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म्यांमार में बाजार खोजती इंटरनेट कंपनियां

२ मार्च २०१२

बरसों से फौजी बूटों के साए में जी रहा म्यांमार अचानक खुलने लगा है. बाजार भी खुल रहा है और इंफॉर्मेशन टेक्नेलॉजी के इस दौर में इंटरनेट और टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडरों को उम्मीद है कि उनकी चांदी होने वाली है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

म्यांमार दुनिया में सबसे कम प्रति व्यक्ति टेलीफोन वाला देश है और यही वह देश है, जहां सबसे कम इंटरनेट कनेक्शन है. फौजी हुकूमत बदल रहा है और निवेशकों को पता है कि एक जबरदस्त बाजार खुलने वाला है. उन्हें डर इस बात का है कि इतने सालों तक सैनिक जुंटा के हवाले रहा देश खुद को नए सांचे में कैसे ढाल पाएगा.

यंगून शहर में हाल ही में हाई टेक लोगों की बैठक हुई, जिसमें चर्चा की गई कि किस तरह देश में इंटरनेट बाजार को नया रूप दिया जा सकता है. इसमें बुनियादी ढांचे से लेकर निवेशकों तक के मुद्दे पर बात हुई. बैठक में कुछ कारोबारी, कुछ ब्लॉगर और म्यांमार के सूचना तकनीक विभाग के कुछ जानकार शामिल हुए और इसे बारकैंप नाम दिया गया. हालांकि औपचारिक तौर पर कुछ फैसला नहीं हुआ है.

कैसे शुरू हुआ बारकैंप

हालांकि इससे पहले 2009 में भी देश में इंटरनेट व्यवस्था बनाने की पहल हुई थी. उस वक्त एमिली जैकोबी ने यंगून का दौरा किया और वहां इसमें दिलचस्पी रखने वाले लोगों से बातचीत की. कई लोगों ने रुचि दिखाई लेकिन उस वक्त देश का माहौल अलग था और कोई भी सैनिक जुंटा को नाराज नहीं करना चाहता था. सब उसके साथ मिल कर कारोबार करना चाहते थे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

इंफोरित्म मेज नाम की आईटी और मीडिया कंपनी के सचिव थांग सू नियाइन का कहना है, "हमारे साथी संस्थापकों को भरोसे में लेना बहुत मुश्किल था." पहले बारकैंप का आयोजन 2010 के शुरू में हुआ, जिसमें 3000 लोगों ने हिस्सा लिया. इसे बहुत अहम माना जा रहा है क्योंकि उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि सैनिक जुंटा इस तरह से देश को खोलने की पहल कर सकती है. उस वक्त आंग सांग सू-ची अपने घर में नजरबंद थीं.

बुनियादी समझ

बारकैंप की तीसरी मीटिंग के साथ यह पता चल गया कि म्यांमार के लोग सूचना तकनीक को लेकर किस कदर बेचैन हैं. सिंगापुर की आईटी कंपनी के सलाहकार थार टेट का कहना है कि पहली मीटिंग में जमा लोगों को बुनियादी बातें भी नहीं पता थीं, "उनकी आंखों में देखने से पता चल रहा था कि उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था." इस साल वे दोबारा इस बैठक में गए और उनका कहना है कि अब स्थिति बदल रही है, "अब लोग खुद को शिक्षित कर रहे हैं और चीजों को जानने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि इस बार मैंने अपना प्रेजेंटेशन भी आसान रखा."

म्यांमार में 2003 से ही इंटरनेट कैफे की शुरुआत हो चुकी है, जहां ब्लॉगर और आईटी से जुड़े लोग अपना काम कर रहे हैं. लेकिन उनके लिए एक सीमा निर्धारित थी. प्याए फियो माउंग ने यंगून यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर की पढ़ाई की है लेकिन उन्हें इसके लिए अपना कंप्यूटर ले जाना पड़ता था. बाद में काम करने के लिए दूसरे देश जाना पड़ता था और माउंग भी सिंगापुर चले गए. वह बताते हैं कि उनके बैच में 10 लोग थे, जिनमें से सिर्फ दो अब म्यांमार में हैं.

तस्वीर: AP

मुश्किल है म्यांमार

बारकैंप में इस बात पर चर्चा हुई कि किस तरह से आईटी से जुड़े लोगों और निवेशकों दोनों को तैयार किया जा सकता है. संचार पर देश में अभी भी सरकारी तंत्र का कब्जा है. सरकार हमेशा इस दुविधा में फंसी रहती है कि खुद पर निर्भर रहे या बिजनेस के लिए बाजार खोले. साल 2007 में प्रदर्शनकारियों ने इंटरनेट पर वीडियो, तस्वीरें और सरकार के खिलाफ नारे पोस्ट करना शुरू कर दिया, जिसके बाद सरकार ने भी सख्त रवैया अपना लिया.

बाद में अमेरिका को अपने नागरिको को भी बताना पड़ा कि म्यांमार में अपना मोडेम नहीं रखा जा सकता है. और देश के अंदर के हर मोडेम को सरकारी कंपनी पोस्ट एंड कम्युनिकेशन्स से रजिस्टर कराना पड़ता था. ऐसा नहीं करने पर भारी जुर्माना और 15 साल तक की कैद भी हो सकती थी.

म्यांमार में टेलीकॉम या इंटरनेट का बिजनेस करने के लिए ऊंची पहुंच जरूरी होती है. देश में 2002 में जब पहला जीएसएम नेटवर्क बना, तो उसमें सत्ता के करीबी रहे जनरल नी विन की बड़ी भूमिका रही. हालांकि वह खुद बाद में भ्रष्टाचार के मामले में फंस गए.

पश्चिमी देशों की नजर वैसे म्यांमार के पड़ोसी चीन पर भी होगी. दोनों देशों के बहुत अच्छे रिश्ते रहे हैं और तकनीक की दुनिया में चीन किसी को भी मुकाबला दे सकता है.

रिपोर्टः रॉयटर्स/ए जमाल

संपादनः आभा एम

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