तख्तापलट कर चुकी म्यांमार की सेना ने दुनिया के सामने अपना पक्ष रखने के लिए 20 लाख डॉलर में लॉबी करने वाले एक शख्स की सेवाएं ली हैं. आरी बेन-मेनाशे का काम होगा दूसरे देशों को म्यांमार की "असली स्थिति" के बारे में बताना.
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आरी बेन-मेनाशे इस्राएली-कैनेडियन मूल के हैं और उनकी कंपनी 'डिकेंस एंड मैडसन' ने म्यांमार की सेना के साथ चार मार्च को ही एक करार पर हस्ताक्षर किए थे. अमेरिका के न्याय मंत्रालय में दायर किए गए दस्तावेजों से अब पता चला है कि इस करार का शुल्क 20 लाख डॉलर है. एएफपी ने ये कागजात देखे हैं.
समझौते के अनुसार कंपनी सेना के अधीन म्यांमार की तरफ से अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इस्राएल, रूस जैसे देश और संयुक्त राष्ट्र, अफ्रीकी संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ लॉबी करेगी. कंपनी को दी गई जिम्मेदारियों में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटवाने के लिए लॉबिंग करना और "देश में असली स्थिति के बारे में समझाने में मदद करना" शामिल है.
बेन-मेनाशे खुद को पूर्व इस्राएली खुफिया अधिकारी बताते हैं. वो इसके पहले कई विवादों में रहे हैं. उन्हें 1980 के दशक में ईरान को सैन्य हवाई जहाज बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. यह आरोप उन पर अमेरिका ने लगाया था. मामला अदालत में भी पहुंचा लेकिन अदालत ने उन्हें आखिर में बरी कर दिया.
2000 के पहले दशक में जिम्बॉब्वे में विपक्ष के एक नेता के खिलाफ लाए गए राजद्रोह के मामले में भी उनकी अहम भूमिका थी. 2019 में उनकी कंपनी ने ट्यूनिशिया में जेल में डाल दिए गए राष्ट्रपति पद के एक उम्मीदवार के पक्ष में लॉबी करने के लिए 10 लाख डॉलर का एक समझौता किया था. इसके अलावा कनाडा में भी एक सनसनीखेज मामले में उन्हें आरोपी पाया गया था जिसमें देश की गुप्तचर सेवा की निगरानी करने वाली संसदीय समिति के अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ा था.
म्यांमार में पिछले महीने सेना ने वहां की नेता आंग सान सू ची को हिरासत में ले लिया था. तब से वहां रोजाना सेना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिन्हें रोकने के लिए सेना कड़े कदमों का इस्तेमाल कर रही है. अभी तक सुरक्षाबलों के हाथों कम से कम 60 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 2,000 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
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फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
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हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
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गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
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सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
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इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.