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म्यांमार में दशकों बाद खुले संसद के दरवाजे

३१ जनवरी २०११

म्यांमार में लगभग दो दशकों से अधिक समय के बाद सोमवार को संसद की बैठक शुरू हुई. सैन्य शासकों के वर्चस्व वाली नवनिर्वाचित संसद में 1980 के दशक के बाद पहली बार सांसद विधायी सत्र के लिए व्यापक रूप से एकत्रित हुए.

तस्वीर: AP

विदेशी मीडिया के किसी भी प्रतिनिधि को इस ऐतिहासिक घटना का साक्षी नहीं बनने दिया गया और न ही संसद की नई इमारत का फोटो खींचने की अनुमति दी गई. हालांकि म्यांमार की राष्ट्रीय मीडिया ने नई सरकार के गठन का स्वागत किया है.

सोमवार सुबह राजधानी नेपीदाव में संसद की नई इमारत में लगभग एक हजार राजनेता राष्ट्रीय परिधान पहने एकत्रित हुए और स्थानीय समयानुसार सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर संसद की कार्यवाही शुरू की गई. इस दौरान प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहा और चारों तरफ सुरक्षा के कड़े इंतेजाम रहे.

म्यांमार की इस नवनिर्वाचित संसद में सेना का पूरी तरह से दबदबा है, क्योंकि पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में 80 प्रतिशत ऐसी पार्टियों के उम्मीदवार जीते हैं, जिन्हें सेना का समर्थन प्राप्त था.

म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं और विश्लेषकों के बीच बहस का मुद्दा यह है कि नवनिर्वाचित संसद का गठन देश की राजनीति में सकारात्मक बदलाव की पहल है या फिर इससे लोकतंत्र की बहाली की आड़ में सैन्य शासन को और मजबूती मिलेगी.

नवंबर में चुनावों के दौरान लोकतंत्र की प्रतीक आंग सान सू ची की गैर मौजूदगी में हुए चुनावों में धोखाधड़ी और लोगों को धमकी देने की बात कही गई थी और आरोप लगाया गया था कि सैन्य शासकों ने सत्ता पर हावी होने के लिए पहले ही सांठगांठ कर ली थी.

सैन्य शासन के दावों के मुताबिक राजधानी में नई संसद के साथ 14 अन्य प्रांतीय विधान सभाओं के गठन से देश में अनुशासित लोकतंत्र का रोड़मैप तैयार होगा. लेकिन आंग सान सू ची ने कहा कि नई संसद सिर्फ एक रबर स्टाम्प की तरह होगी और इस पर पूरा नियंत्रण सैन्य शासकों का होगा.

सू ची को सालों की नजरबंदी के बाद कुछ माह पहले ही रिहा किया गया है. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि चुनाव होने का मतलब यह है कि यहां राजनैतिक बदलाव हो रहे हैं. अपनी रिहाई के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसमें कुछ अजीब नहीं है. मेरी रिहाई का समय आ गया था.

सेना प्रमुख सीनियर जनरल थान श्वे लंबे समय से सत्ता पर काबिज हैं और प्रेक्षकों का मानना है कि फिलहाल वे सत्ता में अपना दखल बरकरार रखना चाहते हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एस खान

संपादनः महेश झा

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