म्यांमार में तख्तापलट से पूर्वोत्तर में घुसपैठ का खतरा बढ़ा
प्रभाकर मणि तिवारी
८ फ़रवरी २०२१
पड़ोसी देश म्यांमार में तख्तापलट के बाद मची राजनीतिक उथल-पुथल से मिजोरम में चिन समुदाय के लोगों की चिंता बढ़ गई है. उन्हें म्यांमार में हालात बिगड़ने के बाद वहां रहने वाले रिश्तेदारों के पलायन का डर सता रहा है.
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बीते दिनों म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई आंग सान सू ची की सरकार के खिलाफ तख्तापलट करते हुए सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. मिजोरम के अलावा मणिपुर से लगी म्यांमार की सीमा पर भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है ताकि सीमा पार से संभावित घुसपैठ पर अंकुश लगाया जा सके.
म्यांमार के साथ मिजोरम की 404 किलोमीटर लंबी सीमा लगी है. सीमावर्ती इलाकों में चिन समुदाय की बड़ी आबादी रहती है. यह लोग म्यांमार में हुई कोई तीन दशक पहले हिंसा के बाद शरण के लिए सीमा पार कर मिजोरम आ गए थे. मिजोरम की राजधानी आइजोल में ही चिन समुदाय के तीन हजार से ज्यादा लोग रहते हैं.
पूर्वोत्तर भारत में मणिपुर और मिजोरम की सीमाएं म्यांमार से सटी हैं. हाल के वर्षों में वहां होने वाली भारी हिंसा के बाद चिन, कूकी, मिजो और जोमी समुदाय के लोगों ने बड़े पैमाने पर पलायन कर मिजोरम के सीमावर्ती इलाकों के अलावा राजधानी आइजल में शरण ली थी. अब तख्तापलट के बाद आपातकाल लागू होने के बाद म्यांमार में एक बार फिर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हिंसा के अंदेशे के बीच पलायन की संभावना बढ़ रही है.
पलायन का इतिहास दशकों पुराना
राजधानी आइजल में रहने वाले चिन समुदाय के लोगों के हजारों परिजन भी सीमा पार फंसे हुए हैं. अब उनके भाग कर भारत में आने का अंदेशा है. चिन समुदाय के लालुनतुआंगा कहते हैं, "हमें डर है कि अब और लोग यहां आएंगे. हमारे कई करीबी रिश्तेदार म्यामांर में रहते हैं. फिलहाल वह इंतजार कर रहे हैं. वहां की सैन्य सरकार ने फिलहाल आम लोगों की आवाजाही पर रोक नहीं लगाई है. लेकिन उनके वहां फंसने का अंदेशा है. ऐसे में एक बार फिर पलायन तेज हो सकता है.”
म्यांमार से चिन समुदाय के लोगों के मिजोरम पलायन का इतिहास तीन दशकों से भी ज्यादा पुराना है. वर्ष 1988 में म्यांमार में लोकतंत्र के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान सैन्य बलों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार किया था. उसके बाद चिन समुदाय के कई लोग सीमा इलाके के अलावा घने जंगलों के रास्ते या फिर नदी पार करके आइजल आ गए. अब दोबारा वहां तख्तापलट होने से चिन और मिजो दोनों समुदायों को वहां से लोगों के भागकर मिजोरम आने का डर सता रहा है.
म्यांमार सेना के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग
म्यांमार में सेना के तख्तापलट के बाद धीरे-धीरे लोगों का गुस्सा फूट रहा है. साल 2007 के बाद देश सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन का गवाह बन रहा है. लोग आंग सान सू ची की रिहाई के लिए प्रदर्शन और आपातकाल के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.
म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
म्यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के विरोध और देश की प्रमुख नेता आंग सान सू ची को जल्द से जल्द रिहा करने के समर्थन में हजारों लोगों ने 7 फरवरी को देशभर में जोरदार प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन के दौरान नारे लगाते हुए कहा, "हम सैन्य तानाशाही नहीं चाहते हैं. हम लोकतंत्र चाहते हैं."
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
तख्तापलट करने वाले सैन्य अधिकारियों ने इन विरोध प्रदर्शनों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2007 के बाद म्यांमार में यह अब तक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
आंग सान सू ची की रिहाई के लिए आम लोगों के साथ-साथ उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया. उनके हाथों में सू ची की तस्वीर वाले बैनर थे और उस पर रिहाई की मांग थी.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार ने 6 फरवरी को माइक्रो ब्लॉगिंग मंच ट्विटर और इंस्टाग्राम पर रोक लगा दी. इससे पहले सेना ने फेसबुक पर चार दिनों के लिए रोक लगाई थी. तख्तापलट करने वाली सेना को आशंका है कि फेसबुक के जरिए राजनीतिक पार्टियां और नागरिक अधिकार संगठन बड़े प्रदर्शन आयोजित कर सकते हैं.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यंगून शहर में हजारों की भीड़ 7 फरवरी को विरोध प्रदर्शन में शामिल हुई और "सैन्य तानाशाही विफल" और "लोकतंत्र की जीत" के नारे लगाए.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
सैन्य तख्तापलट के विरोध में भारी संख्या में महिला शिक्षकों ने भी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और तीन उंगलियां सलामी मुद्रा में दिखाईं.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
सेना ने पिछले साल हुए चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर देश के बड़े नेताओं को हिरासत में लिया था और एक साल के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था पर रोक लगा दी थी. स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारियों ने अपने कपड़ों पर लाल रिबन लगाकर अपना विरोध जताया.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ अमेरिका समेत तमाम देशों ने चिंता जाहिर की है और सेना से देश के नेताओं की जल्द रिहाई की मांग की है.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
यंगून विश्वविद्यालय के पास प्रमुख चौराहे पर 7 फरवरी को जमा हुए कम से कम 2,000 श्रमिक संगठनों के सदस्यों, छात्र कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने "आपकी आयु लंबी हो मां सू" के नारे लगाए.
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म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों में मिजो समुदाय के भी हजारों लोग रहते हैं. मिजो और चिन समुदाय के लोग ईसाई हैं. हालांकि इन दोनों समुदायों के बीच शुरू से ही तनातनी रही है.
मिजोरम के कई संगठन म्यांमार में तख्तापलट का विरोध करते हुए वहां शीघ्र लोकतंत्र बहाल करने की मांग में प्रदर्शन कर चुके हैं. आइजल में बीते सप्ताह कई छात्र संगठनों ने म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए प्रदर्शन किया था. इसमें चिन समुदाय के लोगों ने भी हिस्सा लिया. भारत में चिन समुदाय के लोगों की कानूनी स्थिति साफ नहीं है. इनको फिलहाल शरणार्थी का दर्जा नहीं मिला है.
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मणिपुर सीमा पर भी सुरक्षा चुस्त
सेना के तख्तापलट के बाद पूर्वोत्तर के मणिपुर से लगी 365 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा को सील कर दिया गया है. सामान्य परिस्थिति में मणिपुर के मोरे से म्यांमार जाने के लिए वैध सीमा द्वार है. लेकिन बीते साल कोरोना का प्रकोप बढ़ने के बाद इस सीमा को बंद कर दिया गया था. आपसी समझौते के तहत सीमा के दोनों ओर के लोग वहां लगने वाले हाट में खरीददारी के लिए बिना किसी कागजात के ही सीमा पार कर सौ मीटर की दूरी तक आवाजाही कर सकते थे.
नवंबर 2019 में म्यांमार में होने वाले चुनावों से पहले भी आंग सान सू की अगुवाई वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के हजारों कार्यकर्ता और समर्थक भाग कर मणिपुर आए थे. उनको सीमावर्ती शहर मोरे में ही एक शरणार्थी शिविर में रखा गया था. लेकिन कुछ दिनों पहले म्यांमारी सैनिकों ने सादे कपड़ों में मोरे पहुंच कर उन शरणार्थियों को घर लौटने या गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी. उसके बाद किसी हिंसा या सैन्य कार्रवाई के अंदेशे से मणिपुर सरकार ने उन शरणार्थियों को चंदेल जिले में मणिपुर राइफल्स के शिविर में शिफ्ट कर दिया. अब वहां भी सीमा पर असम राइफल्स के अतिरिक्त जवानों को तैनात कर दिया गया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि म्यांमार में तख्तापलट का भारत और उस देश के साथ आपसी रिश्तों पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ने का अंदेशा है. सत्ता संभालने वाली सैन्य सरकार की विदेश नीति में अगर चीन के प्रति झुकाव नजर आता है तो हाल के दशकों में आपसी संबंधों को मजबूत करने की भारत की तमाम कोशिशों पर पानी फिर सकता है. एक पर्यवेक्षक लालमुनियाना कहते हैं, "फिलहाल सबसे बड़ी समस्या सीमा पार से पलायन कर मिजोरम में आने वाले लोगों की है. बोली और वेशभूषा में समानता की वजह से चिन समुदाय के लोग आसानी से स्थानीय आबादी में घुल-मिल जाते हैं. इससे सामाजिक तनाव बढ़ने का भी अंदेशा है. केंद्र और राज्य सरकारों को इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाना होगा.”
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
तस्वीर: Getty Images/P. Walter
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.