म्यांमार में गिरफ्तार रॉयटर्स के पत्रकारों को मिली माफी
७ मई २०१९
रोहिंग्या संकट पर रिपोर्टिंग करने गए रॉयटर्स के दो पत्रकारों को 500 से ज्यादा दिन जेल में रखने के बाद माफी दे दी गई है. इन पत्रकारों को छोड़ने की अपील दुनिया भर से की जा रही थी.
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म्यांमार के राष्ट्रपति से माफी मिलने के बाद इन लोगों की रिहाई हुई. वा लोन और क्यॉ सो ओ जब यांगून की कुख्यात इनसाइन जेल से बाहर निकले तो लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया. दोनों पत्रकार जब बाहर आए तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी और उन्होंने हाथ हिला कर लोगों का अभिवादन किया.
इन दोनों पत्रकारों को दिसंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था. उनकी गिरफ्तारी ने उन्हें पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया और म्यांमार की बड़ी आलोचना भी हुई. म्यांमार की सत्ता में अब नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची का दखल है बावजूद इसके पत्रकारों को इतने लंबे समय तक गिरफ्तार कर रखा गया. 33 साल के वा लोन ने दुनिया भर के लोगों का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने उनकी रिहाई के लिए आवाज उठाई. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वो जल्द ही काम पर लौटेंगे. वा लोन ने कहा, "मैं अपने न्यूज रूम तक जाने के लिए इंतजार नहीं कर सकता. मैं एक पत्रकार हूं और मैं काम जारी रखूंगा."
रॉयटर्स के प्रमुख संपादक स्टीफन एडलर ने इस मौके पर कहा, "हमें बेहद खुशी है कि म्यांमार ने हमारे साहसी रिपोर्टरों को रिहा कर दिया है. 511 दिन पहले जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तब से वो दुनिया भर में प्रेस की आजादी का प्रतीक बन गए थे. हम उनकी वापसी का स्वागत करते हैं."
इन दोनों पत्रकारों पर आधिकारिक गोपनीयता का उल्लंघन करने के आरोप लगे थे और उन्हें सात साल की सजा दी गई थी. सितंबर 2017 में जिस वक्त उनकी गिरफ्तारी हुई ये दोनों रखाइन प्रांत में 10 रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या के बारे में खबर जुटा रहे थे. म्यांमार की सेना की कार्रवाई के बाद रखाइन प्रांत से करीब 740,000 अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमान सीमा पर कर बांग्लादेश जाने पर मजबूर हुए.
रॉयटर्स का कहना है कि म्यांमार सरकार की कार्रवाई के बारे में जानकारी देने के लिए इन दोनों पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. हालांकि म्यांमार की सरकार ने इस बात से इनकार किया है. सरकार का कहना है कि ये लोग रोहिंग्या चरमपंथियों का बचाव कर रहे थे जिन्होंने पुलिस पर हमले किए और उनकी हत्या की. रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार की कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने "नरसंहार और जातीय सफाया" माना था.
पिछले महीने ही इन दोनों पत्रकारों ने पुलित्जर पुरस्कार भी जीता. इससे पहले ये दोनों टाइम पत्रिका के कवर पेज पर पर्सन ऑफ ईयर के रूप में भी जगह बना चुके हैं. पत्रिका के उस अंक में उन पत्रकारों की बात की गई थी जिन्हें उनके काम के लिए निशाना बनाया गया.
एनआर/एए (एएफपी)
इन पत्रकारों को मिली अपना काम करने की सजा
मीडिया की आजादी पर कहीं कम खतरा है तो कहीं ज्यादा. वन फ्री प्रेस कॉलिशन का उद्देश्य इसी को उजागर करना है. संस्था ऐसे पत्रकारों के बारे में जागरूक करना चाहती है जिनकी जान को या तो खतरा बना हुआ है या फिर जान ली जा चुकी है.
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वन फ्री प्रेस कॉलिशन
मार्च 2019 में "वन फ्री प्रेस कॉलिशन" की स्थापना हुई जो कि दुनिया भर के मीडिया संस्थानों का ऐसा मंच है जहां अभिव्यक्ति की आजादी पर चर्चा होती है. डॉयचे वेले भी इससे जुड़ा है. हर महीने प्रेस फ्रीडम से जुड़े दस मामलों की सूची जारी की जाएगी. जानिए अप्रैल 2019 की सूची में कौन कौन है.
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मिरोस्लावा ब्रीच वेलदुसेआ, मेक्सिको
मार्च 2017 में मेक्सिको की मिरोस्लावा ब्रीच की हत्या कर दी गई. मिरोस्लावा नेताओं और माफिया के संबंधों पर रिपोर्टिंग कर रही थीं. हत्या से पहले तीन बार उन्हें धमकियां मिली थीं. फिलहाल एक संदिग्ध हिरासत में है और मामला अदालत में चल रहा है.
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मारिया रेसा, फिलीपींस
13 फरवरी 2019 को फिलीपींस के नेशनल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने मारिया रेसा को गिरफ्तार किया. उन पर साइबर कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज था. अगले दिन उन्हें रिहा तो कर दिया गया लेकिन उनकी कंपनी रैपलर पर टैक्स संबंधी मामले शुरू कर दिए गए. 28 मार्च को रैपलर के कई पत्रकारों के खिलाफ वॉरंट जारी किए गए.
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त्रान थी नगा, वियतनाम
अदालत में महज एक दिन की पेशी के बाद इन्हें नौ साल की कैद की सजा सुना दी गई. इन पर आरोप है कि इन्होंने सरकार के खिलाफ प्रचार किया. त्रान थी को नकारात्मक प्रोपेगैंडा चलाने का दोषी पाया गया क्योंकि उन्होंने ऐसे कई वीडियो बनाए थे जो प्रशासन की आलोचना करते थे और भ्रष्टाचार को दर्शाते थे.
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आजिमजोन अस्कारोव, किर्गिस्तान
इन्होंने देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाई और कई रिपोर्टें बनाईं. अपने इस जुर्म की सजा के तौर पर ये नौ साल जेल में बिता चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के आग्रहों के बावजूद किर्गिस्तान सरकार सजा खत्म करने के लिए राजी नहीं है.
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राणा अयूब, भारत
भारत में राणा अयूब एक जाना माना नाम है. राणा स्वतंत्र पत्रकार हैं और अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर आवाज उठाती रही हैं. इसके लिए उन्हें लगातार ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता रहा है. राणा को जान से मार देने की धमकियां मिलीं, उनके चेहरे को मॉर्फ कर नग्न तस्वीरों के साथ लगाया गया और उनका पता और फोन नंबर सार्वजानिक किया गया.
तस्वीर: Marie Claire South Africa
मिगेल मोरा और लुसिया पिनेडा उबाउ, निकारागुआ
दिसंबर 2018 में निकारागुआ पुलिस 100% नोटिसियास नाम के टीवी चैनल के दफ्तर में पहुंची और स्टेशन डायरेक्टर मिगेल मोरा और न्यूज डायरेक्टर लुसिया पिनेडा उबाउ को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पत्रकारों को नफरत और हिंसा फैलाने के जुर्म में कैद किया गया है. उन्हें उनके कानूनी अधिकारों से भी वंचित रखा जा रहा है.
तस्वीर: 100% Noticias
आना निमिरियानो, दक्षिण सूडान
इन्हें सरकार की ओर से अपना अखबार "जूबा मॉनिटर" बंद करने को कहा गया है. आए दिन इनके पत्रकारों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और इनका सारा समय उन्हें जेल से रिहा कराने में लग जाता है. इनके काम को भी लगातार सेंसर किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद इन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं.
तस्वीर: IWMF
अमादे अबुबकार, मोजाम्बिक
जनवरी 2019 को इन्हें सैन्य हमले से भागते परिवारों की तस्वीर खींचते हुए गिरफ्तार किया गया था. कई दिन सेना की कैद में गुजारने के बाद इन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन इनकी रिहाई के कोई आसार नहीं दिखते क्योंकि बिना कानूनी कार्रवाई के ही इन्हें कैद में रखा जा रहा है.
तस्वीर: DW/J. Beck
क्लाउडिया डुकु, कोलंबिया
2010 में इंटरनेशनल वुमेंस मीडिया फाउंडेशन ने इन्हें "करेज इन जर्नलिज्म" पुरस्कार से नवाजा था. क्लाउडिया का अपहरण किया गया, उन्हें मानसिक रूप से टॉर्चर किया गया और गैरकानूनी रूप से उन पर लगातार नजर रखी गई. अदालत ने क्लाउडिया और उनकी बेटी की प्रताड़ना के आरोप में खुफिया सेवा के तीन उच्च अधिकारियों को दोषी पाया लेकिन जनवरी 2019 में ये सब रिहा हो गए.
तस्वीर: IWMF
ओसमान मीरगनी, सूडान
फरवरी 2019 में अल तयार नाम के अखबार के मुख्य संपादक मीरगनी को गिरफ्तार किया गया. अब तक यह नहीं बताया गया है कि उन पर क्या आरोप लगाए गए हैं. रिपोर्टों के अनुसार कैद में उनकी सेहत लगातार बिगड़ रही है. गिरफ्तारी से ठीक पहले वे सूडान में सरकार के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों पर लिख रहे थे.