़ा उनके हाथों से चिपक गया. वह कहती हैं, "मुझे तो लगा कि मैं बचूगीं नहीं, लेकिन अपने बच्चों की खातिर जीने की कोशिश कर रही हूं."
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मुमताज बेगम, 30 साल
30 साल की मुमताज बेगम के घर में घुसे सैनिकों ने उससे कीमती सामान लेने को कहा. जब मुमताज ने अपनी गरीबी का हाल बताया तो सैनिकों ने कहा, "पैसा नहीं है तो हम तुम्हें मार देंगे." और घर में आग लगा दी. उसके तीन बेटे मारे गये और उसे लहुलुहान कर दिया गया.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
इमाम हुसैन, 42 साल
इमाम हुसैन की उम्र 42 साल है. एक मदरसे में जाते वक्त हुसैन पर तीन लोगों ने हमला किया. इसके अगले ही दिन उसने अपने दो बच्चों और पत्नी को गांव के अन्य लोगों के साथ बांग्लादेश भेज दिया. इसके बाद वह भी इस हालात में कॉक्स बाजार पहुंचा.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मोहम्मद जुबैर, 21 साल
21 साल के मोहम्मद जुबैर के शरीर की यह हालात उसके गांव में एक धमाके का कारण हुई. जुबैर का कहना है, "कुछ हफ्तों तक मुझे कुछ दिखायी ही नहीं देता था." बांग्लादेश पहुंचने के बाद कॉक्स बाजार के एक अस्पताल में उसका 23 दिनों तक इलाज चला.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
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रोहिंग्या लोगों को म्यांमार अपना नागरिक नहीं मानता है और न ही उन्हें अपनी नागरिकता देता है. रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं जो दशकों से म्यांमार में रह रहे हैं. लेकिन म्यांमार उन्हें बांग्लादेश से आए गैरकानूनी प्रवासी समझता है. पिछले साल म्यांमार की सेना ने अपनी कई चौकियों पर हमलों के बाद रोहिंग्या चरमपंथियों के खिलाफ अभियान छेड़ा. इसे बाद में संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने रोहिंग्या लोगों का "जातीय सफाया" बताया. रोहिंग्या लोगों का कहना है कि म्यांमार में रहने वाले बहुसंख्यक बौद्ध उनके साथ भेदभाव और हिंसा करते हैं.
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों के गांवों को साफ किए जाने की पहली तस्वीरें 9 फरवरी को सामने आईं जिन्हें म्यांमार के लिए यूरोपीय संघ के राजदूत क्रिस्टियान श्मिट ने ट्वीट किया.
लेकिन म्यांमार की सरकार का कहना है कि गांवों को इसलिए साफ किया गया है ताकि वहां गावों को फिर से बसाने की योजना पर काम किया जा सके जिसके तहत बेहतर सड़कें और घर बनाए जाएंगे. म्यांमार के सामाजिक कल्याण मंत्री ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "जब वे (रोहिंग्या शरणार्थी) वापस आएंगे तो वे अपने मूल स्थान पर या मूल स्थान के करीब रह सकेंगे." वहीं संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था के निदेशक फिलिपो ग्रांडी का कहना है कि म्यांमार में अभी ऐसे हालात नहीं है कि रोहिंग्या लोग वहां लौट सकें क्योंकि जिन कारणों के चलते उन्हें वहां से भागना पड़ा, वे अभी तक जस के तस बने हुए हैं.
भाग कर कहां जाते हैं लोग?
अच्छे जीवन के लिए दुनिया में भागदौड़ मची हुई है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया के तकरीबन 24.4 करोड़ लोग अब उन देशों में नहीं रहते जहां वे पैदा हुए थे. साथ ही करीब 2.3 करोड़ लोग अपना देश छोड़ने की तैयारी में हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Str
यूरोप नहीं आते
ऐसा माना जाता है कि अच्छे जीवन के लिए ये प्रवासी यूरोप का रुख करते हैं. हालांकि एक जर्मन संस्था "ब्रेड फॉर द वर्ल्ड" के मुताबिक दुनिया के तकरीबन 90 फीसदी शरणार्थी विकासशील देशों में रहते हैं. उसमें भी एक बड़ा वर्ग अफ्रीकी देशों में रहता है. पैसे न होने के कारण ये लोग लंबी यात्रायें नहीं करते और पड़ोस के देशों में चले जाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Str
सोमालिया से इथियोपिया
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक इथियोपिया शरणार्थियों को जगह देने वाला दुनिया का पांचवां बड़ा देश है. यहां अधितकर शरणार्थी पड़ोसी देश सोमालिया से आते हैं जहां 1990 के दशक से ही गृह युद्ध की स्थिति बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ें मुताबिक सोमालिया से तकरीबन 10 लाख लोग भागकर इथियोपिया गये. इसके बाद केन्या का नंबर आता है जो शरणार्थियों का एक बड़ा ठिकाना बनकर सामने आया है.
तस्वीर: DW/S. Schlindwein
अन्य देशों की नीतियां
इथियोपिया की तरह ही, युगांडा भी शरणार्थियों को लेकर नरम नीति रखता है. यही कारण है कि गृह युद्ध झेल रहे कांगों और दक्षिण सूडान से भागकर लोग युगांडा में शरण लेते हैं. हालांकि दक्षिण सूडान की यात्रा इन लोगों के लिए बेहद ही खतरनाक होती है और छिपते-छिपाते ये लोग वहां से निकल पाते हैं.
तस्वीर: DW/S. Schlindwein
अमेरिका भी ठिकाना
अमेरिकी राष्ट्रपति मेक्सिको और अमेरिका के बीच दीवार खड़ी करने का समर्थन करते हैं. द माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट मुताबिक अमेरिका में तकरीबन 1.1 करोड़ लोग बिना रेजिडेंसी परमिट के रहते हैं, जिनमें से तकरीबन आधे मेक्सिको से आये हैं. इसके अलावा अल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला जैसे देशों से आने वालों के लिए मेक्सिको ट्रांजिट की तरह काम करता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Loeb
एशिया भी नहीं अछूता
सिर्फ अमेरिका और अफ्रीका ही नहीं बल्कि एशिया भी शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहा है. स्टडी के मुताबिक म्यांमार और बांग्लादेश से तमाम लोग थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया का रुख करते हैं. इसमें से अधिकतर रोहिंग्या मुसलमान हैं. अगस्त के आखिरी हफ्ते में म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुई हिंसा के बाद से अब तक बड़ी तादाद में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/O. Elif Kizil
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दूसरी तरफ, ह्यूमन राइट्स वॉच ने म्यांमार के अधिकारियों से कहा है कि वे संयुक्त राष्ट्र की जांच टीम को रखाइन प्रांत में जाने दें ताकि वे वहां जाकर असल स्थिति का जायजा ले सकें. म्यांमार ने संयुक्त राष्ट्र की टीम को वीजा देने से इनकार कर दिया है. वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संस्थानों को भी रखाइन में नहीं जाने दे रहा है. सिर्फ सरकार प्रोयोजित गाइडेड टूर के जरिए वहां जाया जा सकता है.