म्यांमार में सैन्य प्रशासन जुंटा ने और ज्यादा सैनिकों को सड़कों पर उतार दिया है. प्रदर्शन कर रहे लोग भी मानने को तैयार नहीं और विरोध जता रहे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि पहली बार प्रदर्शनों में गोली चलाई गई है.
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म्यांमार में यंगून की सड़कों पर बख्तरबंद गाड़ियां और सैनिकों के दस्ते गश्त कर रहे हैं. देश के बाकी हिस्से में भी सेना की तैनाती बढ़ा दी गई है. सोमवार को कई घंटे तक इंटरनेट बंद रहा और फिर बाद में बहाल किया गया. हालांकि ज्यादातर लोगों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने दिया जा रहा है. सैन्य प्रशासन की इन सारी कवायदों के बावजूद प्रदर्शन करने वाले लोग डटे हुए हैं.
इस बात की आशंका मजबूत हो रही है कि सेना विरोध करने वालों पर ज्यादा सख्त कार्रवाई कर सकती है. उत्तरी शहर मितकिना में सैनिकों ने रविवार की रात पहले आंसू गैस के गोले दागे और फिर गोलियां चलाई. मौके पर मौजूद एक पत्रकार ने यह जानकारी दी हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि वो असली गोलियां थीं या फिर रबर बुलेट.
दो हफ्ते पहले यहां की सेना ने सरकार का तख्तापलट कर कामकाज अपने हाथ में ले लिया और एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया. इसके साथ ही राजनीतिक नेता आंग सान सूची को उनकी पार्टी के सैकड़ों लोगों के साथ हिरासत में ले लिया गया. इसमें लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के सदस्य भी शामिल हैं. सोमवार को अदालत में सूची के मामले में सुनवाई होनी थी लेकिन उसे बुधवार तक के लिए टाल दिया गया.
दिन में मारेंगे, रात में चोरी करेंग, टीवी पर झूठ बोलेंगे
एक बैंक के सामने जमा हो कर प्रदर्शन कर रहे करीब एक हजार लोगों की भीड़ में शामिल 46 साल की नाइन मोइ ने कहा, "बख्तरबंद गाड़ियों में गश्त लगाने का मतलब है कि वो लोगों को धमका रहे हैं." यंगून में इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी के सैकड़ों छात्र भी प्रदर्शन करने सड़कों पर निकले. शहर के दक्षिणी हिस्से में भी सोमवार को एक रैली हुई जिसे फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम के जरिए दिखाया गया. इस रैली में सैकड़ों लोग बैंड के साथ मार्च करते नजर आए. राजधानी नेप्यीदॉ और म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले में बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन करने निकले हैं. यहां कुछ लोगों ने सेना के खिलाफ बैनर ले रखे थे जिन पर लिखा है, "वे दिन में मारेंगे, रात में चोरी करेंग, टीवी पर झूठ बोलेंगे."
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के राजदूतों ने एक संयुक्त बयान जारी कर सैन्य बलों से अनुरोध किया है कि वे आम लोगों को नुकसान ना पहुंचाएं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने भी यही मांग रखी है. गुटेरेस ने प्रवक्ता के जरिए कहलवाया है कि सेना तुरंत स्विस राजदूत को म्यांमार आने की अनुमति दे ताकी वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके. अमेरिका ने अपने नागरिकों को सुरक्षित रहने और रात के कर्फ्यू का उल्लंघन नहीं करने की सलाह दी है.
पुलिस अधिकारी भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हुए
एक फरवरी को आंग सान सूची को हिरासत में लेने के बाद से देश के ज्यादातर हिस्से में अशांति फैली हुई है. सूची को हिरासत में रखने की अवधि सोमवार को खत्म हो रही है लेकिन उनके वकील ने एक जज का हवाला दे कर बताया है कि वो 17 फरवरी तक हिरासत में रहेंगी. अब तक करीब 400 लोगों को हिरासत में लिया गया है. हालांकि इसके बाद भी बड़ी संख्या में लोग विरोध प्रदर्शन करने निकल रहे हैं. दावाइ में सात पुलिस अधिकारी भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गए.
देश के कई हिस्सों में लोगों ने पहरेदारी के लिए ब्रिगेड बना लिए हैं ताकी नागरिक अवज्ञा में शामिल हो रहे लोगों को गिरफ्तारी से बचाया जा सके. यंगून में सड़कों पर गश्त कर रहे इसी तरह के दल के एक सदस्य ने कहा, "हमें इस वक्त किसी पर भरोसा नहीं है, खासतौर से उन लोगों पर जो वर्दी में हैं."
सैन्य शासक हालांकि अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं से बेपरवाह हैं. जुंटा ने इस बात पर जोर दिया है कि उन्होंने कानूनी तौर पर शासन अपने हाथ में लिया है. उन्होंने पत्रकारों को भी निर्देश दिया है कि वो उन्हें ऐसी सरकार के रूप में पेश ना करें जिसने तख्तापलट से सत्ता हथियाई है.
एनआर/आईबी (एएफपी)
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21वीं सदी के तख्तापलट
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
तस्वीर: Getty Images/P. Walter
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.