म्यांमार में रोहिंग्या को जबरन बंटता 'विदेशी कार्ड'
४ सितम्बर २०१९![Rohingyas Flüchtlinge kehren nach Myanmar zurück](https://static.dw.com/image/50103627_800.webp)
दो साल से पूरे विश्व का ध्यान म्यांमार में रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के साथ हुई हिंसा और दुर्व्यवहार की ओर है और इसकी हर ओर से निंदा भी हुई है. फोर्टिफाई राइट्स नामक समूह की इस रिपोर्ट के बाद एक बार फिर ऐसा हो सकता है क्योंकि वे म्यांमार में जारी एक ऐसे अभियान के बारे में बता रहे हैं जिसके अंतर्गत अल्पसंख्यकों को 'नेशनल वैरिफिकेशन कार्ड्स' सौंपे जा रहे हैं. समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू स्मिथ का कहना है, "म्यांमार सरकार इस प्रशासनिक तरीके से रोहिंग्या लोगों को बर्बाद करने की कोशिश कर रही है. इसके कारण उनके बुनियादी अधिकार भी छिन जाएंगे."
समूह ने बताया कि सरकार रोहिंग्या लोगों पर ऐसे कार्ड स्वीकार करने का दबाव डाल रही है "जो सीधे सीधे रोहिंग्या को 'विदेशी' बताते हैं." उनका कहना है कि "म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या को प्रताड़ित किया और कार्ड वाले सिस्टम को लागू करने के लिए रोहिंग्या के आवाजाही की आजादी पर भी पाबंदियां लगा रही है."
बौद्ध बहुल म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्या लोगों को म्यांमार की नागरिकता देने से इनकार कर दिया है. इन्हें वहां बांग्लादेश से आए अवैध आप्रवासियों के तौर पर देखा जाता है. जबकि कई रोहिंग्या अपनी पिछली कई पीढ़ियों से पश्चिमी म्यांमार के रखाइन प्रांत से अपनी जड़ें जुड़ी होने की बात करते हैं. रखाइन प्रांत ने तब पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था जब सन 2017 में यहां से करीब 7,30,000 रोहिंग्या अल्पसंख्यक भाग कर पड़ोसी देश बांग्लादेश चले गए थे. इसका कारण म्यांमार सरकार की सैन्य कार्रवाई थी जो कि रोहिंग्या की ओर से आतंकी हमले के जवाब में की गई बताई जाती है.
म्यांमार सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल टुन टुन नाई ने रोहिंग्या पर दबाव डालकर उन्हें कार्ड दिए जाने के दावों का खंडन किया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा, "ये सच नहीं है और मेरे पास इसके अलावा कहने को कुछ नहीं है." इसका असर बांग्लादेश पहुंचे रोहिंग्या रिफ्यूजियों को वापस लौटाने की प्रक्रिया पर भी हो सकता है. वे कहते हैं कि जब तक उन्हें म्यांमार की ओर से सुरक्षा और नागरिकता की गारंटी नहीं मिलती तब तक वे वापस नहीं लौटेंगे.
2018 में रखाइन में संयुक्त राष्ट्र की ओर से भेजे गए तथ्यखोजी दल ने रिपोर्ट दी थी कि 2017 में रखाइन प्रांत में चलाए गए सैन्य अभियान को "नरसंहार के इरादे" की तरह अंजाम दिया गया. दल ने म्यांमार सेना के कमांडर इन चीफ और पांच अन्य जनरलों को "अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत कठोरतम अपराध" के तहत सजा दिए जाने की सिफारिश की थी.
आरपी/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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